(यह लेख वाला हम पंडित रघुनंदन शर्मा जी की वैदिक सम्पत्ति नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।)
आर्य वस्त्र और वेशभूषा
गतांक से आगे …
अर्थ में भोजन के बाद दूसरा नम्बर वस्त्रों का है। भोजन की तरह आर्य सभ्यता में वस्त्रों पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है और सिलाई का काम जानते हुए भी आयों ने अपनी सभ्यता में कभी सिले हुए वस्त्रों को स्थान नहीं दिया। बुद्ध भगवान् के समय तक इस देश के आर्य सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनते थे।क्योकि बौद्ध काल के पूर्व लिखित साहित्य में कहीं भी सिले हुए वस्त्रो का वर्णन नहीं है। बौद्ध मूर्तियों में सिले हुए वस्त्रों का कहीं दर्शन नहीं होता। बंगाल और उड़ीसा आदि प्रांतों में अब भी ग्रामीण आर्य सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनते। कुलीन आर्यों में अब तक पंक्तिभोजन के समय, देवाराधन अथवा यज्ञादि के समय और यज्ञोपवीतादि संस्कारोंके समय सिले हुए वस्त्रों का उपयोग नहीं होता। देव पूजन के समय यदि कोई सिला हुआ वस्त्र पहने होता है, तो उसका बटन खुलवा दिया जाता है। इसके सिवा विवाह के समय वर और वधू को वस्त्र और उपवस्त्र ही के देने का विधान है, सिला हुआ वस्त्र देने का नहीं। वस्त्र और उपवस्त्र का आधुनिक नाम धोती उपर्ना है। बंगाल और उड़ीसा में यह धोती उपर्ना एक ही में बुना हुआ बिकता है। नदिया शान्तिपुर का धोती उपर्ना प्रसिद्ध था। इस में एक धोती और एक डुपट्टा ही होता था। यही पोशाक स्त्रियों का भी था। वे भी एक धोती और एक चादर ही धारण करती थी। अब भी पंजाब, युक्तप्रांत,बगाल और महाराष्ट्र में यह रिवाज है। महाराष्ट्र में तो गर्मी के दिनों में भी स्त्रिया शाल ओढ़ती हैं। इन समस्त रिवाजों से ज्ञात होता है कि आर्य सभ्यता में सिले हुए वस्त्र के लिए स्थान नहीं है। उनकी असली आर्य पोशाक धोती और दुपट्टा ही है। महाभारत मीमांसा पृ० २६३-२६४ में श्रीयुत रायबहादुर चिन्तामणि विनायक वैद्य, एम० ए० लिखते हैं कि ‘महाभारत के समय भारती आर्य पुरुषों की पोशाक बिलकुल सादी थी। दो धोतियाँ ही उनकी पोशाक थी। एक घोती कमर के नीचे पहिन ली जाती थी और दूसरी शरीर पर चाहे जैसे डाल ली जाती थी । उल्लिखित दोनों वस्त्रों के सिवा भारती आर्यों की पोशाक में और कपड़े न थे।आजकल स्त्रियाँ जैसे लँहगे आदि वस्त्र पहनती हैं, वैसे उस समय न थे । पुरुषों की तरह, पर उनके वस्त्रों से लम्बे, स्त्रियों के वस्त्र होते थे ।
वस्त्रों की आवश्यकता के दो ही कारण हैं। एक वर्षा और सर्दी गर्मी से रक्षा और दूसरा लज्जा निवारण । सर्दी गर्मी और वर्षा के ही कारण रुई, ऊन और चर्म अथवा वल्कल अदि वसत्रो का विधान है। परन्तु आर्यों की उच्चतम आर्दश सभ्यता में ऊन और रेशम के वस्त्रों का विधान नहीं है। संन्यासी के लिए ऊन और रेशम का वस्त्र पहनना उचित नहीं समझा गया। हाँ, प्रवास के समय पहाड़ी प्रदेशों में जहाँ बर्फ पड़ता है, वहाँ के लिए ऊन के वस्त्र उपयोगी कहे गये हैं। अब रही लज्जानिवारण की बात। वह सर्दी गर्मी से अधिक आवश्यक है। क्योंकि परमात्मा की यही आज्ञा है कि गुप्ताङ्गों को खुला न रक्खा जाय। उसने पशु और पक्षियों के भी गुप्ताङ्गों को पूंछ से ढक दिया है। इसलिए मनुष्य को उचित है कि वह गुप्ताङ्गों को ढका रक्खे। वेद में लिखा है कि मा ते कशप्लको दृशन् अर्थात् तेरे गुप्ताङ्ग न दिखने पावें। इसलिए गुप्ताङ्गों का ढकना आवश्यक है। पर स्मरण रखना चाहिये कि गुप्ताङ्गों का पर्दा और सर्दी गर्मी से रक्षा बहुत ही थोड़े और बहुत ही सादे वस्त्रों में हो जाती है। इसलिए जहाँ आर्य सभ्यता शरीररक्षा और पर्दा के लिए वस्त्रों की अनिवार्य आज्ञा देती है वहाँ कामकाज में असुविधा और विलास, असमानता तथा ईर्ष्या द्वेषादि के उत्पन्न करनेवाले वस्त्रों के उपयोग को मना भी करती है। आर्यसभ्यता उतने ही और उसी प्रकार के वस्त्रों की आज्ञा देती है, जिनसे कामकाज करने में सुविधा हो। धोती ऐसी ही पोशाक है। धोती की उपयोगिता के विषय में मिसिज मेनिङ्ग (Maning) कहती हैं कि, ‘समस्त पोशाकों में घोती पूर्ण है और चलने-फिरने, उठने-बैठने में सुविधा देनेवाली है। इससे अच्छी दूसरी पोशाक असम्भव है’। इसी तरह लार्ड डफरिन कहते हैं कि ‘पोशाक के विषय में पश्चिम को पूर्व से बहुत कुछ सीखना है। इस धोती और चादर की पोशाक से जहाँ अंगरक्षा पर्दा और कामकाज में सुविधा होती है, वहाँ समाज में विलास और ईर्ष्या द्वेष नहीं बढ़ता । समाज को विलासी और असमान बनानेवाली पोशाक ही है। अपने घर में मनुष्य ने चाहे जो कुछ खाया हो, पर उसका प्रत्यक्ष अनुभव समाज को नहीं होता। किन्तु पोशाक बाह्य आडम्बर है- यह दिखलाई पड़ती है-इसलिए समाज में विलास और असमानता जन्य ईर्ष्या द्वेष के उत्पन्न हो जाने का भय रहता है। तर्ज, फैशन और बनावट से ही समाज में असमानता उत्पन्न होती है, इसीलिए आर्य सभ्यता में सादी सीधी धोती और चादर हो के पहिरने ओढ़ने की आज्ञा है।
क्रमशः
प्रस्तुति – देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन – उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।