सुख और दुख रहस्य (भाग 2)
विशेष – ये लेख प्रसिद्ध वैदिक विद्वानों के लेख और उनके विचारों पर आधारित ४ भाग में है। कृपया अपने विचार बतायें।
जन्म लेने पर दुख क्यों आता है?
एक व्यक्ति ने पूछा कि जन्म लेने पर दुख क्यों आता है, इसका जन्म लेने से क्या संबंध है? तो ऋषियों ने उत्तर दिया, कि प्रकृति, जो कि जड़ पदार्थ है। उसमें तीन प्रकार के सूक्ष्मतम परमाणु हैं। जिनके नाम हैं, सत्व रज और तम।
इनमें से सत्त्व नामक परमाणु हथियार सुख देता है।रज नामक परमाणु दुख देता है। और तम नामक परमाणु मोह अर्थात मूर्खता नशा नींद आलस्य इत्यादि भावनाओं को उत्पन्न करता है।
सत रज तम क्या है ?
ये तीन गुण हैं तमस (अंधकार और अराजकता), रजस (गतिविधि और जुनून), और सत्व (अस्तित्व और सद्भाव)। तीनों गुणों के बारे में जागरूकता और सचेत हेरफेर तनाव को कम करने, आंतरिक शांति बढ़ाने और ज्ञान की ओर ले जाने का एक शक्तिशाली तरीका है। सत्व, रज और तम इन तीनों प्रकार के मूल कणों को सामूहिक रूप में प्रकृति कहा जाता है। कोई एक ही कण का नाम प्रकृति नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर कुछ गुण धर्म होते हैं यह व्यक्ति की प्रकृति निर्धारण करते हैं जैसे कि सतोगुण तमोगुण और रजोगुण सतोगुण वाला व्यक्ति धार्मिक प्रकृति का होता है सज्जन दयालु होता है इसी प्रकार रजोगुण वाला व्यक्ति आर्थिक क्रियाकलाप करने वाला समाज की रक्षा करने वाला होता है तमोगुण वाला व्यक्ति नीच कर्म में लिप्त होता है गंदे कार्य करता है जीवनशैली निम्न कोटि की रखता है।
तो सार यह हुआ, कि जब आपने जन्म ले ही लिया है, प्रकृति से संबंध हो ही गया है, तो जीवन में सुख भी आएगा, दुख भी आएगा और मोह भी आएगा। मोह अर्थात अविद्या, मूर्खता। ये तीनों प्रभाव आपके जीवन में समय समय पर आते रहेंगे।
जो व्यक्ति इस सत्य को समझ लेगा, वह दुख आने पर घबराएगा नहीं, और उसे स्वाभाविक मानकर उससे संघर्ष करेगा। युद्ध करेगा। बुद्धिमत्ता से पूरी मेहनत और ईमानदारी से जो व्यक्ति इन दुखों से युद्ध करेगा, दुखों से बचने के उपाय ढूंढेगा, पूरा पुरुषार्थ करेगा, वह जीत जाएगा। उसका चिंतन इस प्रकार से होगा, कि “जीवन में कुछ समय बाद सुख भी तो आएगा। फिर चिंता की क्या बात है!” ऐसा सोचने वाला व्यक्ति दुख के दिनों को भी शांतिपूर्वक पार कर लेगा।
दुःख मनुष्य जीवन का अनिवार्य भाग
संसार में जन्म लेने वाले सभी मनुष्यों को त्रिविध तापों से दो-चार होना पड़ता है। ये किसी का भी पक्षपात नहीं करते और एक समान रूप से सबको ग्रसित करते हैं। सांख्यशास्त्र के अनुसार त्रिविध ताप तीन प्रकार के माने गए हैं—आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक ।
A.आध्यात्मिक दुःख वह है जो अपने आन्तरिक कारणों से उत्पन्न होता है। अध्यात्मिक दुःख के अंतर्गत रोग, व्याधि आदि शारीरिक दुःख और क्रोध, लोभ आदि दुःख हैं।
यह दो प्रकार का है-
1.शारीरिक- शरीर की वात, पित्त, कफ आदि की विषमता से अथवा आहार-विहार आदि की विषमता से जो दुःख उत्पन्न होता है, वह शारीरिक दुःख कहा जाता है।
2.मानसिक – जो काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, राग आदि मनोविकारों के कारण दुःख उत्पन्न होता है उसे मानसिक दुःख कहते हैं।
इनके इलाज के लिए आप डॉक्टर के पास जा सकते हैं और व्यायाम आदि द्वारा अपने को स्वस्थ्य कर सकते हैं।
B.आधिभौतिक-जो दुःख अन्य भूत-प्राणियों से हमें प्राप्त होता है।साँप, बिच्छू आदि के काटने से, अन्य हिंसक प्राणियों द्वारा आघात पहुँचाने से, किसी के मारने-पीटने अथवा कटु वाक्य कहने से, इसी ढंग की किसी भी रीति से होने वाला दुःख आधिभौतिक दुःख कहलाता है।
C. आधिदैविक दुःख – वह है जो वर्षा, आतप, हिमपात, विद्युत्पात, भूकम्प तथा वायु जनित उत्पातों के कारण उत्पन्न होता है. यानि जो अचानक अदृश्य प्रकार से आते हैं, जैसे भूकंप, दुर्भिक्ष, अतिवृष्टि, महामारी, युद्ध आदि। कहीं गर्मी से लोग मर रहे हैं। कहीं सर्दी से लोग मर रहे हैं। ये सब भौतिक दुःख हैं। जिनसे बचा नही जा सकता है। अचानक आपको खबर ही मिलती है कि ये घटित हो गया।
– डॉ डी के गर्ग