Categories
कविता

भारत अपना प्यारा हमको

जहां लेना जन्म समझते हैं,
सौभाग्य देव अपने मन में।
उसको हम भारत कहते हैं,
नहीं और कहीं जगती भर में।।

नदियों की कल कल प्यारी है,
झरने भी गीत सुनाते हैं।
धरती से बादल मिलने को ,
रिमझिम का गीत सुनाते हैं।।

जहां आनंदी हमको धूप मिले,
नव संदेश मिले, उपदेश मिले।
जगती भर से कहीं अधिक ,
जहां रंग बिरंगे फूल खिले।।

हरियाली अनुपम वृक्षों की,
जहां पपीहा बोले, नाचे मोर।
कोयल कू- कू करके बोले,
गुंजित होते नभ के छोर।।

भारत अपना प्यारा हमको,
पहचान विश्व में अपनी है।
सर्वोच्च शिखर पर भारत मां,
स्थापित फिर से करनी है।।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version