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राजनीति संपादकीय

मोहन भागवत के बयान और मोदी सरकार

भाजपा जिस हिंदुत्व के सहारे सत्ता में पहुंची थी यदि वह स्वयं या उसका मार्गदर्शक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व की ओर से मुंह फेरकर खड़े हुए या उन्होंने कांग्रेस की भांति किसी दोगली विचारधारा को अपनाकर उसे हिंदुत्व का स्वरूप देने का प्रयास किया तो देश की जनता उन्हें माफ नहीं करेगी। यह शीशे पर लिखी इबारत के समान स्पष्ट है कि देश के जनमानस ने भाजपा को सत्ता शीर्ष पर केवल इसलिए पहुंचाया है कि वह वीर सावरकर जी के विशुद्ध हिंदुत्व को अपना आदर्श मानती रहेगी। सावरकर जी ने कहा था कि “राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैनिकीकरण” आवश्यक है। यदि अभी तक के भाजपा के ११ वर्षीय शासन पर विचार किया जाए तो पता चलता है कि भाजपा राजनीति का हिंदुकरण करने से भी डरती रही है, हिंदुओं का सैनिकीकरण तो भी बहुत दूर की बात है। देश की जनता और विशेष रूप से बहुसंख्यक हिंदू समाज बहुत गहराई से वस्तुस्थिति पर दृष्टि गड़ाए बैठा है।

भाजपा को इस बात को समझना होगा कि वह देश के बहुसंख्यक समाज के सीसी कैमरे की सीमाओं में है। अब वह समय गया जब राजनीतिक दल कोई भी आश्वासन या झूठा वादा देकर चुनाव जीत जाते थे और फिर चुनाव जीतने के पश्चात उस आश्वासन या झूठे वादे से मुकर जाते थे। परिवर्तित परिस्थितियों में लोग प्रत्येक राजनीतिक दल के चुनावी एजेंडा और घोषणा पत्र को उसका वचन पत्र मानकर याद रखते हैं। अतः भाजपा को देश के जागरूक मतदाताओं की मन:स्थिति को भांपना होगा।

इस समय भाजपा के प्रति आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के जिस प्रकार के बयान आ रहे हैं, उनमें बहुत अधिक संतुलन दिखाई देने के उपरांत भी भाजपा के लिए मुश्किलें खड़े करने वाले संकेत भी स्पष्ट पढ़े जा सकते हैं। हम सभी भली प्रकार जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी को ‘फील गुड’ की बीमारी बहुत शीघ्रता से हो जाती है। ‘फील गुड’ एक ऐसी बीमारी है, जिसमें रोगी अहमकेंद्रित होकर एक अलग ही प्रकार के अहंकार में फूल जाता है। उसे यह भ्रम हो जाता है कि तेरी सर्वत्र जय जयकार हो रही है और अब तुझे पराजित करने वाला कोई नहीं है। 2024 में संपन्न हुए लोकसभा के चुनाव के समय भाजपा ने अपने इसी प्रकार के अहंकार को प्रकट किया था और इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यहां तक कह दिया था कि अब हमको आरएसएस की आवश्यकता नहीं है।

इसके पश्चात बहुत ही शांत रहकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भारतीय जनता पार्टी की शांत धुलाई करनी आरंभ कर दी। भाजपा यद्यपि कह रही है कि अब धुलाई बहुत हो चुकी है, अब पूर्णविराम लगा दो। परंतु भागवत हैं कि मान नहीं रहे हैं। यह ठीक है कि अहंकारी को कुछ अधिक ही दंडित किया जाना चाहिए और जब कोई अहंकारी जानबूझकर गलती कर रहा हो तो उसे मनु की व्यवस्था के अनुसार सर्वाधिक दंड दिया जाना चाहिए। परंतु इसके उपरांत भी हर चीज की अपनी सीमाएं हैं। माना कि भाजपा दंड की पात्र है, परंतु दंड उचित अनुपात से बाहर नहीं जाना चाहिए। हमने अपनों को ही अकल सिखाने के बहाने इतिहास में ऐसी कई भूलें की हैं, जिनकी क्षतिपूर्ति आज तक नहीं हो पाई है। हम लड़ते रह गए और शत्रु हमारी लड़ाई का लाभ उठा गया। उस इतिहास को और उसकी क्रूर परिणति को दोहराने की आवश्यकता नहीं है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी का अभी का ताजा बयान है कि “राम मंदिर के साथ हिंदुओं की श्रद्धा है लेकिन राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वो नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिंदुओं का नेता बन सकते हैं, ये स्वीकार्य नहीं है।” संघ प्रमुख का बयान देखने में तो बहुत संतुलित लगता है, पर यह जिन लोगों के लिए कहा गया है, उनको गहरे घाव दे गया है। कई लोग हैं जो बहुत बेचैनी के साथ अभी तक अपने-अपने दर्द को सहला रहे हैं। कई लोग ऐसे हैं जो दिन प्रतिदिन मंदिर मस्जिद को लेकर कई प्रकार के बयान देते हुए दिखाई दे रहे थे, उनके चेहरे भी अब असहज से हो गए हैं। हमें ध्यान रखना चाहिए कि जब राम मंदिर के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सड़कों पर उतरा था, तब उसके नेतृत्व ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि इस लड़ाई को हाथ में लेना है तो कम से कम 30 वर्ष तक संघर्ष करना होगा। तत्कालीन राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख की यह बात सत्य ही सिद्ध हुई। इसका अभिप्राय था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नेतृत्व देर तक और दूर तक लड़ना जानता है। वह असीम धैर्य को धारण कर आगे बढ़ने को ही राष्ट्रहित में उचित मानता है।

आज जिस प्रकार कुछ नेता फटाफट मंदिर मस्जिद के बयान देने में शीघ्रता करते हैं, वह यह नहीं जानते कि इस प्रकार के बयानों का परिणाम क्या होगा ? इस प्रकार के बयानों से निश्चय ही उन लोगों को संभलने और बहुसंख्यक समाज के विरुद्ध दुष्प्रचार करने का अवसर उपलब्ध होगा जो निरंतर हिंदुत्व का विरोध करते रहे हैं और जिन्होंने अतीत में इस प्रकार के पाप किए हैं। जिनका अब हिसाब होता हुआ दिखाई दे रहा है। ये लोग नहीं चाहेंगे कि हिसाब पूर्णतया पाक साफ हो जाए। ये हिंदू मुस्लिम को मंदिर मस्जिद के मुद्दे पर उलझाए रखने में रूचि रखेंगे। यदि हमने अपने राष्ट्रीय परिवेश को अपने आप ही विद्रूपित करने का प्रयास किया तो इससे वैश्विक मंचों पर भी अपने प्रस्ताव को मनवाना या आगे बढ़ाना हमारे लिए दुष्कर हो जाएगा। इसलिए शोर कम और काम अधिक होना चाहिए। कदाचित इसी ओर मोहन भागवत जी ने देश की वर्तमान हिंदू राजनीति का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से हिंदुत्व निकल जाए। ऐसा भी कभी संभव नहीं है कि वह सावरकर से दूर हो जाए, तो फिर ऐसा क्या है कि मोहन भागवत जी को इस प्रकार के बयान देने पड़ रहे हैं ? हमारा मानना है कि वह काम करने पर ध्यान देना चाहते हैं, जो लोग अपने बड़बोलेपन के कारण माहौल को बिगाड़ने का काम करते हैं, उन पर वह अंकुश चाहते हैं। केंद्र सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

– डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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