यह बिल क्या है और किसने बनाया
यह तो सभी को ज्ञात ही होगा कि सोनिया गांधी की सलाहकार परिषद् ने ‘साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक 2011’ नाम से एक ऐसे हिन्दू विरोधी काले कानून का प्रारूप तैयार किया है जिसमें यह मान लिया गया है कि जब कभी भी साम्प्रदायिक दंगे होंगे तो केवल हिन्दू ही दोषी होगा। इसके अनुसार समाज को अल्पसंख्यक (मुसलमान, ईसाई आदि ) व बहुसंख्यक (हिन्दू) दो भागों में बांटा गया है और अल्पसंख्यक व दलित को ‘समूह’ की संज्ञा दी गयी है।
इस विधेयक के अनुसार बहुसंख्यक हिन्दू किसी अल्पसंख्यक मुसलमान, ईसाई आदि के विरुद्ध घृणा फैलाये, या हिंसा करे या यौन शोषण करे तो वह अपराधी कहलायेगा परन्तु अगर अल्पसंख्यक समूह इसी प्रकार के अपराध हिन्दुओं के प्रति करे तो वह इस कानून के अनुसार अपराधी नहीं होगा। इस बिल में हिन्दुओं को आक्रामक व अपराधी माना गया है तथा यह माना गया कि बहुसंख्यक हिन्दू ही साम्प्रदायिक दंगे कराते हैं अल्पसंख्यक तो ऐसा कभी कर ही नहीं सकते।
जबकि इतिहास गवाह है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने इस्लाम के प्रचार व प्रसार हेतु हमारे देश को जी भर के लूटा, खुलेआम हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ, बलात् धर्मपरिवर्तन किया गया और लाखों हिन्दू महिलाओं का यौन शोषण हुआ हमारे आस्थाओं के केन्द्र, मन्दिरों को लूटा और फिर नष्ट किया गया । यहाँ तक कि हमारे प्राचीन बड़े-बड़े शिक्षा केन्द्र व विशाल विहारों आदि को जलाकर नष्ट करने में भी आतताईयों ने कोई संकोच नहीं करा। पिछले लगभग 60 सालों के इतिहास से भी साफ झलकता है कि लगभग 75 प्रतिशत दंगों की शुरूआत मुसलमान ही करते हैं और अधिकतर शुक्रवार को इमाम के मस्जिद में खुतबा पढ़ने के बाद शुरू होते है (द पोलिटिक्स ऑफ कम्यूनिलिज्म 1989 लेखिका जेनब बानो, एक मुस्लिम स्कोलर)
जनसंघ के नेता के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भिवडी में हुए दंगो पर लोकसभा मे 14 मई 1970 को जो कहा उसके कुछ अंश “डेढ़ साल में हुए प्रमुख दंगों के कारणों की जांच एवं उसके विवरण भारत सरकार के द्वारा तैयार एक रिपोर्ट में उपलब्ध है। उस काल में 23 दंगे हुए और मन्त्रालय की रिपोर्ट के अनुसार उन 23 दंगों में से 22 दंगों का प्रारम्भ उन लोगों ने किया जो अल्पसंख्यक समुदाय के माने जाते हैं।” (वही, पृष्ठ 254)
इस बिल के अनुसार अगर कोई हिन्दू लिखकर व बोलकर भी किसी प्रकार से आतंकवादियों का विरोध या उसकी फांसी की मांग करता है, धारा 370 समाप्त करने की बात करता है व समान नागरिक संहिता की मांग करता है तो ये मुसलमानों को आघात पहुंचायेगा और इसकी शिकायत होने पर हिन्दू को दोषी माना जायेगा और तो और भजन, कीर्तन, शोभा यात्रा, रामलीला, सत्संग, पथ संचलन आदि कार्य भी घृणा फैलाने वाले माने जायेंगे क्योकि इनसे भी मुसलमान आहत होगा। वन्दे मातरम्, भारत माता की जय, हर हर महादेव आदि उद्घोष से भी मुसलमानों की भावनायें आहत होंगी और उसके लिए भी हिन्दू को दण्डित किया जा सकता है। अल्पसंख्यक समुदाय के आहत होने का कोई पैमाना नहीं है। उनकी भावनाये कब, कितनी और किस कारण से आहत हुई, को जानबूझ कर स्पष्ट न करके, प्रारूप बनाने वालों ने अपनी दुर्भावना पूर्ण शातिराना मानसिकता का बोध कराया है।
इस बिल में एक प्रावधान और किया गया है जिसके अनुसार कोई अल्पसंख्यक किसी बहुसंख्यक के यहां कोई काम या नौकरी या किराये पर कोई मकान या गोदाम आदि मांगता है और वह बहुसंख्यक उसे जगह होते हुए भी उस अल्पसंख्यक को सुयोग्य पात्र न होने पर मना कर देता है तो ऐसी स्थिति में भी वह हिन्दू दोषी ठहराया जायेगा।
इस बिल में मुख्य बात यह भी है कि शिकायत करने वाले की पहचान गुप्त रखी जायेगी और आप अन्धेरे में होगे कि किसने और क्या शिकायत आपके विरुद्ध की है? विदेशी नागरिक चाहे वो पाकिस्तान का या अरब का या अमेरिका का आदि कहीं का भी भारत में रहने वाले अपने अल्पसंख्यक सम्बन्धी की ओर से भारत में या बाहर कहीं के किसी भी हिन्दू के विरुद्ध शिकायत कर सकता है। दोषी को अपने बचाव में अपने को निर्दोष साबित करने के लिए स्वयं प्रमाण देने होगें। परन्तु जय प्रतिवादी को विवादी का पता ही नहीं है तो वह कैसे प्रमाणित कर पायेगा की वह निर्दोष है।
आपकी शिकायत (F.I.R.) होते ही आपके विरूद्ध गैर जमानती वांरट जारी हो जायेगा और आपको जेल जाना पड़ेगा और आपकी सम्पत्ति भी अटैच कर ली जायेगी। पुलिस व प्रशासन को प्रत्येक तीन दिन में शिकायत कर्ता को इसकी प्रगति की रिपोर्ट देनी होगी। ऐसे अपराध में आप अगर दोषी पाये गये तो आपकी सम्पत्ति से ही तथाकथित पीड़ित परिवार और उसके सम्बन्धियों तक को कम्पनसेट किया जायेगा।
पारदर्शिता के व्यापक स्वरूप की मांग आज चारों ओर है तो फिर यहां शिकायतकर्ता का नाम क्यों गुप्त रखा जा रहा है ? क्या सलाहकार परिषद् की मंशा में हिन्दू के प्रति घोर अत्याचारी भावना नहीं झलकती ? क्योंकि गोपनीयता (छिपाने की आवश्यकता तो स्वयं अपराधी व अत्याचारी को होती है। पीड़ित व्यक्ति को न्याय प्राप्ति के लिये अपना पक्ष स्वयं सिद्ध करना होता है।
साम्प्रदायिक दंगे होने की स्थिति में वहां के प्रशासन को भी दोषी बनाया जा सकेगा और राज्य सरकार भी ऐसी स्थिति में जिम्मेदारी से बच नहीं पायेगी तथा केन्द्र को राज्य सरकार भंग करने का अधिकार होगा।
एक बात और जो इस काले कानून में है यह यह कि सात सदस्यों वाले राष्ट्रीय प्राधिकरण राज्य व केन्द्र के स्तर पर बनाये जायेंगे जिसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व दो सदस्य अल्पसंख्यक समूह से होंगे शेष तीन बहुसंख्यक समूह के होंगे। अतः यहां भी अल्पसंख्यक समूह वाले बहुमत में होंगे। यह प्राधिकरण ऐसे अपराधों पर लगातार निगाह रखेगा और न्यायालय की कार्यवाही में भी दखल देगा। इस प्रकार अगर कोई अधिकारी इनके अनुसार काम नहीं करेगा तो वे उसे बदल भी सकते हैं। यह प्राधिकरण राज्य व केन्द्र सरकारों को सलाह व सिफारिशें भेजेगा जो सामान्यतः मान्य होंगी। जब न्यायिक प्रक्रिया में प्राधिकरण हस्ताक्षेप कर सकेगा तो क्या निष्पक्ष न्याय हो सकेगा ? क्या इससे भी केवल एक पक्ष (हिन्दू) को ही प्रताड़ित करने की दुर्भावना नहीं झलकती ?
इस प्रकार यह बिल इतने शातिराना तरीके से बनाया गया है कि सामान्य आदमी तो इसे समझ ही नहीं पाता। इस बिल में 9 अध्याय व 138 धारायें हैं जो किसी विद्वान वकील द्वारा ही समझी और समझाई जा सकती हैं।
गृह मन्त्रालय ने सन् 2005 व 2008 में भी इस प्रकार का बिल दूसरे रूप में बनाया था परन्तु ईसाई व मुस्लिम संगठनों ने तथाकथित धर्म निरपेक्षियों के द्वारा उसे अस्वीकृत करवा दिया क्योंकि उसमें दंगे वाले क्षेत्रों को साम्प्रदायिक अशान्त क्षेत्र घोषित करने का प्रावधान था और उसी क्षेत्र में ऐक्शन लेने की बात थी, केन्द्र को अधिक अधिकार नहीं थे, इस तरह उस बिल से तो केवल हिन्दू नहीं फंस पाता। इसलिए सोनिया गांधी ने पुनः ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद्’ जिसमें हिन्दू विरोधी ईसाई व • मुसलमान हैं, के द्वारा यह बिल बनवाया है ताकि केवल हिन्दू ही प्रताड़ित हो सके। इस बिल को बनाने वाली समिति में मुख्य रूप से अबू साहेल शरीफ, असगर अली इंजीनियर, कमाल फारूखी, मंजूर आलम, मौलाना नियाज फारूखी, शबनम हाशमी और सैयद शाहबुददीन जैसे मुसलमान व जॉन दयाल, राम पुनियानी, सिस्टर मैरी स्कारियां आदि ईसाई है इसके अतिरिक्त एक प्रारूप समिति है जिसमें तीस्ता जावेद सीतलवाड़, नाजमी वजीरी, पी.आई. जोस प्रसाद सिरीवेला आदि हैं। इन समितियों के सयुक्त संयोजक हर्ष मन्दर व फारिया नकवी हैं। यह ऐसा ईसाई मुसलमान गठजोड़ है जिसमे सोनिया गांधी ने चुने हुए ऐसे लोग लिये हैं जिनका हिन्दुत्व विरोधी भाव सर्वज्ञात है।
इस बिल का सार यह है कि अल्पसंख्यक ईसाई, मुसलमान आदि दोषी नहीं हो सकते और बहुसंख्यक हिन्दू कभी निर्दोष नहीं हो सकता।
मौलिक व संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन –
हमारे संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार यह स्पष्ट है कि राज्य किसी नागरिक से उसके जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर भेद नहीं करेगा।
इस बिल में सरासर संविधान का उल्लंघन है और इसको बनाने वाली समिति (एन.ए.सी.) भी असंवैधानिक है। कोई भी कानून भूमि पुत्रों की मूलभूत धारणाओं को समाप्त नहीं कर सकता और न ही ऐसे कानून बनाये जा सकते । सरकार व जनता के बीच सम्बन्धों का एक मुख्य पहलू है जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा। तभी तो न्यायपालिका जनता के इन अधिकारों की रक्षा अभिभावक के रूप में करती है और वह यह भी देखती कि सरकार का कोई अंग संविधान का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है।
न्याय एक स्वतन्त्र तत्व है न कि दोषपूर्ण कानूनों का गुलाम । प्रायः जनतांत्रिक देशों में अल्पसंख्यकों के आधार पर अलग कानून नहीं होते। कानून वहा की बहुसंख्यक जनता की संस्कृति, परम्परा स्वभाव आदि के अनुसार ही बनाये जाते है। कानून की व्यवस्था जीवन को उन्नति की ओर ले जाने के लिये की जाती है। किसी के जीवन को अंधकार में धकेलने के लिये नहीं ।
एन.ए.सी. के कार्य संचालन के लिए संसद् में कोई कानून नहीं है फिर भी यह कानून का प्रारूप बनाने में लगी हुई है, क्यों? क्या कोई व्यक्ति जिसकी नागरिकता को सरकार निरस्त कर सकती है वह हमारे लिए कानून बना सकता है। सोनिया गांधी कांग्रेस में बड़ी हो सकती हैं परन्तु देश से बड़ी नहीं।
भारत के भाग्य और भविष्य का निर्माण केवल वह समाज करेगा जिसका भाग्य और भविष्य किसी और भूमि या राष्ट्र से नही बल्कि इसी देश की मिट्टी से जुड़ा है। क्योंकि यह बिल हिन्दू समुदाय के विरूद्ध एक अपराध है। इसलिये इसको बनाने वालों पर आई.पी.सी. की धारा 153 ए व बी, 295 व 505 (2) के अन्तर्गत मुकदमा चलाने का प्रयास सुप्रसिद्ध विद्वान् व राजनीतिज्ञ डा0 सुब्रह्मण्यन स्वामी कर रहे है।
हमारे संविधान की धारा 44 में व्यवस्था की गयी है कि सरकार एक ‘समान कानून व्यवस्था’ लागू करे और इस सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से 1996 में इस पर प्रगति की रिपोर्ट मांगी थी। यू.एन.ओ. ने भी सन् 2000 में भारत सरकार को समान कानून व्यवस्था बनाने पर जोर दिया था। एक सर्वे के अनुसार 84 प्रतिशत जनता भी समान कानून के समर्थन में है। फिर इस प्रकार के अलग-अलग कानून बनाकर देश को खण्डित किये जाने का षड्यन्त्र क्यों किया जा रहा है? नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था कि सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है ।
इसके दुष्परिणाम –
यह बिल आतंकवादियों व अलगाववादियों के लिए एक हथियार का काम करेगा। सन् 1947 में विभाजन के समय मारकाट कुछ ही स्थानों पर हुई थी परन्तु इस कानून के बन जाने से एकतरफा सिविल वार या हिन्दुओं का नरसंहार करने का रास्ता साफ हो जायेगा। महान् लेखक व चिन्तक स्व० श्री भानू प्रताप शुक्ल ने सन् 1995 में अपने एक लेख में लिखा था कि देशवासियों का एक वर्ग दूसरे वर्ग पर आक्रमण करे, हिंसा व हत्या करे, लूट और आगजनी करे, बलात्कार व अपहरण करे या करने का प्रयास करे तो पीड़ित समाज क्या करे ? अपना घर जलने जलाने दे, बहु-बेटियों के साथ बलात्कार होने दे, उन्हें बुलाये कि आओ हमारा घर लूटो, जलाओ और हमारी ललनाओं को ले जाओ। अपनी खुशी के लिए कुछ भी करो हम कुछ नहीं कहेगें। अगर यह कानून बन गया तो वास्तव में हम कुछ नहीं कह पायेंगे । वाह! क्या कानून हैं? एक तरफ तो मानवाधिकारों की रक्षा की दुहाई दी जाती है और दूसरी तरफ एक वर्ग को सरासर प्रताड़ित करने का कानून बनाया जा रहा है। यह कानून एक वर्ग को पूरे देश में हिंसा व आतंक का लाईसेंस दे देगा, आतंकवादियों को कभी भी, कहीं भी बम ब्लास्ट करने को प्रोत्साहन मिलेगा। सारा राष्ट्र नफरत की आग में जलने लगेगा। सड़क से संसद् तक साम्प्रदायिकता का नंगा नाच होगा, तो क्या भारत साम्प्रदायिक संघर्ष की भट्टी नहीं बन जायेगा, आतताईयों को जगह-जगह लूटपाट, बलात्कार, आगजनी आदि करने की छूट नहीं मिल जायेगी।
श्री बलजीत राय रिटायर्ड आई.पी.एस. ने श्रीमती सोनिया गांधी को एक खुले पत्र में यह लिखा है:
“India is being converted into a large prison house for the Hindus & a paradise for the Muslims & Christians” and it also gives the right of veto to the minorities by N.A.C.
यह बिल पाकिस्तान को भारत विरोधी अभियान के लिए और अधिक प्रोत्साहित करेगा। आई. एस. आई., अलकायदा, लश्करे तोयबा आदि जिहादी संगठनों को हमारे देश में जिहाद के लिए आतंकवादी नहीं भेजने पड़ेंगे। यह बिल उनका काम अपने आप करेगा। यह बिल धर्म-परिवर्तन को भी बढ़ावा देगा और इसका भयंकर परिणाम यह होगा कि हिन्दू हिन्दू न रहेगा और भारत तार-तार हो जायेगा ।
इसका विरोध क्यों-
कोई कहता है कि यह विधेयक वोट बैंक की राजनीति है और कुछ नेता कहते है कि यह Divide & Rule की राजनीति है परन्तु क्या हम लगातार धोखा खाकर भी नहीं संभलना चाहते। क्या यह सरासर हिन्दुओं को नष्ट करने का षड्यन्त्र नहीं है ? सन् 1947 में देश को धर्म के आधार पर बांटा गया, शेष बचे भारत के मुस्लिमों के लिए तुष्टिकरण की अनेक योजनाएं बनी, अल्पसख्यक आयोग बना, कश्मीर से हिन्दुओं का पूर्णतः सफाया हो गया, सच्चर कमेटी की सिफारिशे लागू हुई, रंगनाथ मिश्र आयोग ने मुस्लिम आरक्षण की सिफारिश की और हमारे प्रधानमंत्री ने देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का माना, फिर भी हम चुप रहे, सोते रहे, हमारा नेतृत्य दिशाहीन हो गया वह सत्ता के सुख के लिए पुनः ललायित है परन्तु हिन्दुओं के दर्द को महसूस नहीं करता।
ऐसे में सोनिया गांधी की सरकार ने देखा कि अब हिन्दुओं को और अधिक प्रताड़ित करें क्योंकि इनका आक्रोश फूटता ही नहीं, इसकी भुजाएं राम और कृष्ण के समान फड़कती ही नहीं, खून में उबाल ही नहीं आ रहा तो इसे एकतरफा अपराधी बनाने के इस अत्याचारी कानून में फंसाओं यह हमारे धैर्य की परीक्षा है और नेतृत्व को खुली चुनौती सहन करने की भी कोई सीमा होती है। चन्दन के वृक्षो के भी बार-बार टकराने से अग्नि पैदा हो जाती है।
बन्धुओं! अगर यह बिल पास हो गया तो न हिन्दू बचेगा और न ही यह भारत देश हिन्दू धर्म वह मिट्टी है जिसमें भारत की जड़े फैली हुई है उसे उखाड़ कर फेंक दिया तो वह जड़ से कटे पेड के समान मुरझा जायेगा व सूख जायेगा ज़रा सोचो जब हिन्दू धर्म ही नष्ट हो जायेगा तो भारत में क्या रहेगा, एक भौगोलिक ढांचा और उसका इतिहास याद रखो स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि “यदि विश्व में हिन्दू धर्म नष्ट हो गया तो सत्य, न्याय, मानवता और शान्ति सभी समाप्त हो जायेंगे ।”
हिन्दू क्या करें-
इस बिल के बारे मे अपने दोस्तों, रिश्तेदारों व आस पडोस में बतायें, पत्रक छपवाकर बंटवायें, एस.एम.एस. व ईमेल द्वारा दूर-दूर तक प्रचार करें। हमें देश के विभिन्न समाचार पत्र व पत्रिकाओं में छपवाने के लिए इस बिल के विरोध में पत्र भेजने होंगे। बुद्धिजीवियों तथा अधिवक्ताओं को भी इसके विरोध में जन जागृति अभियान चलाना होगा। देश की जनता को इस बिल का अधिक से अधिक विरोध करके अपने अस्तित्व की रक्षा करके भारत मां को बचाना होगा । आचार्य चाणक्य ने ठीक ही कहा था कि “संसार में कोई किसी को जीने नहीं देता। प्रत्येक व्यक्ति / राष्ट्र अपने ही बल व पराक्रम से जीता है।”
हिन्दुओं को अपने समस्त संगठनों को इस विषय के प्रति झकझोरना होगा और धार्मिक व सेवा आदि के जितने भी प्रकल्प है उन सबकी शाक्ति को संगठित करके राष्ट्र की राजनीति में प्रभावी भूमिका निभानी होगी। हिन्दुत्व की राजनीति का उद्देश्य लेकर ही नेतृत्व तैयार करना होगा और अपने नेतृत्व को सत्ता के दलालों व स्वार्थ की राजनीति करने वालों से बचाना होगा।
ज़रा सोचो, जब देश और समाज पर लगातार दुराचार के विरूद्ध क्रोध भर जाता है तो किसी चाणक्य को कुशासन के विरुद्ध शिखा तो खोलनी ही पडती है क्योंकि धर्म रक्षा का प्रश्न सर्वोपरि होता है। इसलिये चन्द्रगुप्त को आज चाणक्य जैसा आचार्य चाहिये। हम राम और कृष्ण के वंशज कहलाते है परन्तु क्या उनके समान हम अपनी धरती को पापियों से मुक्त नहीं करा सकते ?
राष्ट्र कवि स्व० रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में:
“छीनता हो स्वत्व कोई और तू त्याग तप से काम ले यह पाप है।
पुण्य है विछिन्न कर देना उसे बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है ।।”
विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक एवं लेखक)
गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)भारत
अध्यक्ष (पश्चिमी उ. प्र.) सांस्कृतिक गौरव संस्थान, संकट मोचन आश्रम, सैक्टर-6, आर. के. पुरम नई दिल्ली
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