Categories
समाज

देश की समस्याओं का जखीरा और बढ़ती जनसंख्या

आजकल जनसंख्या के गणित पर देश में बड़ी चर्चा छिड़ी हुई है। कोई आबादी बढ़ाने की बात करते नजर आते हैं तो कोई आबादी घटाने की। हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में देश की घटती आबादी को लेकर चिंता जता दी। उन्होंने यह कहा है कि प्रजनन दर घटी तो समाज पर संकट खड़ा हो जाएगा। दरअसल, उन्होंने कहा है कि आधुनिक जनसंख्या विज्ञान कहता है कि जब किसी समाज की प्रजनन दर 2.1 से नीचे चली जाती है तो कोई परेशानी न होने पर भी समाज धरती से लुप्त हो जाता है। इस तरह कई भाषाएं और समाज नष्ट हो चुके हैं। ऐसे में हर जोड़े को कम से कम 2 या 3 बच्चों के स्तर को बनाए रखना चाहिए। उन्होंने जनसंख्या नीति को जागरूकता का जरिया बताते हुए यह कहा है कि यह संतुलित विकास और भविष्य के लिए संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का मार्ग है तथा जनसंख्या में गिरावट सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक नुकसान का कारण भी बन सकती है।

सच तो यह है कि देश की स्थिरता और उन्नति, प्रगति के लिए उन्होंने इसे अहम् मुद्दा बताया है। बहरहाल, 3 दिसंबर 2024 को जब यह आर्टिकल लिखा जा रहा है तब भारत की वर्तमान जनसंख्या 1,456,402,246 है जो कि संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के आधार पर वर्ल्डोमीटर पर आधारित है। जनसंख्या के आधार पर देशों की सूची में आज भारत प्रथम स्थान पर है। कहना ग़लत नहीं होगा कि जब भी किसी देश की आबादी बढ़ती है तो वहां नागरिक सेवाओं पर व्यापक असर पड़ता है। संसाधनों की कमी का भी सामना बढ़ती जनसंख्या को करना पड़ता है। आज हम 2047 तक भारत को विकसित बनाने का सपना देख रहे हैं लेकिन क्या बड़े परिवार या आबादी में वृद्धि से हमारा यह स्वप्न पूरा हो सकेगा ? आबादी बढ़ती है तो अधिक संसाधन भी चाहिए होते हैं। इस संबंध में हमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री जेपी नड्डा जी की उस बात को जरूर ध्यान में रखना चाहिए जब उन्होंने 11 जुलाई को एक बैठक को संबोधित करते हुए यह कहा था कि विकसित भारत के लक्ष्य हासिल करने में छोटे परिवार मददगार साबित हो सकते हैं। कहा भी गया है-‘छोटा परिवार,सुखी परिवार।’

यहां यह बात ठीक है कि आज देश में मेडिकल साइंस के विस्तार, देश में परिवार नियोजन और गर्भनिरोधक के प्रयोग में वृद्धि के कारण देश की प्रजनन दर में काफी गिरावट आई है लेकिन क्या हमें देश के स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार सृजन, ग़रीबी उन्मूलन की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। जनसंख्या बढ़ती है तो स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, ग़रीबी सभी के लिए समस्याओं, परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आज हमारे देश की भौगोलिक स्थिति और जनसंख्या का घनत्व पहले ही काफी असंतुलित है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021 में भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या के 17.7% के बराबर है तथा भारत में जनसंख्या घनत्व 464 प्रति वर्ग किलोमीटर (1,202 लोग/वर्ग/मीटर) है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत का भौगोलिक विस्तार 32,87,263 वर्ग किलोमीटर हैं जो विश्व के कुल क्षेत्रफल का 2.43% है। इसका मतलब यह हुआ कि मात्र 2.43 प्रतिशत क्षेत्रफल में विश्व की लगभग 18 प्रतिशत आबादी भारत में निवास करती है।

हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि धरती पर साधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि संसाधनों पर निश्चित ही दबाव डालेगी। वैसे अनेक लोगों द्वारा बढ़ती आबादी के भी अपने फायदे बताए जाते हैं। मसलन, जिस देश में जनसंख्या अधिक होती है, वहां काम करने वालों की संख्या भी ज्यादा होती है, ऐसे में बढ़ती आबादी से देश की अर्थव्यवस्था को फायदा हो सकता है। कामकाजी लोगों के कारण देश में निवेश में बढ़ोत्तरी होती है। दूसरे शब्दों में जनसंख्या वृद्धि से आर्थिक विस्तार होगा क्योंकि अधिक लोग अधिक वस्तुओं का उत्पादन कर सकेंगे। जनसंख्या वृद्धि से मानव संसाधन में वृद्धि होती है, और इससे कम वेतन पर काम करने के इच्छुक व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि होगी। जनसंख्या वृद्धि से उत्पादों और सेवाओं की मांग बढ़ती है , जिससे विशेषज्ञता के माध्यम से उत्पादकता में वृद्धि होती है। जनसंख्या वृद्धि का नुक़सान यह है कि इससे संसाधनों की मांग बढ़ती है और ये खत्म और दुर्लभ हो सकते हैं तथा ग़रीबी को जन्म दे सकते हैं।तेज़ी से बढ़ती आबादी वाले विकासशील देशों में खाद्यान्न की कमी हो सकती है और खाद्यान्न की कमी से कुपोषण जन्म लेता है वहीं दूसरी ओर खाद्यान्न की कमी के कारण देशों को अनाज खरीदना पड़ता है, जिससे उनके विदेशी मुद्रा भंडार में अनावश्यक रूप से कमी आती है। बढ़ती जनसंख्या से प्रदूषण भी बढ़ता है तथा प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खतरा बढ़ जाता है।

जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को(जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग आदि) से और अधिक नुकसान हो रहा है। जनसंख्या घनत्व का प्रभाव जैव-विविधता पर भी कहीं न कहीं पड़ता है। जनसंख्या वृद्धि से पूंजी उत्पादन में गिरावट आती है, बेरोजगारी जन्म लेती है। पानी जैसे संसाधनों में कमी आ सकती है। बढ़ती जनसंख्या के कारण जीवन की गुणवत्ता पर भी व्यापक असर पड़ता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि जनसंख्या वृद्धि की दर यदि बहुत कम हो जाती है तो इससे देश के विकास, श्रमबल और सामाजिक ढांचे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि पर हमें अपने उपलब्ध संसाधनों पर भी तो विचार करना है। इसलिए जनसंख्या न तो कम ही होनी चाहिए और न ही बहुत अधिक। एक संतुलन स्थापित किया जाना बहुत ही जरूरी है। अतः अंत में निष्कर्ष के तौर पर यह बात कही जा सकती है कि जनसंख्या एक बहुत ही जटिल विषय है जिसके अपने लाभ और नुकसान दोनों ही हैं।

– सुनील कुमार महला

Comment:Cancel reply

Exit mobile version