कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी इन दिनों एक ‘ ‘अज्ञात ‘ बीमारी से पीड़ित हैं । जिसके लिए वह अमेरिका जाकर भी अपना उपचार करा आई हैं । उन्होंने अपनी इस बीमारी के दृष्टिगत ही अपने बेटे राहुल गांधी को अपना उत्तराधिकारी बना कर राहत की सांस ली थी । परंतु राहुल उनके लिए स्वयं एक ‘बीमारी ‘ सिद्ध हुए । जिन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद को ‘ लात ‘ मारकर उसे फिर सोनिया गांधी की ओर से सरका दिया ।इस प्रकरण में मुझे एक प्रेरक प्रसंग की स्मरण हो आता है ।एक बार की बात है, एक निःसंतान राजा था, वह बूढा हो चुका था और उसे राज्य के लिए एक योग्य उत्तराधिकारी की चिंता सताने लगी थी। योग्य उत्तराधिकारी की खोज के लिए राजा ने पूरे राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि अमुक दिन सायंकाल को जो मुझसे मिलने आएगा, उसे मैं अपने राज्य का एक भाग दूंगा। राजा के इस निर्णय से राज्य के प्रधानमंत्री ने रोष जताते हुए राजा से कहा, “महाराज ! आपसे मिलने तो बहुत से लोग आएंगे और यदि सभी को उनका भाग देंगे तो राज्य के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। ऐसा अव्यावहारिक काम न करें।”राजा ने प्रधानमंत्री को आश्वस्त करते हुए कहा, ”प्रधानमंत्री जी, आप चिंता न करें, देखते रहें, क्या होता है।’ निश्चित दिन जब सबको मिलना था, राजा ने राजभवन के उद्यान में एक विशाल मेले का आयोजन किया। मेले में नाच-गाने और शराब की महफिल जमी थी, खाने के लिए अनेक स्वादिष्ट पदार्थ थे। मेले में कई खेल भी हो रहे थे।राजा से मिलने आने वाले कितने ही लोग नाच-गाने में अटक गए, कितने ही सुरा-सुंदरी में, कितने ही आश्चर्यजनक खेलों में व्यस्त – मस्त हो गए तथा कितने ही खाने-पीने, घूमने-फिरने के आनंद में डूब गए। इस तरह समय बीतने लगा।
पर इन सभी के बीच एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसने किसी चीज की तरफ देखा भी नहीं, क्योंकि उसके मन में निश्चित ध्येय था कि उसे राजा से मिलना ही है। इसलिए वह उद्यान पार करके राजभवन के दरवाजे पर पहुंच गया। पर वहां खुली तलवार लेकर दो चौकीदार खड़े थे। उन्होंने उसे रोका। उनके रोकने को अनदेखा करके और चौकीदारों को धक्का मारकर वह दौड़कर राजमहल में चला गया, क्योंकि वह निश्चित समय पर राजा से मिलना चाहता था। जैसे ही वह भीतर पहुंचा, राजा उसे सामने ही मिल गए और उन्होंने कहा, ‘मेरे राज्य में कोई व्यक्ति तो ऐसा मिला जो किसी प्रलोभन में फंसे बिना अपने ध्येय तक पहुंच सका। तुम्हें मैं आधा नहीं पूरा राजपाट दूंगा। तुम मेरे उत्तराधिकारी बनोगे। सफल वही होता है जो लक्ष्य का निर्धारण करता है, उसपर अडिग रहता है, रास्ते में आने वाली हर कठिनाइयों का डटकर सामना करता है और छोटी-छोटी कठिनाईयों को उपेक्षित कर देता है।देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी रही कांग्रेस भी इस समय संतानविहीनता की स्थिति से दो चार हो रही है । उस राजा की भांति इस पार्टी को किसी योग्य उत्तराधिकारी की आवश्यकता नहीं रही , इसलिए इसने हर स्थिति में एक ही परिवार के एक ही व्यक्ति को अंदर आने की चाक-चौबंद व्यवस्था की । इसने सुनिश्चित किया कि उस ‘ राजकुमार ‘ के अतिरिक्त अन्य कोई भीतर प्रवेश न करने पाए , इस बात की पूरी सावधानी बरती जाए।सारी कांग्रेस के सारे सिपाही इस बात की सावधानी बरतते हुए पहरे पर खड़े हो गए कि राजभवन में ‘रानी’ की इच्छा के विरुद्ध कोई दूसरा व्यक्ति प्रवेश न करने पाए । रानी ने एक समय निश्चित किया कि अमुक समय मेरे से जो भी मिलेगा , मैं उसको देश का राजा घोषित कर दूंगी। सब कुछ पहले से निश्चित था कि अमुक समय पर रानी का पुत्र ही उससे मिलने आएगा।उधर रानी का पुत्र इस बात से निश्चिंत होकर कि हर स्थिति में रानी उसे ही अपना उत्तराधिकारी घोषित करेगी , घूमने यूरोप चला गया । वहां मौज मस्ती करके पर्याप्त देरी करके राजभवन में आया। रानी ने अप्रत्याशित रूप से हुए विलंब को क्षमा करते हुए ममता में बहकर अपने इसी पुत्र को देश का अर्थात पार्टी का राजा बना दिया।मित्रो ! पहले राजा ने जब अपने उत्तराधिकारी का चुनाव किया तो वह अपने सही चुनाव में इसलिए सफल हुआ कि उसका उत्तराधिकारी इधर-उधर ना भटककर सीधे अपने गंतव्य और अपने लक्ष्य को भेदता हुआ राजा के पास पहुंचा। राजा ने समझ लिया कि किसी भी प्रलोभन और दबाव व तनाव में आकर यह व्यक्ति कभी कोई ऐसा निर्णय नहीं लेगा जो जनहित के विपरीत हो । अतः इसे किसी भाग का राजा न बनाकर संपूर्ण राज्य भी दे दिया जाए तो यह उचित रहेगा। राजा ने देखा कि यह व्यक्ति चरित्रवान है जो सुरासुंदरी या भोग ऐश्वर्य के प्रलोभन में न फंस कर जनहित को लक्ष्य में रखकर अपने गंतव्य पर पहुंचा है । इसलिए राजा ने उसके संस्कार और चरित्र को सम्मानित करते हुए उसे राजा घोषित किया।इधर सोनिया का लाल राहुल रहा । जो पता नहीं कहां कहां विलंब करके बहुत देर से माता के भवन में पहुंचा । माता ने ममता लुटाते हुए अपने बेटे का राजतिलक तो कर दिया पर क्योंकि उसे प्रमाद , आलस्य व संस्कारहीनता ने आकर घेर लिया था , इसलिए वह सफल नहीं हो पाया।जब लक्ष्य के प्रति लक्ष्य को भेदने वाला ही ढीला रह जाता है , उसके हाथ कांप जाते हैं तो निशाने पर तीर लगता नहीं । तब वह कोपभवन में जाकर अकेला पड़ा मक्खी मारता है । राहुल गांधी को आज अपना अंतरावलोकन करना चाहिए । उन्हें समझना चाहिए कि वह जिस कुर्सी पर जाकर बैठे थे , उसको पाते समय वह कितने संस्कारित , कितने मर्यादित , कितने संतुलित और कितने श्रद्धालु थे ? साथ ही यह भी विचार करें कि जब वह कुर्सी को प्राप्त कर रहे थे तब उनका लक्ष्य उनकी दृष्टि में कितना प्रबलता के साथ बैठा हुआ था ? वह यह भी विचार करें कि कुर्सी को पाते समय वह कांप क्यों रहे थे ? कुर्सी को पाकर वह अपने विरोधियों के प्रति बौखलाहट में क्यों आते थे ?आवश्यकता कांग्रेस को मंथन करने की नहीं है ,कांग्रेस के इस नेता को मंथन करने की आवश्यकता है। यदि वह इन प्रश्नों का उत्तर इमानदारी से खोज लें और सोच लें कि वह ही लक्ष्य के प्रति समर्पित नहीं थे , उनका लक्ष्य ही उनकी दृष्टि में नहीं था और उनके हाथ भी कांप रहे थे और साथ ही सांस भी तेज चल रही थी , तो वह इस प्रश्न का उत्तर अपने आप खोज लेंगे । तब उन्हें यह भी पता चल जाएगा कि एक अज्ञात प्राणलेवा बीमारी से ग्रसित उनकी मां को फिर अध्यक्ष का दायित्व यदि संभालना पड़ रहा है तो वह स्वयं भी अपनी मां के लिए एक प्राण लेवा बीमारी बनकर रह गए हैं। देश ने राहुल गांधी को कांग्रेस का सम्मानित अध्यक्ष स्वीकार किया परंतु उनके कांपते हुए हाथों ने और लक्ष्य के प्रति उनके प्रमाद ने उन्हें स्वयं ही कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनने दिया । उसी का परिणाम है कि आज वह हीन भावना के कारण कांग्रेस के कोप भवन में जाकर एकांत में पड़े हैं।डॉ राकेश कुमार आर्यसंपादक : उगता भारत