दलितोद्धार सभा के सौजन्य से विचार गोष्ठी हुई संपन्न
सनातन वैदिक दल से अलग नहीं है दलित वर्ग
ग्रेटर नोएडा। यहां स्थित ग्राम छांयसा में एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया । जिसमें ‘ वैदिक सनातन धर्म और दलित समाज की समस्याएं ‘ विषय पर विचार रखे गए विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए निष्कर्ष निकाला गया कि दलितों का यदि सबसे बड़ा कोई हितेषी है तो केवल और केवल आर्य समाज है।
आज जनपद गौतम बुध नगर के छायसा गांव की कॉलोनी में ऐसे ही सदियों से उपेक्षित वंचित लोगों के बीच एक विशेष बैठक का आयोजन किया। जिनका शोषण जातिवादी मानसिकता से ग्रसित कथित उच्च वर्ग के लोगों ने किया और अब उनके ही समाज के दलित नेता कर रहे हैं , जहां उन्हें केवल वोट बैंक की राजनीति की भेट चढा दिया जाता है, उनका सौदा कर दिया जाता है, वहां आज हमने विचार गोष्ठी व सामाजिक समरसता भोज का आयोजन राष्ट्रीय दलित उद्धारिणी सभा के तत्वावधान में किया ।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ इतिहासकार आर्य प्रतिनिधि सभा गौतम बुद्ध नगर के अध्यक्ष डॉ राकेश कुमार आर्य ने अपने विचार रखें । उन्होंने कहा कि डॉ आंबेडकर सच्चे राष्ट्रवादी थे। वह एक ऋषि हृदय के व्यक्ति थे। जिन्होंने इस्लाम व ईसाइयों के खतरों को महर्षि दयानंद की तरह भांप लिया था। डॉक्टर अंबेडकर आर्य समाज के शुद्धि व अछूत उद्धार के कार्यक्रमों के कायल थे। स्वामी श्रद्धानंद को वह दलितों का सबसे बड़ा मसीहा मानते थे। जिन्होंने बगैर राजनीतिक स्वार्थ के लाखों दलितों को सम्मान से जीने का अधिकार दिलाया। उन्होंने कहा कि स्त्रियां घर की लक्ष्मी होती हैं। इन दलित समाज की माताओं के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। तेजस्वी राष्ट्रवादी दुर्गुणों से मुक्त संतान निर्माण की जिम्मेदारी इन्हीं के ही कंधों पर है । डॉ आर्य ने कहा कि कांग्रेस ने दलित समाज का वोट प्राप्त करने के लिए इनका दुरुपयोग किया है। जबकि आर्य समाज ने पहले दिन से दलित समाज को सनातन का एक आवश्यक अंग स्वीकार करते हुए साथ लेकर चलने का काम किया है। डॉ आर्य ने कहा कि डॉ आंबेडकर आर्य समाज की सबको साथ लेकर चलने की नीति के कायल थे। उन्होंने लिखा है कि आर्य समाज जिस प्रकार मनुष्य स्मृति की व्याख्या करता है वह स्वीकार करने योग्य है।
उन्होंने कहा कि जय भीम और जय मीम के आधार पर जो लोग देश के बहुसंख्यक समाज को बांटने का काम कर रहे हैं उन्हें जे एन मंडल की मूर्खताओं का भी ध्यान रखना चाहिए। जिन्होंने इसी नारे को आधार बनाकर पाकिस्तान जाने का निर्णय लिया था, लेकिन बाद में फिर भारत ही लौट कर आना पड़ा था। जब इस्लाम भारत के बहुसंख्यक समाज के बारे में सोचता है तो वह दलित को भी काफिर ही मानता है। उन्होंने कहा कि दलित समाज को भी अपनी ओर से सदाशयता दिखानी चाहिए और साथ ही हिंदू समाज के कथित बड़े वर्ग को भी इस समाज को साथ लेकर चलने के बारे में सोचना चाहिए।
अछूत उद्धार के साथ साथ दलितों को वेद पढ़ने के अधिकार की वकालत भी आर्य समाज ने आजादी से दशकों पूर्व ही कर दिखाई थी। पंजाब संयुक्त प्रांत बम्बई प्रेसिडेंसी से लेकर समस्त उत्तर पश्चिम भारत में दलितों के लिए पाठशाला खोली गई जिनका संचालन आर्य समाज के सुधारकों ने किया। दिल्ली में दलितों के उद्धार के लिए स्वामी श्रद्धानंद ने राष्ट्रीय दलित उद्धारिणी सभा 1920 के आसपास बनाई। जिसने लाखों दलितों के मन में आत्मस्वाभिमान और आत्म गौरव का भाव जागृत किया। वीर सावरकर ने सामाजिक समरसता भोज की प्रेरणा आर्य समाज से ही ली।
इस अवसर पर सैकड़ो दलित परिवार सपरिवार उपस्थित रहे। सभी को नशा व मांसाहार छोड़ने, शुद्ध सात्विक जीवन जीने, वैदिक संस्कृति के आदर्श पथ पर चलने, बाबा साहब अंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं को जीवन में अपनाने के संकल्प के साथ आर्य समाज के वैचारिक आंदोलन जो व्यक्ति को जन्म से नहीं, कर्म से महान श्रेष्ठ मानता है के साथ जुड़ने का संकल्प दिलाया।
इस कार्यक्रम के लिए में कार्यक्रम के संयोजक स्वामी प्राण देव जी का का विशेष धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आर्य समाज के युवा क्रांतिकारी नेता आर्य सागर खारी ने कहा कि उनके पुरुषार्थ से यह कार्यक्रम सफल हो सका है। विद्वान वक्ताओं की मान्यता रही कि हमें उन मठाधीशों और तथाकथित शंकराचार्यों की कार्य शैली से सावधान रहना चाहिए जो आज भी दलित समाज के साथ अन्याय करने की शिक्षा देते हैं। इसके साथ ही आर्य समाज के उन सन्यासियों से प्रेरणा लेनी चाहिए जो दलित उद्धार और सामाजिक सद्भाव के कार्यक्रम को लागू करने के प्रति आज भी समर्पित होकर काम कर रहे हैं। दलित समाज सनातन विरोधी नहीं है। विद्या प्रेम दान का संस्कार वैदिक सिद्धांतों के प्रति श्रद्धा उनमें बढ़-चढ़कर है। यह उन्होंने आज सिद्ध भी किया है।
वैदिक गोष्ठी कार्यक्रम का सफल संचालन कार्यक्रम के संयोजक स्वामी प्राण देव जी ने किया। आमंत्रित वक्ता के तौर पर आर्य सागर ने अपने विचार रखे उन्होंने आर्य समाज के दलित उत्थान के कार्यों पर प्रकाश डाला और बताया कि हम सब ईश्वर की संतान हैं सभी पुरुषार्थ करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं शारीरिक आत्मिक सामाजिक उन्नति केवल महर्षि दयानंद की विचारधारा पर चलकर ही प्राप्त की जा सकती है।
सत्यपाल जी ने बहुत सुंदर भगवान राम के आदर्शों को लेकर भजन सुनाया। महेश क्रांतिकारी कवि जी ने भी बहुत सुंदर कविता मनुष्य जाति के ऊपर सुनाई बड़ी प्रेरक वह कविता थी। गोष्टी के अध्यक्ष देव मुनि जी ने भी अपने विचार बताएं कि कैसे हम परिवारों में वैदिक आदर्श को लागू करें। कैसे हम सब उन्नति कर सकते हैं। हम सब ईश्वर की संतान हैं , कोई छोटा बड़ा नहीं है।
विचार गोष्ठी में शामिल होने वाले वक्ताओं के वक्तव्य का सार यही निकला आरक्षण के साथ साथ सामाजिक आर्थिक अधिकार तो मिलते रहनी चाहिए, लेकिन यह स्थायी दीर्घगामी उपचार नहीं है। आरक्षण के बावजूद भी समाज में समरसता स्थापित नहीं हो पाई। समरसता केवल और केवल आर्य समाज अर्थात वेदों के सामाजिक चिंतन पर चलने से ही स्थापित हो सकती है। जहां सामूहिक भोज यज्ञ आदि कार्यक्रम विचार गोष्ठी दलितों की बस्ती में आयोजित की जानी चाहिए।
नशा अपराध, सामाजिक कुरीतियों, धर्मान्तरण ढोंग पाखंड का सर्वाधिक शिकार भी यही वर्ग है। आर्य समाज के उपदेशको और संन्यासियों को यह कार्य अब प्राथमिकता के आधार पर अपने हाथ में लेना चाहिए। किसी राजनीतिक दल व संगठन के भरोसे नहीं रहना चाहिए। जो वैचारिक तेजस्विता उग्रता निष्कामता से सामाजिक कार्य करने की भावना आर्य समाज के पास है वह किसी सुधारक संगठन के पास नहीं है।
सैकड़ो परिवारों ने वैदिक जीवन पद्धति को अपनाने ऋषियों के पथ पर चलने का संकल्प लिया। पक्षात्मक कार्यक्रम के संचालक स्वामी प्राण देव ने शांति पाठ कराया।
इस अवसर पर राकेश यादव, महाशय तेजपाल जी, सत्यपाल आर्य बिसनुली, रविंद्र शर्मा, आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के उप प्रधान महावीर सिंह आर्य, अजय कुमार आर्य, अमन आर्य सहित दर्जनों अतिथि व सैकड़ो ग्रामीण उपस्थित रहे। पश्चात में सभी ने सामूहिक समरसता भोज का आनंद लिया।