हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश का पावन पर्व
श्री मोहन कृति आर्ष तिथि पत्रम (वैदिक पंचांग) किया गया जारी
ग्रेटर नोएडा (विशेष संवाददाता) यहां स्थित गामा सेक्टर में एक विशेष सांस्कृतिक भव्य आयोजन के माध्यम से आगामी संवत का वैदिक पंचांग जारी किया गया। श्री मोहन कृति आर्ष तिथि पत्रम (वैदिक पंचांग) के संपादक और आर्षायण ट्रस्ट के अध्यक्ष आचार्य दार्शनेय लोकेश ने हमें बताया कि वे प्रत्येक वर्ष इस वैदिक पंचांग को जारी करते हैं। उन्होंने कहा कि प्राचीनतम काल से भारत बड़े दिन से अर्थात 25 दिसंबर से 3 दिन पहले आने वाली इस वैदिक तिथि को बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाता आया है। हम सबके लिए यह सबसे बड़ा त्यौहार रहा है। इस दिन माघ मास शिशिर ऋतु को प्रारंभ करता है। जो कि उत्तरायण का प्रथम दिन है। उसी को माघ या मकर संक्रांति कहते हैं। 14 जनवरी को यह त्यौहार गलत ढंग से मनाया जाता रहा है। उन्होंने कई ऐतिहासिक ग्रन्थों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि प्राचीन काल से ही मकर संक्रांति 22 दिसंबर को मनाई जाती रही है। हम भारतवासियों को अपनी गलतियों को शीघ्र सुधार लेना चाहिए जिससे कि सनातन का प्रचार प्रसार करने में हमें सफलता प्राप्त हो सके।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए यज्ञ की ब्रह्मा डॉ कल्पना आर्या ने कहा कि भारत के सनातन समाज के लिए इस समय कई प्रकार की चुनौतियां हैं। उसके अस्तित्व के लिए संकट सामने खड़ा है। हमारी नई पीढ़ी जिस दिशा में जा रही है, वह एक चिंताजनक परिवेश सृजित करने के लिए पर्याप्त है। इसका कारण केवल एक है कि हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान नहीं पा रहे हैं। समय की आवश्यकता है कि आचार्य श्री लोकेश जी जैसे विद्वानों का मार्गदर्शन लेकर हम अपने सनातन के मूल्यों को पहचानने का काम करें। इस अवसर पर भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता, सुप्रसिद्ध इतिहासकार और आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के अध्यक्ष डॉ राकेश कुमार आर्य ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विज्ञान के साथ हमारे सनातन का प्राचीन काल से ही गहरा संबंध रहा है। ज्योतिष एक विज्ञान का विषय है। जिसको लेकर कभी वराह मिहिर के लिए सम्राट विक्रमादित्य ने दिल्ली में मिहिरावली नामक स्थान पर कुतुबमीनार (मूल रूप में एक वेधशाला) का निर्माण कराया था। इसमें अनेक वैज्ञानिक नक्षत्र आदि के आधार पर शोध किया करते थे। हमारी वह ऋषि परंपरा लुप्त कर दी गई। आज हम अपने ऋषियों की संतान होकर भी उनके प्रति उतने निष्ठावान नहीं हैं ,जितने सेंट जेम्स, सेंट थॉमस और ऐसे ही अन्य कथित संतो के समर्थक और अनुयाई बना दिए गए हैं। समय की आवश्यकता है कि हम अपने वास्तविक इतिहास को जानें, अपने ऋषियों के वैज्ञानिक चिंतन को जानें। उन्होंने कहा कि हमारा कैलेंडर पूर्णतया वैज्ञानिक होता था जिस पर आज अथक परिश्रम कर आचार्य श्री लोकेश जी भगीरथ प्रयास कर रहे हैं। अपने वैज्ञानिक वैदिक पंचांग के माध्यम से वह एक नई गंगा को मैदान में लाना चाहते हैं।
कार्यक्रम में आर्य जगत के सुप्रसिद्ध सन्यासी स्वामी ऋतस्पति जी महाराज ने अपने विचार व्यक्त करते हुए सभी आर्य जनों को इस बात के प्रति सचेत किया कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए उन्हें आज के कथित विज्ञान की ओर न झुककर भारत के ऋषियों के चिंतन की ओर विचार करना चाहिए। उसी से हम वैज्ञानिक श्रेष्ठ समाज का निर्माण करने में सफल हो सकेंगे। आज की परिस्थितियां बहुत ही भयानक हो चुकी हैं, परंतु हमें घबराने की आवश्यकता नहीं है। हमारे पास अपना सभी कुछ उत्कृष्टतम है। हम उसी को अपनाएं और भारत को विश्व गुरु बनाने के प्रति संकल्पित हों।
कार्यक्रम में आर्य जगत के विद्वान प्राचार्य गजेंद्र सिंह आर्य द्वारा भी अपने विचार रखे गए। उन्होंने कहा कि वैदिक संस्कृति का आधार विज्ञान है। हमारा सनातन धर्म विज्ञान के साथ सबसे उत्तम समन्वय करके चलता है। सृष्टि चक्र सारा का सारा ऋत पर आधारित है और ऋत और सत्य विज्ञान पर आधारित हैं। इस प्रकार विज्ञान वाद से बाहर जाना सनातन से बाहर जाना माना जाता है। समय की आवश्यकता है कि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले भी सनातन को जानें।
इस अवसर पर राजकुमार आचार्य सहित कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम को सफल बनाने में विभु विश्वामित्र रावत, चंद्र प्रकाश यादव, नवीन कुलश्रेष्ठ ,राघवेंद्र सोलंकी आदि का विशेष योगदान रहा। कार्यक्रम का सफल संचालन आचार्य श्री दार्शनेय लोकेश द्वारा किया गया। कार्यक्रम में आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के कोषाध्यक्ष आर्य सागर खारी बोल व प्रतिनिधि सभा के सदस्य महेंद्र सिंह आर्य की विशेष उपस्थिति रही।
ज्ञात रहे कि आचार्य श्री उपरोक्त परिश्रम को विगत कई वर्षों से करते आ रहे हैं। उनका यह पंचांग तेजी से विद्वानों की सम्मति प्राप्त करता जा रहा है। अपनी धुन के धनी आचार्य श्री दार्शनेय लोकेश जी अपने परिश्रम में निरंतर लगे हुए हैं। उनका प्रयास है कि यह पंचांग राष्ट्रीय नहीं, अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करे और भारत अपने वैज्ञानिक चिंतन के आधार पर समस्त मानव जाति का नेतृत्व करने की स्थिति को प्राप्त हो।