happiness-and-sorrow

विशेष – ये लेख प्रसिद्ध वैदिक विद्वानों के लेख और उनके विचारों पर आधारित ४ भाग में है।

सुख का विपरीत दुःख है। सभी को किसी ना किसी दुख ने पकड़ रखा है. जिसके इलाज के लिए उल्टे सीधे रास्ते अपनाकर और जीवन की राह को दुर्गम बना रहे हैं. यहां तक कि दुख निवारण तंत्र, लाल किताब, जादू टोटके, ईसाई की चंगाई सभा, पीर पैगंबर, कुल देवी, व्रत, पशु बलि और ना जाने क्या क्या करते हैं. इसीलिए अंधविश्वास अपनी हदें पार कर चुका है और निर्मल बाबा जैसे पाखंडी भी दुःख दूर करने के उपाय बता रहे हैं.
दुःख क्या है ,कितने प्रकार का होता है और कैसे छुटकारा पा सकते हैं? ये एक विशेष प्रश्न है क्योंकि विश्व का प्रत्येक व्यक्ति किसी कारण से दुखी है, सब भाग दौड़ में लगे हैं कि जल्दी दुख से मुक्ति मिल जाए लेकिन ये एक ऐसी श्रृंखला है जो मरते दम तक समाप्त नहीं हो सकती है .ऐसा कोई व्यक्ति संसार में आज तक उत्पन्न नहीं हुआ,और न होगा,जो जन्म तो ले ले,और उसके जीवन में दुख न आए। ऐसा होना, संसार में तो असंभव है।ऐसा तो केवल मोक्ष में ही होता है।

कुछ बारिकियाँ देखिये :-

• एक मित्र बहुत ईमानदार है , परिश्रम करते हैं लेकिन इच्छा अनुसार परिणाम ना आने से दुखी हैं ,
• दो मित्र एक साथ परीक्षा पास करते हैं , लेकिन कम अंक वाले को सरकारी नौकरी मिल गयी दूसरा बेरोजगार है।
• एक व्यक्ति रोज पूजा पाठ करता है ,लेकिन कोई काम नहीं बनता ,दूसरा लफंगा है लेकिन सुखी है। इसलिए पूजा पाठ वाला और परेशान है ।
• धनवान ज्यादा धन के कारण दुखी है तो निर्धन अपनी गरीबी के कारण। रोगी अपने रोग से दुखी है तो चिकित्सक को भी कोई न कोई रोग सता रहा है।

बाबा अपने शिष्यों की घटती और नए नए विदेशों में आश्रम के लिए चिंतित है. उच्च पद पर आसीन व्यक्ति को अभी और तरक्की व शक्ति चाहिए ,सत्ता पर बैठे व्यक्ति को हमेशा सत्ता में बनें रहना है इसलिए वो साम दाम दंड भेद से अपनी कुर्सी बचाने के लिए दुखी रहता है। जिनके संतान नहीं होती वे संतान के लिए दुखी लेकिन जिनके संतान है वे संतान से दुखी।
हम किसी एक दुख से छुटकारा पाते भी हैं, पर फिर हमें शीघ्र ही अन्य दुःख-समूह आ घेरता है। किसी एक दुःख-निवृत्ति से पहले ही दूसरा आ धमकता है.
यही जीवन का खेल है कोई रोकर दुःख को दूर करने का प्रयास करता है तो कोई मुस्कराकर पुरुषार्थ के द्वारा।

– डॉ डी के गर्ग

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