यद्वाचाऽनभ्युदितं, येन वागभ्युद्यते ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि,नेदं यदिदमुपासते ।।-(केन० 1/4)
जो वाणी द्वारा प्रकाशित नहीं होता,जिससे वाणी का प्रकाश होता है,उसी को तू ब्रह्म जान।जिसका वाणी से सेवन किया जाता जाता है,वह ब्रह्म नहीं है।
यन्मनसा न मनुते,येनाहुर्मनो मतम् ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि,नेदं यदिदमुपासते ।।-(केन० 1/5)
जिसका मन से मनन नहीं किया जाता,जिसकी शक्ति से मन मनन करता है,उसी को तू ब्रह्म जान।जिसका मन से मनन किया जाता है वह ब्रह्म नहीं है।
यच्चक्षुषा न पश्यति,येन चक्षूंषि पश्यन्ति ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि,नेदं यदिदमुपासते ।।-(1/6)
जो आंख से नहीं देखा जाता,जिसकी शक्ति से आँख देखती है,उसी को तू ब्रह्म जान।जो आँख से देखा जाता है वह ब्रह्म नहीं है।
यच्छ्रोत्रेण न श्रृणोति,येन श्रोत्रमिदं श्रुतम् ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि,नेदं यदिदमुपासते ।।-(1/7)
जो कान से नहीं सुना जाता,जिससे कान सुनता है,उसी को तू ब्रह्म जान।जो कान से सुना जाता है वह ब्रह्म नहीं है।।
यत्प्राणेन न प्राणिति,येन प्राणः प्रणीयते ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि,नेदं यदिदमुपासते ।।-(केन० 1/8)
जो प्राण से प्राण के व्यापार में नहीं आता,जिससे प्राण अपना व्यापार करता है, उसी को तू ब्रह्म जान।जो प्राण के व्यापार में आता है वह ब्रह्म नहीं है।
उपर्युक्त उपनिषद्-वाक्यों में यह सुस्पष्ट शब्दों में बताया गया है कि परमात्मा आकार रहित होने के कारण इन्द्रियों द्वारा ग्रहण करने की वस्तु नहीं।
यदि इन्द्रियाँ समर्थ होती तो यह नहीं कहा जाता –
यतो वाचो निवर्तन्ते इन्द्रियाणि मनसा सह ।
जहाँ से मन के साथ इन्द्रियाँ और वाणी बिना उसको प्राप्त किये ही लौट आते हैं ।भला चेतन निराकार परमात्मा को ये जड़ इन्द्रियां प्राप्त भी कैसे कर सकती हैं ।