*”विशेष” मानव – जीवन का अन्तिम लक्ष्य क्या है :

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“विशेष” मानव – जीवन का अन्तिम लक्ष्य क्या है :-

मल आवरण विक्षेप की,
पर्ते चढ़ी हजार।
मानव-जीवन में करो,
आत्मा का परिष्कार॥2734॥

तत्त्वार्थ :- मेरे प्रिय पाठक बड़ी सरलता से उपरोक्त दोहे के आशय को समझें इसको ऐसे समझें जैसे एक गोल रोटी है और उसके चार भाग हैं, जिनके नाम है- A.B.C. D. ठीक इसी प्रकार अन्तःकरण समग्र रूप से एक है- किन्तु उसके चार भाग हैं । जब किसी अमुक विषय पर उसका एक भाग निर्णय करता है, तो वह बुध्दि कहलाती है, दूसरा भाग संकल्प विकल्प करता है, तो वह मन कहलाता है. तीसरा भाग जो स्मृति और संस्कारों को संजोये रखता है, वह चित्त कहलाता है चौथा भाग जो जीवन में आने वाली चुनौतियों का साहस से सामना करता है, स्वाभिमान की रक्षा एक सेनापति की तरह रक्षा करता है, उसे अहम अथवा अहंकार कहते हैं। अतः स्पष्ट है कि अन्तःकरण समग्र रूप से एक ही है। जब अन्त: करण निन्दा, चुगली, झूठ, काम-कोध, लोभ-मोह, मत्सर, घृणा, राग, द्वेष इत्यादि की धूल से ढ़क जाता है, तो विवेक का दीपक बुझ जाता है। इस प्रकार की अन्तःकरण पर पड़ी धूल मल कहलाती है। अंत: मनुष्य को चाहिए कि वह अपने अन्तःकरण को सदैव निर्मल रखे ताकि परम पिता परमात्मा से सायुज्यता बनी रहे।

दूसरा दोष है- विक्षेप अर्थात चित्त की अस्थिरता यानि कि चित्त को चंचलता। जैसे – कोई सत्‌ कर्म करन प्रण लिया और बीच में तोड़ दिया, नित्यप्रति स्वाध्याय,संध्या,व्यायाम, प्राणायाम अथवा बुरी आदतों को त्यागने का प्रण लिया किन्तु बीच आकर छोड़ दिया। इसके अतिरिक्त दम्भ, दर्प आलस्य अथवा प्रमाद इत्यादि को छोड़ने का प्रण लिया किन्तु फिर वही ढाक के तीन पात हो गए। ऐसी मनःस्थिति को ही विक्षेप कहा जाता है। तीसरा दोष है- आवरण अर्थात् अज्ञान, जैसे नश्वर को शाश्वत मानना, अमूर्त को मूर्त मानना, अपूज्य को पूज्य मानना, देहाभिमान करना, शरीर को आत्मा मानना । इस तरह से अनेकों का प्रकार, अज्ञान हमारे अन्तःकरण को ऐसे ढक लेता है, जैसे. सूर्य को बादल ढक लेता है। वेशक सत्य को असत्य कुछ क्षण के लिए ढक लेता है किन्तु शाश्वत सत्य तो हमेशा शाश्वत सत्य ही रहता है।

सारांश यह है कि मल विक्षेप और आवरण की हजारों पर्ते जन्म जन्मान्तरों की हमारे अन्तःकरण पर जमीं हैं। जिनका उन्मूलन केवल हम मानव-जीवन में ही आत्मावलोकन, आत्मचिन्तन और आत्मपरिष्कार करके अथवा ईश्वर- प्रणिधान करके परम-पद को प्राप्त हो सकते है। इतना ही नहीं संसार के आवागमन से मुक्त हो सकते हैं।
क्रमशः

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