parmatma god

भक्ति की सबसे ऊँची अवस्था के संदर्भ में शेर :-

तौफीक – ए – खुदा , बड़ी मुश्किल से होती है।
जब भी होती है, तो वाहिद की आँख रोती है॥2741॥

वाहिद – भक्त, साधक
जमाल अर्थात् बेपनाह,बसूरती, सौन्दर्य की पराकाष्ठा

महर्षि देव दयानन्द का आविर्भाव इतिहास को अविस्मरणीय घटना के संदर्भ में: –

दया और आनन्द का, ज़माल आ गया।
ज्ञान और तेज का, कमाल आ गया॥

इन्सानी चोले में, भारत का भाल आ गया।
सदियों के बाद, भारत माँ का लाल आ गया॥2742॥

मानव-जीवन कैसा हो -:

(ⅰ) पक जाय खरबूज , तो खुशबू बढ़‌ती जाय।
काश! तेरी ये जिन्दगी , एसी ही हो जाय॥2743॥

(ⅱ) झाड़ नहीं चन्दन बनो, महकै सुयश समीर ।
विद्या बुद्धि तेज बल, विनम्र और गम्भीर॥2744॥

तहेदिल से स्वागत के संदर्भ में शेर :-

खैर मक़दम कर रहा हूँ, महफिल-ए-निशात में।
रूहानी रंगत छा गई , बाग-ए- हयात में॥2745॥

निशात अर्थात् खुशी मस्ती, आनन्द प्रसन्नता
बाग-ए-हयात अर्थात् जिन्दगी का चमन अथवा बाग

धनवान होने की अपेक्षा पुण्यवान होना कठीन है : –

पुण्यवान होना कठिन, आसां है धनवान।
स्वर्ग की मुद्रा पुण्य है, मत चूके इन्सान॥2744॥

जैसा चित्त होता है, वैसा ही व्यक्ति का चिन्तन और चरित्र होता: –

जैसा चित्त चिन्तन वही, करे चरित्र निर्माण ।
चित्त के कारण नरक है, चित्त से है निर्वाण ॥2745॥

निर्वाण अर्थात् – मोक्ष

ज्ञान अर्थात, आत्मज्ञान संसार में परम पवित्र है:-

ज्ञान की नौका से मनुज, भवसागर तर जाय।
ज्ञान तो परम पवित्र है, प्रभु से देय मिलाय ॥ 2746

मानव तन की महिमा:-

दिव्य-रथ है तन तेरा, धैर्य – शौर्य चक्र ।
आत्मज्ञान प्रदीप्त कर, काहे चले तू वक्र ॥ 2747॥

आध्यात्मिक-तेज प्रभु-कृपा से ही प्राप्त होता है : –

प्रभु-कृपा से ही मिले, दैवी – अद्‌भुत तेजू।
अन्तःकरण पवित्र हो, तब मिलता यह तेज ॥2748॥

क्रमशः

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