मनुष्य महानता को कब प्राप्त होता है:-
आपदा को परिणत करे,
अवसर में इन्सान।
सोने से कुन्दन बने,
कीमत होय महान्॥2751॥
भावार्थ :- इस दृश्यमान संसार में आज तक जितने भी महापुरूष हुए हैं, उनके जीवन में विषम और भयावह परिस्थिति अवश्य आई है,चाहे वह रूस का टाल्सटाय हो, अमेरिका का मार्टिन लूथर किंग हो, अफ्रीका नेल्सन मंडेला हो, आस्ट्रेलिया का एडमंड हिलेरी हो, यूनान का सुकरात हो, ईश्वर का प्रतिनिधि कहलाने वाला ईशा-मसीह हो। भारत में यदि दृष्टि डालें तो चाहे आदि गुरु शंकराचार्य हों, युग प्रर्वतक महर्षि देव दयानन्द हों, गुरु नानक, मीरा बाई और यहाँ तक कि भगवान राम अथवा भगवान कृष्ण हो सभी के जीवन में विषम से से भी विषम परिस्थिति आती रहीं हैं किन्तु जैसे एक चट्टान नदी के प्रवाह को रोकने का असफल प्रयास करती है लेकिन नदी अपनी रास्ता बदल कर आगे बढ़ती है और अपने गन्तव्य पर पहुंचती है, ठीक इसी प्रकार जो लोग मार्ग में आने वाली बाधाओं को अवसर में परिणत करके निर्बाध रूप से आगे बढ़ते हैं, वे एक दिन अपनी मंजिल पर अवश्य पहुँचते हैं और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनते है। जिस प्रकार सोना अग्नि मे तपन के बाद कुन्दन बन जाता है, ठीक इसी प्रकार मुसीबतों के बावजूद भी जो अपने लक्ष्य को हासिल करते हैं, उनका महत्व अधिक हो जाता है।
ध्यान रहे, आत्मस्वरूप का दिग्दर्शन केवल मात्र तीन अवस्थाओं में होता है- सुक्षुप्ति, समाधि और मोक्ष । यह मनुष्य के विवेक और अभ्यास पर निर्भर है कि वह कौन सी अवस्था को प्राप्त होता है।
क्रमशः