आनंद बने जीवन परिभाषा
विश्व-परिवार समझ अपना,
आर्यत्व हृदय में वास करे।
देवत्व प्राप्ति हेतु मन में,
श्रेष्ठत्व भाव सदा प्रवास करे।।
दूर हटा और दूर हटा,
घृणा के भाव बसे मन में।
सहज प्रवाह में बहता चल,
आनंद मिलेगा जीवन में।।
जीवन की ज्योति जलती रहे,
दूर हताशा हो मन की।
श्रृंगार हृदय का करने को ,
उत्साह हो पूंजी जीवन की।।
उत्सर्ग में उत्सव मनता हो,
उत्साह का उत्स उसे कहते ।
आनंद बने जीवन परिभाषा,
हम जीवन बोध उसे कहते ।।
आनंद स्रोत हृदय में फूटे,
जीवन ही उत्सव बन जाए।
ऊंचा देख मनोबल तेरा,
पर्वत भी शीश झुकाए।।
मुख्य संपादक, उगता भारत