जो प्रभु के अभिमुख रहे,
छूटता जा संसार।
जैसे रवि के सामने,
नहीं टिकै अन्धकार ॥2740॥
भावार्थ :- मेरे प्रिय पाठकगण इसे एक दृष्टान्त से समझे । जिस प्रकार सूर्य जब पीठ पीछे होता है, तो व्यक्ति अथवा की छाया आगे-आगे होती है, जो कामी-कभी बाधा भी बन जाती है किन्तु व्यक्ति सूर्य के अभिमुख होता है,तो यही पीठ पीछे चली जाती करती है किन्तु सूर्य जब
शिखर पर होता है, तो यही छाया पैरों आकर लोप हो जाती है। ठीक इसी प्रकार जिन व्यक्तियों की पीठ परम पिता परमात्मा से फिरी हुई है, वे सांसारिक प्रपंचों में उलझे रहते है, मनोविकार और संसार के शौक उन्हें घेरे रहते हैं। भय, तनाव, चिन्ता से अभिशप्त होते हैं। उनका मन खिन्न तथा आँखो में निराशा का अन्धकार होता है और चेहरे पर चिन्ता के चित्र स्पष्ट दृष्टि गो चर होते हैं। वे आत्महीनता से भी ग्रस्त होते और संसार को दुःखों का घर कहते हैं, किन्तु जो व्यक्ति परम पिता परमात्मा के अभिमुख होते हैं, उनके लिए सांसारिक प्रपंचों अथवा प्रलोभनों की छाया पीठ पीछे रहती है अर्थात आड़े नहीं आती है। उनके मनोविकार और शोक ऐसे दूर हो जाते है जैसे सूर्य के सामने करोड़ों वर्ष का अन्धकार देखते-देखते छु-मन्तर हो जाता है। ईश्वर के अभिमुख होने के कारण ऐसे व्याक्ति साहस से और आत्मविश्वास से ओत-प्रोत रहते हैं। संकट के समय मे भी अपना धैर्य बनाये रखते हैं। दूसरों को होंसला देते । उनके हृदय में खिन्नता नहीं, उत्साह होता है, उल्लास होता है, आँखों में कल्पना- लोक होता, सुनहरे सपने होते हैं। उनका आभामण्डल के भूषण दिव्यता और सौम्यता होती है। कहने का भाव यह है कि मानन जीवन बहुत ही दुर्लभ है। इसे सार्थक कीजिए प्रभु के अभिमुख रहिए, प्रभुसे सायुज्यता बनाइये, उसकी दिव्य शक्तियों के पात्र बनइये और सुख-शान्ति की सम्पदा पाइये। अर्थात् सांसारिक ऐश्वर्य के साथ-साथ मन की शान्ति को
भी प्रभु से पाइये। याद रहेमां की शांति प्रभु के चरणों में ही मिलेगी संसार में नहीं।
क्रमशः