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कविता

कर तू, संधि कर

वेद धर्म के गीत सुनाकर,
सबको राह दिखाता चल।
जहां-जहां अंधकार मिले,
पुरुषार्थ से उसे हटाता चल।।

वेद ज्ञान का अमृत पीकर,
हो जा, मन से मतवाला।
खो जा शिव की मस्ती में,
हृदय बना भक्ति वाला।।

पारसमणि वेद को लेकर,
मन के लोहे पर फेरा कर।
आभास किया कर परिवर्तन का,
वृत्तियों को तू घेरा कर।।

संधि कर तू, संधि कर,
सम्यक ध्यान लगाकर संधि कर।
अनुपम अलख निरंजन की,
प्यारे ! मन से भक्ति कर।।

मां की गोद मिलेगी तुझको,
और प्यार पिता का पाएगा।
सखा का तुझे साथ मिलेगा,
वह बंधु का भाव जगाएगा।।

डॉ0 राकेश कुमार आर्य

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