हृदय का भाव कितना महत्त्वपूर्ण और प्रभावी होता है : –
विचार से भी सूक्ष्म है,
हृदय के सद्भाव ।
ईष्ट-दे व तक पहुँचता
एक श्रध्दा का भाव॥2749॥
भावार्थ:- विचार से भी सूक्ष्म भाव होता इन्हें चित्त में उठने वाली उर्मियाँ भी कहा जाता है। जिनका प्रभाव हृदय स्पर्शी होता है। किसी वक्तव्य को समझने में लोग गलत – फहमी के शिकार हो जाते है, तब वक्तव्य देने वाला स्पष्टीकरण देता हुआ सहज भाव से यह कहता है- मेरा कहने का भाव यह नहीं था जो आप समझ रहे हैं। कृपया आप अपना दृष्टिकोण बदलिये और मेरे कहने का भाव समझिये ।
विचार मस्तिष्क में उत्पन्न होते हैं जबकि भाव हृदय में उत्पन्न होते हैं, जो सुकोमल फूल की तरह होते हैं। कानून की सूखी हड्डियों को जोड़ने का काम भाव ही करते हैं। भाव पत्थर हृदय को भी मोम की तरह पिघला देते हैं। जैसे- सत्य, प्रेम, करुणा, अहिसा इत्यादि का भाव । भाव नकारात्मक और विध्वंसक भी होते हैं, जैसे काम क्रोध, लोभ मोह, ईर्ष्या, द्वेष घृणा इत्यादि। अतः सजग रहिये और अपने भावों को सात्त्विक सहज, सरस और सरल बनाइये ताकि आपप्रभु- कृपा के पात्र बनें। आप का चिन्तन का भाव आप के मित्र अथवा शत्रु तक अवश्य पहुँचता है। यहाँ तक कि स्वर्गगामी पितरों अथवा परम पिता परमात्मा तक भी आप के हृदय में उठने वाले श्रध्दा के भाव अवश्य पहुँचते है।
विशेष – मंत्र से भी अधिक भाव-चेतना का महत्त्व होता है : –
भाव-चेतना मंत्र में,
ज्यों देहि में प्राण ।
अत्म-रमण में रत रहो,
जो चाहो कल्याण॥2750॥
तत्त्वार्थ -वेदों के मंत्र यदि भाव-चेतना के साथ गाये जायें तो मंत्र का एक-एक शब्द दिव्य-ऊर्जा से भरा हुआ है, जो हमारे चित्त को तरंगित करता है, प्रभावित और प्रकाशित करता है।
मानवीय जीवन का कायाकल्प करता है। अपने चौबीस घन्टो में से कुछ घन्टे तो ऐसे अवश्य होने चाहिए जब पाप तन्मय होकर परम पिता परमात्मा को पुकारें। आप की आत्मा परमात्मा में रमण करने लगे । आपके तन-मन की अवस्था ऐसी हो जाये जैसे कोई नर्तकी किसी गाने की धुन में खो जाती है। नृत्य – करते हुए उसे समय, स्थान और स्वयं की सुध नहीं रहती है। उस भाव – भांगमा को देखकर दर्शक भी मन्त्र-मुग्ध हो जाते है और करतल- ध्वनि से उसका स्वागत करते हैं, उत्साह वर्धन करते हैं। काश! ऐसी चैतसिक अवस्था आपकी भक्ति में हो, तो आपका आत्मकल्याण अवश्य सम्भव है।
क्रमशः