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कविता

संसार समर है तुम योद्धा हो

संसार क्षेत्र में संबंध निभाना,
हर किसी के वश की बात नहीं।
रो – रोकर जो काटें जीवन को,
ढंग जीने का उनको ज्ञात नहीं।।

संसार समर है तुम योद्धा हो,
किरदार निभाना भूल गए।
अमृत चखने तुम आए थे,
यहां नींद नशे में टूल रहे।।

अपनों को अपना कह न सके,
कभी कष्ट निवारक बन न सके।
सदा पीड़ा की वीणा हाथ लिए ,
कल्याण किसी का कर न सके।।

हृदय खोल दिखा दी पीड़ा ,
जो स्वयं दर्द के मसीहा थे।
खुद धोखा खा गए खुद से ही,
तब आंखों में छलकते आंसू थे।।

मृत्यु के कारण रुदन कहीं,
कहीं ढोल नगाड़े बजते हैं।
कोई भोगी बन जीवन जीते ,
कोई योगी बन हर को भजते हैं।।

– डॉ राकेश कुमार आर्य

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