Categories
कविता

यह चार अवस्था मानव की…

हंस भाव में जीता है जो,
नर देह वही कहलाता है।
ब्रह्मचर्य की यह अवस्था,
जीवन सफल बन जाता है।।

वसु – भाव में जीने वाला,
वर देह का बनता अधिकारी।
गृहस्थ आश्रम में रह मानव,
तैयार करे जीवन क्यारी।।

वानप्रस्थ का जीवन जिसका,
उसने परहित में श्रृंगार किया।
‘ होता’ की कर प्राप्त अवस्था,
लोकहित में जीवन वार दिया।।

अतिथि कहलाता है संन्यासी,
पवित्र उपदेश करता फिरता।
जीवन बना लिया कुंदन उसने,
सन्मार्ग दिखाता सबको चलता।।

यह चार अवस्था मानव की,
यम बतलाते नचिकेता को।।
अनुकरण करता जो इनका,
लघु कौन कहे, उस प्रचेता को।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

Comment:Cancel reply

Exit mobile version