दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)
कभी कभी लिखते हुए भी सोचना पड़ता है की समाज के दोहरे मापदंड पर क्या लिखें लेकिन लिखना पड़ता है लोगो को दर्पण दिखाना पड़ता है। सम्भल की घटना पर स्वयंभू घोषित बुद्धिजीवी और इस्लामिक समाज के कुछ ठेकेदार माननीय न्यायालय और पुलिस फोर्स को अप्रत्यक्ष रूप से दोषी करार देने के षड्यंत्र में लग गए हैं। यदि न्यायालय के सर्वे आदेश से किसी को भी समस्या थी तो अग्रिम न्यायालय के दरवाजे खुलें हैं संविधान का रास्ता अपनाना चाहिए पर नहीं मजहबी लोगो की हर बात पर उपद्रव करने की आदत बन चुकी है। आज पुलिस अपनी आत्मरक्षा करे तो दिक्कत है भविष्य में जब यही उपद्रव सामान्य समाज के साथ किया जाएगा तो भी आत्मरक्षा करने का अधिकार सामान्य समाज को शायद नहीं होगा । कटटरपंथी इस्लामिक ठेकेदारों की चतुराई हमने अनेको आंदोलन में देखी है, उपद्रव करना, पत्थरबाजी करना, सम्पतियों में आग लगाना और उसके बाद विक्टिम कार्ड खेलकर यह कह देना की हमारे बच्चे तो वहां दंगा करने नहीं गए थे वो तो बस किसी काम से उस रास्ते से जा रहे थे। आप समझिये पुलिस कर्मियों का भी परिवार है जब वह अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं तो उन पत्थरबाजी करना, उन पर गोली चलाना कहाँ तक उचित है क्या पुलिस को अपनी आत्मरक्षा करने का अधिकार नहीं है लेकिन पीड़ादायक यह है की सत्ता और विपक्ष में चलने वाले इस द्वंद्व में कोई भी विपक्षी नेता यह कहने को तैयार नहीं है की जब सर्वे हो रहा था तो इस्लामिक समाज के लोग वहां पथरबाजी क्यों कर रहे थे, वे लोग वहां करने क्या गए थे,कोई असंवैधानिक कार्य तो हो नहीं रहा था जो आगजनी आदि की गयी।
रही बात सत्ता के दुरूपयोग की तो अयोध्या में तो पुलिस पार्टी द्वारा निर्दोष और निहथे हिन्दुओ पर गोलियां चलवाकर सरयू में प्रवाहित करवा दिया गया था सम्भल की घटना में तो जो कुछ भी हो रहा था वह आत्मरक्षा और संवैधानिक मानकों का अनुपालन करते हुए ही किया जा रहा था । महत्वपूर्ण बात इस्लामिक समाज को अपने बच्चो को कटटरपंथ नहीं अपितु राष्ट्र विकास की शिक्षा देनी चाहिए क्यूंकि आग लगवाने वाले चरमपंथी मौलानों और भड़काऊ भाषण देने वाले इस्लामिक ठेकेदारों और उनके बच्चो का तो कुछ बिगड़ता नहीं लेकिन जिहाद,शहीद,कुर्बानी आदि के नाम पर ऐसे मौलाना तुम्हारे बच्चो को दिग्भर्मित कर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में झोक देतें हैं ।
फोटो ज़ी न्यूज से साभार