महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणामों ने केन्द्र की मोदी सरकार को नई ऊर्जा प्रदान की है। हरियाणा के बाद निरंतर दूसरे बड़े और एक महत्वपूर्ण राज्य में जिस प्रकार भाजपा नीत गठबंधन महायुति की सत्ता में फिर से वापसी हुई है , वह न केवल शानदार है बल्कि भाजपा के लिए जानदार भी है। लोकसभा चुनाव परिणाम के पश्चात देश में हिंदु राष्ट्रवाद की राजनीति के लिए जिस प्रकार का एक निराशाजनक परिवेश बना था, वह परिवेश अब नई आशाओं से भर गया है । अब यह साफ हो गया है कि उस समय संविधान बदलने का जो भ्रामक प्रचार विपक्ष की ओर से किया गया था ,उसके परिणामस्वरूप भाजपा के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग उससे छिटककर दूर चला गया था। महाराष्ट्र की जनता ने स्पष्ट कर दिया है कि लोकसभा चुनाव के समय चाहे उनसे कोई गलती हो गई थी, परन्तु अब उस गलती को दोहराना वह उचित नहीं मानती। केंद्र की मोदी सरकार को महाराष्ट्र के लोगों ने बड़ी ताकत देकर फिर से संभलने और आगे बढ़ने का संदेश दे दिया है। राहुल गांधी और उनकी टीम के लोगों के द्वारा जिस प्रकार जातिवाद का जहर फैलाकर वोट प्राप्त करने का तरीका खोजा गया था, उसके भी सही अर्थ लोगों ने समझ लिए हैं,जिसके परिणामस्वरूप राहुल गांधी के “हिंदू तोड़ो अभियान” की भी हवा निकल गई है।
महाविकास अघाड़ी के नेताओं के द्वारा जिस प्रकार हिंदू को कमजोर करने की योजना बनाई गई थी, उस सारी योजना पर पानी फेरकर लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के “एक हैं तो सेफ हैं” के नारे पर अपनी मुहर लगा दी है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस सारे चुनाव में एक जमीनी नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं । उन्होंने “कटेंगे तो बंटेंगे” का नारा देकर पूरे चुनावी विमर्श को ही बदल दिया। लोगों ने इस बात के गहरे अर्थ समझे और बातों ही बातों में योगी जी ने लोगों को इतिहास की यात्रा भी करवा दी । उन्होंने धीरे से और बड़े कूटनीतिक अंदाज में लोगों को आभास करा दिया कि अतीत में हमारे बंटने का किस प्रकार कुछ लोगों ने लाभ उठाया है ? यदि आज हम नहीं संभले तो निश्चय ही इसका दुष्परिणाम हिंदू समाज को भुगतना पड़ेगा। लोगों ने योगी जी के संकेत को समझकर उन पर यह भरोसा भी किया है कि उनके रहते हुए हिंदू समाज सुरक्षित रह सकता है।
चुनाव में जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी के नेता देवेंद्र फडणवीस ने अपनी भूमिका निभाई वह भी बहुत प्रशंसनीय रही है। उन्होंने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ लोगों से संपर्क स्थापित किया। इसके अतिरिक्त बहुत शालीनता के साथ उन्होंने मुख्यमंत्री शिंदे का साथ दिया। उन्होंने किसी प्रकार से भी मुख्यमंत्री श्री शिंदे को परेशान करने का प्रयास नहीं किया। अब लोगों ने उनकी गंभीरता और धैर्य को पुरस्कार दिया है। इसके अतिरिक्त वह जिस प्रकार अपनी बात को स्पष्टता के साथ कहते हैं, वह भी लोगों को पसंद आया है।
महाराष्ट्र के नए वर्तमान मुख्यमंत्री शिंदे ने भी गठबंधन धर्म का पूरी ईमानदारी के साथ पालन किया है। उनके साथ खड़े रहने वाले अजीत पवार भी अपनी नेक भूमिका में दिखाई दिए। इन सब बातों का प्रभाव यह गया कि भाजपा नीत गठबंधन में किसी प्रकार की दरार नहीं है। वे ईमानदारी के साथ देश और प्रदेश के लिए काम करना चाहते हैं।
जहां तक राहुल गांधी की बात है तो वह रायता बख़ेरने वाले नेता के रूप में अपनी छवि बनाते जा रहे हैं । कोई अन्य नेता इन चुनाव परिणामों से शिक्षा ले सकता है लेकिन राहुल गांधी शिक्षा लेंगे ? – ऐसा नहीं कहा जा सकता। वह निरंतर चुनाव हारने वाले नेता के रूप में स्थापित होकर भी अपनी ढीठता की दुनिया से बाहर निकलने वाले नहीं हैं ।क्योंकि उन्हें इस बात का पूरा एहसास है कि भविष्य में जब कभी भी कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में आएगी तो प्रधानमंत्री के दावेदार वही रहेंगे। राजनीति में जिस व्यक्ति को अपनी कुर्सी के जाने का खतरा होता है, वही घटनाओं से शिक्षा लिया करता है।
महाविकास अघाड़ी के नेता शरद पवार के लिए ये चुनाव अंतिम सिद्ध हो सकते हैं । अंतिम समय में उनकी मराठा क्षत्रप की छवि पूर्णतया छिन्न-भिन्न हो गई है। प्रदेश के मतदाताओं ने उनके प्रति सम्मान रखते हुए भी उन्हें यह आभास करा दिया है कि वह अच्छे राजनीतिज्ञ होते हुए भी गलत लोगों के साथ खड़े हुए थे। जब लोगों ने राष्ट्रवाद को लेकर अपना जनादेश दिया हो तब भारत, भारतीयता और भारतीय राष्ट्रवाद की विरोधी शक्तियों के साथ खड़े मराठा क्षत्रप को लोगों ने उनकी औकात दिखाकर सदा के लिए राजनीति से एक प्रकार से विदा कर दिया है।
इसके साथ ही संजय राउत और उद्धव ठाकरे को भी लोगों ने समझा दिया है कि यदि वह बालासाहेब ठाकरे की विरासत को छोड़कर उधारी बैसाखियों के आधार पर लोगों को ठगने का काम करेंगे तो जनता उनके साथ नहीं है । प्रदेश के लोग बालासाहेब ठाकरे का सम्मान करते हैं , परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि उनकी विचारधारा का कश्मीरी निकालने वाले उनके ही बेटे के साथ रहने का भी लोगों ने संकल्प ले लिया है। लोगों ने स्पष्ट कर दिया है कि बालासाहेब ठाकरे की विरासत और विचारधारा के उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे नहीं हैं।
यदि बात उत्तर प्रदेश की करें तो यहां पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। योगी निर्विवाद नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। अब आगे जो भी चुनाव आएंगे, उनमें योगी आदित्यनाथ निश्चित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की स्थिति में आ गए हैं। भाजपा के लिए उनकी उपेक्षा करना कठिन होगा। योगी आदित्यनाथ ने अपने बल पर दिखा दिया है कि वह किसी की दया के सहारे चलने वाले नहीं हैं । उनके भीतर माद्दा है और वह सही समय पर सही निर्णय लेना जानते हैं। लोगों ने अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में सही स्थान पर बैठा दिया है। उनकी जातिवाद और परिवारवाद की राजनीति पर पानी फेरकर लोगों ने बता दिया है कि प्रदेश के मतदाता राष्ट्रवाद के साथ हैं। कुल मिलाकर महाराष्ट्र के चुनाव हिंदू राष्ट्रवाद की अवधारणा को मजबूत करते दिखाई दे रहे हैं। जिनका भारत की राजनीति पर प्रभाव पड़ना निश्चित है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)