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कविता

अंधकार नहीं रोक सका है

जीवन की हारी बाजी को,
जो हार गया- सो हार गया।
जिसने पलटा इस पासे को,
वह पार गया – वह पार गया।।

अंधकार नहीं रोक सका है,
कभी सवेरे को जग में।
गहन निशा भी छंट जाती है,
संकल्प धार लो यदि मन में।।

नियम शाश्वत चलता आया,
जहां अंधेरा, होता वहीं सवेरा।
जहां दुख की बदरी बरसा करती,
होता सुख का वहीं बसेरा ।।

बढ़ता चल – तू बढ़ता चल,
धैर्य पूर्वक तू चलता चल।
हल प्रश्नों का मिलना निश्चित,
विश्वास प्रभु पर करता चल।।

न पूछ जगत से प्रश्नों का उत्तर,
भीतर खोजे हल मिल जाएगा।
जन्म – जन्म का साथी तेरा,
एक दिन निश्चय मिल जाएगा।।

– डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)

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