शांत और शालीन व्यक्तित्व के धनी थे डॉ मनमोहन सिंह
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह अब इस संसार में नहीं रहे। उनकी शांत – शालीन और गंभीर मुखमुद्रा उन्हें राजनीति में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती थी। उनका व्यक्तित्व अपने आप में निराला और अनोखा था। अपने राजनीतिक जीवन में सरदार मनमोहन सिंह ने अनेक प्रकार की आलोचनाओं को बहुत शालीनता के साथ सहन किया। यद्यपि उनके आलोचक भी यह भली प्रकार जानते थे कि उनके प्रधानमंत्री रहते राजनीति में चाहे जितना भ्रष्टाचार मचा, परंतु उनकी चादर पर कोई कहीं दाग नहीं था। जब देश में किसी पार्टी के किसी मुख्यमंत्री और उसके परिवार के पास अरबों की संपत्ति होने में देर न लगती हो, तब 10 वर्ष तक देश का प्रधानमंत्री और उससे पहले देश के वित्त मंत्री के रूप में काम करने वाले डॉ मनमोहन सिंह की संपत्ति में किसी भी प्रकार की कोई वृद्धि न होना ,उनकी राष्ट्रनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा और सत्यनिष्ठा को प्रकट करती है।
उनके आलोचक कहते रहे कि उनके ऊपर एक ‘सुपर पीएम’ के रूप में सोनिया गांधी काम कर रही हैं। उन्होंने इस आलोचना को शांत मन से सहन कर लिया। लोग कहते रहे कि राहुल गांधी भी उनसे ऊपर रहकर काम करते थे। पार्टी में उनका कोई सम्मान नहीं था। इसके उपरांत भी मनमोहन सिंह शांत रहे। उन्होंने शांत रहकर देश के लोगों को यह आभास कराया कि उन्हें जिन लोगों ने देश के लिए प्रधानमंत्री के रूप में काम करने का अवसर दिया है, उनके प्रति वह शांत रहकर देश की सेवा करते रहेंगे। राजनीति उनका काम है, देश की सेवा करना मेरा काम है। उन्होंने अपने आचरण से यह भी आभास कराया कि यदि सरकार के कार्यों में अनुचित हस्तक्षेप कर गांधी परिवार उनकी फजीहत करेगा या लोकतांत्रिक संस्थाओं का हनन करने का काम करेगा या पार्टी के लोग उनकी सादगी और शराफत का लाभ उठाते हुए भ्रष्टाचार करेंगे तो पार्टी इसका परिणाम स्वयं भुगतेगी। यही हुआ भी। जब 2014 के आम चुनावों का ‘महाभारत’ हुआ तो उन्होंने विदुर की भांति शांत रहकर अपने आप को पीछे कर लिया। चुनाव परिणाम गांधी परिवार के विरुद्ध था, डॉ मनमोहन सिंह के नहीं।
‘सुपर पीएम’ सोनिया गांधी और उनके उच्छृंखल बेटे राहुल गांधी को लोगों ने आज तक क्षमा नहीं किया है। जबकि डॉ मनमोहन सिंह के प्रति सभी सम्मान व्यक्त करते हुए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।
जब डॉ मनमोहन सिंह संसार में नहीं रहे हैं तो राजनीति अपना दूषित चेहरा लेकर एक बार फिर हमारे सामने आ गई है । कांग्रेस ने कहना आरंभ कर दिया है कि एक ‘ सिख प्रधानमंत्री’ के लिए राजघाट पर अंतिम संस्कार करने और उनका स्मारक बनाने के लिए सरकार भूमि आवंटित नहीं कर रही है। हमारा मानना है कि डॉ मनमोहन सिंह के प्रति सरकार पूर्ण सम्मान व्यक्त करे और नियमों के अनुसार उनका स्मृति स्थल भी बनाने में किसी प्रकार की राजनीति न करे। परंतु कांग्रेस का या अन्य धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के नेताओं का डॉ मनमोहन सिंह को ‘ सिख प्रधानमंत्री’ के रूप में प्रस्तुत करना अटपटा सा लगता है। इससे राजनीति और राजनीति में रहने वाले लोगों की मानसिकता का पता चलता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री को भी सिख के रूप में देखना आरंभ कर दिया है। बात-बात पर संविधान की बात करने वाली कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी यदि संविधान के प्रति वास्तव में निष्ठावान हैं तो उन्हें संविधान की उस भावना का सम्मान करना चाहिए जिसमें कोई भी व्यक्ति जाति, धर्म या लिंग के आधार पर विभेदित नहीं किया जा सकता अर्थात जाति, धर्म, लिंग उसकी पहचान नहीं हो सकते। डॉ मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे, वे सिखों के प्रधानमंत्री नहीं थे।
हम सभी जानते हैं कि डॉ मनमोहन सिंह भारत में आर्थिक उदारीकरण के जन्मदाता रहे। 1991 में जब वह देश के वित्त मंत्री बनाए गए तो उस समय उन्होंने आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया को आरंभ कर दिया था। उन्होंने सरकारी नियंत्रण को कम करने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाने के साथ-साथ ढांचागत सुधारों को लागू करने में रुचि दिखाई । जिसके परिणामस्वरुप भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव और डॉ मनमोहन सिंह दोनों ने मिलकर उस समय देश को आर्थिक विषमताओं के भंवरजाल से निकालने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका वह योगदान अप्रतिम था। उनके आर्थिक सुधारो को देखकर विश्व की बड़ी-बड़ी शक्तियां आश्चर्यचकित रह गई थीं। जो शत्रु देश भारत के दिवालिया होने की प्रतीक्षा कर रहे थे, उनकी आशाओं पर डॉ मनमोहन सिंह ने पानी फेर दिया था। आर्थिक सुधारो के मसीहा के रूप में उभरे डॉ मनमोहन सिंह ने कहीं भी श्रेय लेने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने अपने किए गए पुरुषार्थ का कभी पुरस्कार प्राप्त करने की चाह भी नहीं पाली। उन्होंने सत्ता में रहते हुए कभी भारत रत्न लेने के लिए भी अपने आप को आगे नहीं किया।
डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते 2005 मनरेगा को आरंभ किया। इस अधिनियम के अंतर्गत भारत के देहाती क्षेत्र के परिवारों को 100 दिन के वेतन के रोजगार की गारंटी दी गई। डॉ मनमोहन सिंह की इस आर्थिक योजना से अनेक ग्रामीण परिवारों को लाभ भी प्राप्त हुआ था। आज हम जिस सूचना के अधिकार अर्थात आरटीआई का विशेष लाभ प्राप्त कर रहे हैं इसका शुभारंभ थी डॉ मनमोहन सिंह के शासन काल में ही हुआ था। डॉ मनमोहन सिंह ने ही प्रधानमंत्री रहते हुए देशवासियों को विशिष्ट पहचान प्रदान करने के दृष्टिकोण से आधार की सुविधा उपलब्ध कराई थी।डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण व्यवस्था को लागू किया, जिसने कल्याण वितरण को सुव्यवस्थित किया और कई खामियों को दूर किया। देश के किसानों की प्रति अपना पूर्ण सम्मान व्यक्त करते हुए डॉक्टर मनमोहन सिंह ने कृषि संकट को दूर करने के लिए 60,000 करोड़ रुपए के ऋण माफी के माध्यम से किसानों को राहत प्रदान की।
डॉ मनमोहन सिंह एक सुधारक के रूप में काम करते रहे। उन्होंने व्यवस्था में जहां-जहां खामियों को देखा, वहीं वहीं उन्हें दूर करने का प्रयास किया। उनकी अपनी ही पार्टी में ऐसे लोग विद्यमान रहे जो उन्हें एक सफल प्रधानमंत्री के रूप में देखना नहीं चाहते थे। पार्टी में युवराज के रूप में उभर रहे एक नेता के भीतर कुलबुलाहट थी कि वह स्वयं प्रधानमंत्री बने और लोग उनके लिए श्रेय देते हुए फूल मलाई तैयार करें तो अच्छा है आज वही नेता डॉ मनमोहन सिंह को ‘ सिख प्रधानमंत्री’ के रूप में स्थापित कर उनके लिए विशेष सम्मान की बात करता हुआ दिखाई दे रहा है।
हम सभी जानते हैं कि डॉ मनमोहन सिंह जिस समय प्रधानमंत्री थे, उस समय उन्हीं की सरकार के एक विधेयक को पार्टी के युवराज ने पत्रकारों के सामने फाड़ कर फेंक दिया था। क्या तब वह देश के ‘ सिख प्रधानमंत्री’ नहीं थे और यदि थे तो क्या उनके उस विधेयक को केवल इसलिए फाड़ दिया गया था कि वह ‘ सिख प्रधानमंत्री’ थे ?
मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए भारत अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर गंभीरता से आगे बढ़ना आरंभ किया। इस मुद्दे पर उनकी भरपूर आलोचना हुई , परंतु वह शांत मन से आगे बढ़ते रहे। इस समझौते के लागू होने से भारत को परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह से छूट मिली। इसके तहत भारत को अपने नागरिक और सैन्य परमाणु कार्यक्रमों को अलग करने की अनुमति मिली। इस समझौते के अंतर्गत भारत को उन देशों से यूरेनियम आयात करने की अनुमति मिली, जिनके पास यह तकनीक थी।
माना कि डॉ मनमोहन सिंह की कार्यशैली एवं उनका मौन रहना कई बार लोगों को चुभता था । लोगों को यह कहने का भी अवसर मिलता था कि वह तनिक भी स्वाभिमान नहीं रखते थे, परंतु इसके उपरांत भी हम भारत की उस परंपरा में विश्वास रखते हैं जिसमें किसी की ‘ लाश’ पर राजनीति नहीं की जाती है । उस दिन सभी लोग जाने वाले के प्रति मतभेदों को एक ओर रखकर उसे श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। हम भी इसी भाव से डॉ मनमोहन सिंह को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
मुख्य संपादक, उगता भारत