इच्छाओं के क्षेत्र में दो प्रकार के लोग………
सबके पास कुछ न कुछ सुविधाएं हैं और कुछ-कुछ कमियां भी हैं। उन कमियों को दूर करने के लिए सब में इच्छाएं भी हैं।
इच्छाओं के क्षेत्र में दो प्रकार के लोग संसार में देखे जाते हैं। एक वे, “जो अपने पास उपलब्ध सुविधाओं पर अधिक ध्यान देते हैं। जो वस्तुएं जीवन चलाने के लिए आवश्यक हैं, उनकी प्राप्ति के लिए बुद्धिमत्ता से प्रयत्न करते हैं, और उन्हें प्राप्त कर भी लेते हैं।” “परंतु जो वस्तुएं उनके पास नहीं हैं, और जिनके बिना काम चल सकता है, उनकी प्राप्ति के लिए बहुत अधिक चिंता नहीं करते। उनकी प्राप्ति के लिए अपनी इच्छाओं को बहुत तीव्र नहीं बनाते। क्योंकि वे इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि “आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं, इच्छाएं नहीं।”
दूसरे प्रकार के लोग वे होते हैं, “जो अपने पास उपलब्ध सुविधाओं पर अधिक ध्यान नहीं देते, उन पर संतोष नहीं करते। और जो वस्तुएं उनके पास नहीं हैं, तथा जीवन चलाने के लिए बहुत अधिक आवश्यक भी नहीं हैं, विलासिता की वस्तुएं है, उनके विषय में ही अधिक सोचते रहते हैं। उनको प्राप्त करने की इच्छाएं तीव्र बनाते रहते हैं।”
“दूसरे प्रकार के लोग जो इच्छाओं को ही पूरा करने में लगे रहते हैं, उनकी इच्छाएं सदा बढ़ती रहती हैं, वे कभी भी समाप्त नहीं होती। और जो वस्तुएं उनको प्राप्त नहीं हो पाई, सदा उन्हीं की चिंता में डूबे रहते हैं। वे लोग अपने आप को संसार का सबसे अधिक दुखी व्यक्ति मानते हैं। ऐसे लोग धीरे-धीरे डिप्रेशन में चले जाते हैं। इसलिए दूसरे प्रकार का व्यक्ति बनने से बचें।”
“पहले प्रकार के लोग बुद्धिमत्ता से काम लेते हैं। वे अपनी आवश्यकताएं पूरी करके उतने में ही संतुष्ट रहते हैं, तथा फालतू इच्छाओं को छोड़ देते हैं। वे संसार में सुखी होते हैं।”
“अतः पहले प्रकार का व्यक्ति बनें। अर्थात अपने पास उपलब्ध सुविधाओं से संतुष्ट रहें, और आनंद से जीवन जिएं। अपनी आवश्यकताओं को पूरा अवश्य करें। उसमें आलस्य न करें। परंतु यह बात सदा ध्यान में रखें, कि “सारी इच्छाएं कभी भी पूरी नहीं होंगी।”
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक
निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।