भारत की संस्कृति की महानता इस तथ्य में निहित है कि यह ऋषि और कृषि की संस्कृति है । ओ३म न केवल इस ब्रह्मांड में समाहित एक प्राणतत्व का नाम है , अपितु इस संस्कृति के रोम – रोम में भी ओ३म ही बसा हुआ है । इसे भौतिक जगत में हम ऋषि संस्कृति के नाम से जान सकते हैं। ओ३म के निकलते ही ब्रह्मांड जैसे निष्प्राण हो जाएगा , वैसे ही ऋषि प्रणाली को अलग करते ही भारत की संस्कृति भी निष्प्राण हो जाएगी । अग्नि , वायु , आदित्य ,अंगिरा से लेकर पतंजलि , महर्षि कणाद , कपिल , गौतम , जैमिनी आदि की उस महान परंपरा को यदि इस देश कि संस्कृति से निकाल दिया जाए तो आप कैसे कह सकते हैं कि भारत जीवित है ?
वास्तव में भारत ने अपनी जिजीविषा इसीलिए बनाए रखी कि वह इन ऋषियों से प्राण ऊर्जा प्राप्त करता था । भारत ने अपनी इस ऋषि परंपरा से स्वराज्य का मंत्र ग्रहण किया । स्वराज्य को बढ़ाते – बढ़ाते वह मुक्ति अर्थात मोक्ष तक ले गया । यह सत्य है कि इस संसार में केवल और केवल भारत ही तो है जो आज की मुक्ति की अभिलाषा रखता है । भारत अपने नागरिकों को न केवल एक अच्छा नागरिक बनने की शिक्षा देता है अपितु उसे इतना शुद्ध , बुद्ध और पवित्र बना देना चाहता है कि वह मोक्ष का अधिकारी बन जाए । इतनी महान , ऊंची , उत्कृष्ट और पवित्र संस्कृति संसार में कोई नहीं है जो अपने नागरिकों को या मानने वालों को या मानवमात्र को मोक्ष अभिलाषी बनाती हो।
ओ३म हमारा वह प्राणसूत्र है , जिसकी रस्सी की डोर को पकड़कर हम मोक्षपद को प्राप्त करते हैं । हमारे रोम – रोम में बसा ओ३म हमें दुनिया में न्यायशील व्यवहार संपादित करने की शक्ति देता है । हमें महान और ऊंचा बनने की प्रेरणा देता है । हमें परस्पर मित्र भाव से रहने और सहयोगी होकर जीने की शक्ति देता है । हमें वह ऊर्जा देता है जिससे समस्त मानव जाति एक पिता की संतान होने के भाव से अपने आपको बंधा हुआ अनुभव करती है। संसार में यदि आज भी मानवता जीवित है तो वह केवल इस ओ३म की पवित्र संस्कृति में विश्वास रखने वाले लोगों के कारण जीवित है ।
अब आते हैं गाय की संस्कृति पर गाय एक प्राणी मात्र नहीं है ,अपितु जैसे दोपायों में मनुष्य सबसे उत्कृष्ट प्राणी है , वैसे ही चौपायों में गाय सबसे उत्तम प्राणी है। उसका दूध , गोबर छाछ ,दही घी आदि सब हमारे कल्याण के लिए है । उसके साथ समन्वय स्थापित करने का अभिप्राय है पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए कृतसंकल्प हो उठना और प्राणी मात्र के प्रति दयालु हो जाना । यदि व्यक्ति प्राणी मात्र के प्रति दयालु है और वह जानता है कि प्रत्येक प्राणी को संसार में ईश्वर ने इसलिए भेजा है कि यहां का प्राकृतिक संतुलन बना रहे तो मनुष्य मनुष्यता की पराकाष्ठा को पा जाता है । मनुष्यता की पराकाष्ठा को पा जाना ही मानव का धर्म है।
हमारे कल्याण के लिए सांस लेने वाली गाय के प्रति कृतज्ञतावश हम उसे अपनी माता स्वीकार करते हैं। उसके घृत आदि से हमारा निर्माण होता है , इसलिए वह हमारी निर्माता है। जो हमारी निर्माता होती है ,वही हमारी माता होती है। मूर्खतावश लोग हिंदुओं का इस बात के लिए मजाक उड़ाते हैं कि वह गाय को अपनी मां कहते हैं । अज्ञानी मूर्ख लोगों की दृष्टि में मां वही है जिससे हम जन्म लेते हैं । इनको नहीं पता कि जिससे हम जन्म लेते हैं वह तो हमारी जननी है। माता तो संसार की प्रत्येक वह मातृशक्ति हो सकती है जो हमारे निर्माण में सहायक हो। गोधन को या पशुधन को या पशुपालन को आज के कृषि विज्ञान में भी कृषि का ही एक अंग माना जाता है । यदि किसी भूमि पर पशुपालन , मुर्गीपालन , कुक्कुटपालन , मछलीपालन आदि हो रहा है तो उसे भी कृषि भूमि ही माना जाता है । भारत का कानून भी यही कहता है। अतः गोपालन के प्रति आस्था की संस्कृति का अभिप्राय हुआ भारत की कृषि संस्कृति में विश्वास रखना।
इस प्रकार ओ३म और गाय दोनों से भारतीय संस्कृति का अन्योन्याश्रित संबंध है , इनके बिना भारतीय संस्कृति नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले के प्रधानमंत्री और उनमें भी विशेष रूप से कांग्रेस के प्रधानमंत्री मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते और कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों से अपने अंतरंग संबंधों के कारण भारतीय संस्कृति के विनाश में लगे हुए थे । उन्होंने कभी-कभी स्पष्ट रूप से तो कभी-कभी अपने आचरण से ओ३म और गाय की चर्चा को समाप्त कर दिया या उसकी उपेक्षा की । यहां तक कि कांग्रेस ने गाय और बछड़े के अपने चुनाव चिन्ह तक को भी छोड़ दिया । जिससे कि एक संप्रदाय विशेष की वोट उसे मिल सकें।
कभी हमारे देश के प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को ‘ ग ‘ से गाय पढ़ाई जाती थी । परंतु गाय को एक सांप्रदायिक पशु कहकर हमारे बच्चों के भीतर से गाय के प्रति श्रद्धा को समाप्त करने के दृष्टिकोण से ‘ ग ‘ से गधा पढ़ाया जाने लगा । सारा नेतृत्व गधा हो गया। अपने आप को ‘ सभ्य समाज ‘ कहने वाला सारा समाज गधा हो गया । आज यह सारा का सारा समाज विदेशी संस्कृति के बोझ को अपनी पीठ पर लादे हुए वैसे ही चल रहा है जैसे एक कुम्हार का गधा उसके इशारे पर आगे आगे चलता है ।शर्म और हया दोनों समाप्त हो गईं । बड़े नाज के साथ कहते हैं कि हम आधुनिक हैं । अपनी अच्छाई को मिटाकर और अपनी सच्चाई को भुलाकर यदि आधुनिक बना जाता है तो ऐसी आधुनिकता पर लज्जा आती है। ऐसे आधुनिक लोगों पर लज्जा आती है।
ओवैसी जैसे सांप्रदायिक लोग इस देश में अपने उस सांप्रदायिक एजेंडा को लागू करना चाहते हैं , जिसके माध्यम से इस देश को वह दारुल इस्लाम की रंगत में रंग सकें । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ओवैसी जैसे लोगों के बारे में समझ रहे हैं कि उन्हें ओ३म और गाय पर परेशानी क्यों है ? देश के लोग भी यह जान रहे हैं की ओवैसी को गाय और ओ३म पर क्यों परेशानी है ?
विपक्ष को इस समय बाणविहीन करके प्रधानमंत्री मोदी ने उसके ही रथ के पृष्ठ भाग में बैठने के लिए विवश कर दिया है । उसे मुद्दा चाहिए । यदि प्रधानमंत्री मोदी ओ३म और गाय पर कुछ बोलते हैं तो निष्प्राण हुआ विपक्ष इसको एक मुद्दा समझकर कुछ बोलने का साहस करता है । हमारा मानना है कि अब विपक्ष को यह समझ लेना चाहिए कि भारतीय संस्कृति के प्राण के साथ यदि उन्होंने अब किसी प्रकार की छेड़छाड़ की तो वह स्वयं निष्प्राण ही नहीं हो जाएगा , अपितु वह अपनी कब्र में अपने आप पहुंच जाएगा । समय परिवर्तित हो चुका है। परिस्थितियां भारी बदलाव ला चुकी हैं । इस देश की मूल संस्कृति में विश्वास रखने वाला हिंदू अब जाग चुका है। वैदिक संस्कृति का डिंडिम घोष चहुंओर हो रहा है । चारों दिशाओं से सुहावने संदेश और संकेत मिल रहे हैं कि भारत जागकर अपने सही गंतव्य की ओर बढ़ रहा है । ऐसे में विपक्ष यदि सही दिशा की ओर बढ़ते भारत को रोकने का प्रयास करेगा तो समझो कि वह अपने पैरों पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मारेगा।
मेरे भारत की जय हो !
वैदिक संस्कृति की जय हो !!
वैदिक धर्म की जय हो !!!
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत