आज हमारे देश का इतिहास करवट ले रहा है और कुछ सीमा तक उसे करवट दिलवाई भी जा रही है।
हमारे ऐसा कहने का अभिप्राय है कि जब हम विश्व नेतृत्व की स्थिति में आते जा रहे हैं और विश्व को कोरोना वैक्सीन देने सहित कई क्षेत्रों में मार्गदर्शन दे रहे हैं तब हम कह सकते हैं कि हमारा इतिहास करवट ले रहा है। हम नए युग की ओर अर्थात् उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। इसी प्रकार जब हम यह कहते हैं कि हम इतिहास को करवट दिलवा रहे हैं तब हमारे कहने का अर्थ होता है कि इतिहास के विलुप्त अध्यायों को फिर से इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों के रूप में स्थापित कराने के हमारे सभी कार्य इतिहास को करवट दिलाने के समान हैं।
हमारे गौरवमयी और पराक्रमी इतिहास के स्वर्णिम अध्याय के रूप में सुविख्यात रहे बहराइच के राजा सुहेलदेव पर जब मैंने अपनी पुस्तक ‘भारत का 1235 वर्षीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास भाग-1’ में प्रकाश डाला था तो उनके इतिहास लेखन के समय मेरे मन में यही विचार आ रहे थे कि ऐसे महान् शासक, महान् देशभक्त और महापराक्रमी वीर योद्धा को इतिहास में उचित स्थान कब मिलेगा? मेरा विचार था कि ऐसे महापुरुषों की जयंतियाँ मनाकर हम अपनी वर्तमान पीढ़ी को गम्भीर संदेश देने का काम प्रारंभ करें। राष्ट्रीय स्तर पर यह काम हमारी सरकारों को ही करना चाहिए। हमारा मानना है कि इन महापुरुषों की प्रतिमाएँ स्थापित की जाएँ जिससे हमारी पीढ़ी को अपने गौरवमयी अतीत का समुचित बोध हो सके।
अब अर्थात् 16 जनवरी, 2021 को जबकि देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने महाराजा सुहेलदेव स्मारक और चित्तौरा झील के विकास कार्य की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आधारशिला रखी है तो हमें बहुत ही अधिक प्रसन्नता हुई है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री श्री मोदी ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत के इतिहास के लेखन में भयंकर भूलें की गई हैं। उन्होंने कहा कि इतिहास के कई नायकों के साथ अन्याय किया गया है। श्री मोदी ने कहा कि उनकी सरकार पुरानी गलतियाँ सुधार रही है। चाहे सरदार पटेल हों या फिर अम्बेडकर- हम चाहते हैं कि उनके किए गए कार्य को इतिहास में उचित सम्मान और स्थान प्राप्त हो। प्रधानमंत्री श्री मोदी का यह कहना भी सर्वथा उचित ही है कि भारत का इतिहास सिर्फ वह नहीं है, जो देश को गुलाम बनाने वालों, गुलामी की मानसिकता के साथ इतिहास लिखने वालों ने लिखा। भारत का इतिहास वह भी है जो भारत के सामान्य जन में, भारत की लोकगाथाओं में रचा-बसा है। जो पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ा है।
सचमुच महाराजा सुहेलदेव भारतीय इतिहास के वह महान् नक्षत्र हैं, जिन्होंने महमूद गजनवी के भांजे सालार मसूद की लाखों की सेना को गाजर मूली की भाँति काट कर फेंक दिया था। तब सालार मसूद की सेना का एक सैनिक भी ऐसा नहीं बचा था, जिसने अपने देश जाकर यह बताया हो कि हिंदुओं की महान् प्रतापी सेना ने हमारी 11 लाख की सेना को किस प्रकार काट कर फेंक दिया है। महाराजा सुहेलदेव के साथ गुर्जर परमार वंश और कई अन्य वंशों के उन देशभक्त शासकों का भी सम्मान किया जाना अपेक्षित है, जिन्होंने देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए किए गए इस संघर्ष में राजा सुहेल देव का साथ दिया था।
वास्तव में भारत के इतिहास पर यदि चिंतन किया जाए तो ऐसे अनेकों वीर योद्धा हैं जिनके साथ अन्याय करते हुए उन्हें इतिहास के पृष्ठों में स्थान नहीं दिया गया है। ऐसा न केवल डॉ. अंबेडकर और सरदार पटेल के साथ किया गया है बल्कि गुर्जर वंश के प्रतापी शासकों के साथ भी ऐसा ही अन्याय किया गया है। जिनमें नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वितीय, सम्राट मिहिर भोज आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
इसके अतिरिक्त चन्द्रापीड मुक्तापीड के गौरवपूर्ण कार्यों को भी इतिहास में सही स्थान नहीं दिया गया है। ऐसा ही अन्याय कनिष्क जैसे कई प्रतापी शासकों के साथ किया गया है। इतना ही नहीं, भारत की सीमाओं का सही निर्धारण करने में भी अन्याय स्पष्ट झलकता है। कनिष्क जैसे सम्राटों को विदेशी घोषित किया गया है, जबकि उस समय भारत की सीमाएँ बहुत विस्तृत थीं। आज के दर्जनों देश उस समय की भारत की सीमाओं के भीतर ही थे। उन देशों को भारत से अलग मानकर इतिहास लिखा गया है। इसलिए कनिष्क जैसे कई शासकों को विदेशी घोषित कर दिया गया है। यह केवल इसलिए किया गया है जिससे कि भारत के लोगों में यह विश्वास दृढ़ता के साथ बना रहे कि भारत हमेशा विदेशियों के अधीन रहा है। हमारे जिन इतिहास नायकों के साथ अन्याय किया गया है उन सब को इस छोटे से लेख में स्थान दिया जाना संभव नहीं है। यहाँ जितना हमने लिखा है वह संकेतमात्र ही है।
जिस प्रकार देश के राजनीतिक इतिहास के साथ अन्याय किया गया है, उसी प्रकार देश के सांस्कृतिक इतिहास को भी मिटाने का हर संभव प्रयास किया गया है। जिनमें बहुत से साहित्यकारों को उनकी उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाओं के उपरांत भी इतिहास में कोई स्थान नहीं दिया गया। विज्ञान और कला के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को भी इतिहास से दूर रखा गया है। जिससे ऐसा लगता है कि भारत की साहित्य, कला और विज्ञान के प्रति लंबे समय से कोई रुचि नहीं रही है। जबकि प्राचीन काल से ही साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्र में भारत विश्व का नेतृत्व करता आ रहा था। यह अचानक कैसे हो सकता है कि सारे संसार को अत्यंत प्राचीन काल से इन क्षेत्रों में नेतृत्व देने वाला भारत अचानक बौद्धिक संपदा से वंचित हो गया हो?
जिस प्रकार भारत के महान् प्रजावत्सल शासकों व सम्राटों को इतिहास से मिटा दिया गया, उसी प्रकार प्राणिमात्र के हितचिंतन में साहित्य की रचना करने वाले साहित्यकारों और प्राणिमात्र के कल्याण के लिए विज्ञान के क्षेत्र में अनेकों अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों को भी इतिहास से मिटा दिया गया। आज न केवल डॉ. अम्बेडकर और सरदार पटेल के साथ किए गए अन्याय को ठीक करने का समय है बल्कि नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वितीय और गुर्जर सम्राट मिहिर भोज जैसे अनेकों सम्राटों के उन महान् कार्यों को भी इतिहास में उचित स्थान देने का समय है जिनके माध्यम से उन्होंने अब से लगभग 12 सौ वर्ष पूर्व ‘घर वापसी’ के यज्ञ रचाये थे और हिंदू से मुसलमान बन गए लोगों को फिर से हिंदू बनाकर देश, धर्म व संस्कृति की महान् रक्षा की थी।
इतिहास के ऐसे अनेकों वीर नायकों को प्रकाश में लाने वाले कई इतिहासकारों को भी आज सम्मानित करने की आवश्यकता है, जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से इतिहास की अविरल धारा को भारी उपद्रवों के बीच भी विलुप्त होने से बचाए रखने का सराहनीय कार्य किया है। इनमें कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, डॉ. रतन लाल वर्मा जैसे साहित्यकारों और इतिहासकारों को स्थान दिया जाना अपेक्षित है। इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को सम्मानित करने के लिए प्रधानमंत्री को एक विशेष पुरस्कार की घोषणा करनी चाहिए। जिससे भारत के इतिहास की गंगा को प्रदूषण मुक्त करने में सहायता मिल सके और जिन लोगों ने आज तक इस क्षेत्र में विशेष कार्य किया है उनको अपने किए गए पुरुषार्थ का उचित पुरस्कार प्राप्त हो सके।
श्री मोदी यदि इतिहास की इस पावन गंगा को प्रदूषण मुक्त करना चाहते हैं तो इन सब पर भी कार्य करना होगा। इसके अतिरिक्त सल्तनत काल, मुगल काल, ब्रिटिश काल जैसे विदेशी शासकों के नामों पर इतिहास के काल खंडों का किया गया नामकरण भी हटाया जाना समय की आवश्यकता है। इन काल खण्डों में हमारे जिन वीर योद्धाओं ने देशभक्ति का कार्य करते हुए धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष किए उनके नाम पर कालखंडों का नामकरण किया जाना भी आवश्यक है। विदेशी शासकों के नामों पर गया नामकरण बहुत ही लज्जास्पद है। इससे पाठकों को और विशेष रूप से हमारी युवा पीढ़ी को ऐसा लगता है कि जैसे हमारे पूर्वजों के भीतर तो देश भक्ति का कोई भाव ही नहीं था। इसके लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी को अपने संबंधित मंत्रालय को विशेष निर्देश देने चाहिए।
हम प्रधानमंत्री श्री मोदी के द्वारा इतिहासनायकों को दिए जा रहे इस प्रकार के सम्मान का समर्थन करते हैं और साथ ही उनसे यह अपेक्षा भी करते हैं कि उनके रहते भारत का वास्तविक गौरवपूर्ण इतिहास भारत की युवा पीढ़ी के हाथों में शीघ्र ही आएगा।
क्रमशः
मुख्य संपादक, उगता भारत