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काल्पनिक राम का जनाजा ??

अम्बेडकरवादी, बौद्ध,ईसाई व मुसलमान लोग भगवान राम कृष्ण गीता रामायण वेद उपनिषद मनुस्मृति व आर्यों को लेकर बहुत दुष्प्रचार कर रहे हैं। काल्पनिक राम का जनाजा नामक एक लेख में कुछ धूर्तों ने इतिहास को तोड मरोड कर पेश किया है और मनमाने दोष लगाये हैं। इस लेख की समीक्षा इस प्रकार है:-

1.आक्षेप -श्रीलंका का नाम ‘लंका’ 1972 में ही पड़ा, इससे पहले इस ‘श्रीलंका’ नाम का देश पूरे संसार में भी नही था

समीक्षक : गलत, 1972 से पूर्व भी नाम लंका था. सिंहल भाषा में श्रीलंका कहा जाता था. तामिल भाषा में इलंका कहते थे. आज से लगभग 5150 वर्ष पूर्व लिखित इतिहास-ग्रन्थ महाभारत में भी इस टापू को लंका ही कहा गया था. आज से लाखों वर्ष पूर्व शूद्र वाल्मीकि जो बाद में ऋषि कहलाये, उनके द्वारा लिखित इतिहास-ग्रन्थ रामायण में भी इस टापू का नाम लंका ही वर्णित है.

2.आक्षेप – ‘अयोध्या’ को पहले ‘साकेत’ कहा जाता था। 2,000 साल पूर्व अयोथ्या नाम का शहर भारत में नही था !

समीक्षक अयोध्या को साकेत गौतम बुद्ध के काल में कहा जाने लगा. पूर्व में तो अयोध्या ही नाम था, जिसे कोशल राज्य की राजधानी कहा जाता था. वाल्मीकि रामायण में भी अयोध्या ही वर्णित है.
अ = नहीं
योद्ध्या = जिसे युद्ध में जीता जा सके.
अतः अयोद्ध्या का अर्थ जिससे युद्ध ना किया जा सके.

3.आक्षेप – 12,000 साल पूर्व ‘भारत’ से ‘श्रीलंका’, “सड़क-मार्ग” से जा सकते थे, क्योकि समुद्र का जलस्तर कम होने के कारण दोनो देशों के बीच 1 to 80 किमी. तक चौड़ा जमीनी मार्ग था । ऐसे में 17,00,000 लाख साल पुर्व में जन्मे भगवान राम ने कौन सी ‘अयोध्या’ से किस ‘लंका’ पर चढ़ाई की और वह ‘रामसेतु’ कहाँ बनाया ? यह समझ परे की बात हैं !

समीक्षक : गलत, आपकी बातें निराधार हैं, भारत और श्रीलंका के बीच में बहुत बडा पर्वत है, जो की समुद्र के तल के नीचे है, और करोडों वर्ष पुराना है. श्रीरामसेतु का निर्माण इस पर्वत के आधार से ही हुआ. वाल्मीकि-रामायण में हनुमान का समुद्र को पार करना और बाद में उसी मार्ग में सेतु निर्माण का विस्तार से वर्णन है.

4.आक्षेप – कहीं ऐसा तो नही की ‘रामायण’ कल्पनात्मक ढंग से लिखी गई हो और प्रचार होने पर किसी शहर का नाम ‘अयोध्या’ तो किसी देश का नाम ‘श्रीलंका’ रख दिया हो !

तथ्य और प्रमाण: •-‘श्रीलंका’ अब चुंकी आम लोग नाम के आधार पर ‘श्रीलंका’ को ‘रावण’ की लंका मानते हैं और वहाँ स्थित प्राचीन बौद्ध-स्थलों को भी रावण की राजधानी से जोड़ रहै हैं। पर शोधकर्ता इससे सहमत नहीं हैं। उस देश का नाम भी ‘श्रीलंका’ नही था! आप ‘श्रीलंका’ का इतिहास पढ़ सकते हैं। 1972 से पूर्व ‘श्रीलंका’ नाम से संसार में भी कोई देश नही था । भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र 31 किलोमीटर है। 1972 तक इसका नाम सीलोन (अंग्रेजी:Ceylon) था, जिसे 1972 में बदलकर लंका तथा 1978 में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द “श्री” जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। आप इंटरनेट पर ‘श्रीलंका’ का इतिहास पढ़ सकते हैं । लंका से पहले यह देश ‘सीलोंन’ नाम से जाना जाता था । ‘सीलोंन’ से पूर्व इसे ‘सिंहलद्वीप’ कहा जाता था । इससे भी पूर्व यह दीपवंशा, कुलावंशा, राजावेलिया इत्यादि नामों से जाना जाता था। मगर ‘लंका’ कभी नही, क्योंकि स्वयं ‘लंकावासियों’ को भी राम, रामायण, और रावण का कोई अता-पता नही था। तीसरी सदी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र के यहां आने पर ‘बौद्ध धर्म’ का आगमन हुआ।

मगर भारत के ‘चोल’ शासकों का ध्यान जब इस द्वीप पर गया तो वे इसका संबंध रावण की लंका से जोड़ने लगे । हालांकि तब भी श्रीलंकावासी स्वयं इस तथ्य से अनभिज्ञ ही थे। ‘रामायण’ में जिस ‘लंका’ का उल्लेख किया गया है वह प्राचीन भारत का कोई ग्रामीण क्षेत्र था जो लंबे-चौड़े नदी-नालों से आमजन से कटा हुआ था । कई इतिहारकारों के अनुसार यह स्थल ‘दक्षिण-भारत’ का ही कोई क्षेत्र था ।

समीक्षक : सीलोन शब्द श्रीलंका से ही व्युत्पन्न (derived) है. जिसे अंग्रेजों ने बिगाडा था.
श्री = सी
लंका = लोन

आप भी इन्टरनेट पर पढ लीजिये की इसका नाम अनेक ग्रन्थों में श्रीलंका था,
https://en.wikipedia.org/wiki/Sri_Lanka

आप जिन शोधकर्त्ताओं की बात कर रहे हैं, वो जो वामपन्थी देशद्रोही मानसिकता से पीडित हैं, या तो अंग्रेजों एवं ईसाई मिशनरियों के तलवे चाटते हैं. जो की हवा में बात करते हैं, भारत के प्राचीन इतिहास-ग्रन्थों को Epic या मनगढंत कहानी कहते हैं. उनकी बातें निराधार और अप्रामाणिक होने से अमान्य हैं.

सिंहलद्वीप तो बहुत नया नाम है, और सिंगापुर को सिंहपुर (City of Lions) कहते थे. प्राचीनतम नाम लंका ही है

5.आक्षेप द्वितीय- भारत और ‘श्रीलंका’ के बीच में “कोरल्स” की चट्टानें है उन्हें पत्थर नहीं कहा जा सकता है । इन ‘कोरल्स’ की संरचना ‘मधुमक्खियों’ के छत्ते के समान होती है, जिनमे बारीक़ रिक्त स्थान होते है। अतः किसी भी हल्की वस्तु का आयतन, पानी के घनत्व के कम होने पर वह तैरने लगती है !!!

•-‘अयोध्या’ यहीं नही अपितु राम की कथित ‘अयोध्या’ भी दो हजार वर्ष पूर्व अस्तित्व में नहीं थी। आज जिसे अयोध्या कहते है उसे पहले ‘साकेत’ कहा जाता था । ‘मौर्यकाल’ के बाद ‘शुंगकाल’ में ही “साकेत” का नाम अयोध्या रखा गया। बौद्धकालीन किसी भी ग्रंथ में अयोध्या नाम से कोई स्थान नही था। ’साकेत’ का ही नाम बदलकर ‘अयोध्या’ रखा गया।

समीक्षक : बौद्धों का अस्तित्व तो केवल 2500 वर्षों से है, यह कुछ संकीर्ण मानसिकता से युक्त बौद्धों का षड्यन्त्र ही है, की उनके ग्रन्थों में अयोध्या शब्द को स्थान नहीं दिया गया. राजीव दीक्षित जी के वीडियों में श्रीरामसेतु से सम्बन्धित अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये गए थे, जो की निम्नलिखित लिंकों में है:

https://www.youtube.com/watch?v=jT8jejtjGHY

6.आक्षेप : वैज्ञानिकों के अनुसार धरती पर ‘आधुनिक-मानव’ (Homo-sapiens) की उत्पति 1 लाख, तीस-हजार साल पूर्व ‘अफ्रीका’ में हुई थी। कालांतर में आज से एक लाख साल पूर्व वहां से मानव का भिन्न-भिन्न कबीलों के रूप में भिन्न-भिन्न ‘द्वीपों’ और ‘महाद्वीपों’ की और अलगाव होता रहा।

हमारे ‘भारत’ में मानव का 67,000 साल (सतसठ हजार) पूर्व आना बताया गया है। इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि जो घटनाये आज समाज के सामने प्रस्तुत की जाती हैं उनका गहराई से अध्ययन ज़रूर करना चाहिये तभी सत्यता को समझा जा सकता है। अन्यथा कल्पनाओ में डुबोकर लोगो को पाखण्ड और अंधविश्वास के सहारे सिर्फ मारा ही जा सकता है. आधुनिक विकाश से इसका कोई वास्ता नही हो सकता है वैसे भी गौरतलब तथ्य तो यही है कि धूर्तों का तथाकथित अन्यायी राम था तो बहुजन मूलनिवासियों का हत्यारा और दुश्मन ही यह बात भारतीय बहुजन मूलनिवासियों को जितनी जल्दी समझ में आ जाय उतनी ही जल्दी इस राम का जनाजा उठने में इस देश को मदद मिलेगी….

समीक्षक : वैज्ञानिकों के अनुसार नहीं, डार्विन लालबुझक्कड़ के अनुसार, तथाकथित होमो-सेपियन्स की उत्पत्ति 1 लाख से 2 लाख वर्ष पूर्व के बीच हुई थी. ये बताईये की जब आदम (Adam) प्रथम बुद्धिमान मनुष्य था, तो और जब आदम अधिकतम 7000 वर्ष पूर्व हुआ था, तो 1 लाख 30 हज़ार वर्ष पूर्व homo Sapiens कैसे हो गया ???

150 वर्ष पूर्व तथाकथित वैज्ञानिक सृष्टि की उत्पत्ति १०००० वर्ष पूर्व की बताते थे. दिनों-दिन सृष्टि की अवधि तथाकथित वैज्ञानिक बढाते चले जा रहे हैं. भारतीय वैदिक विद्वानों के अनुसार, सृष्टि की उत्पत्ति 1 अरब 97 करोड वर्ष पूर्व हुई थी, और 1 अरब 96 करोड वर्ष पूर्व मनुष्यों की उत्पत्ति हुई. विकासवाद का सिद्धान्त झूठा है, और इस पर विस्तृत समालोचना पण्डित रघुनन्दन शर्मा जी ने “वैदिक सम्पत्ति” नामक पुस्तक में लिखी है.

एक तरफ तो आप श्रीराम की सत्ता को अस्वीकार करते हो, दूसरी तरफ उन्हें अन्यायी और हत्यारा कहते हो, जो सूचित करता है, की या तो आपकी बुद्धि का दिवाला निकल गया है, या अपनी बुद्धिमत्ता को क्रिश्चन मिशनरियों के हाथों बेच चुके हैं .

वामपन्थियों के चेलों और अंग्रेजों के तलवे चाटने वाले देशद्रोही ही श्रीराम जैसे महापुरुषों की निन्दा करते हैं, और उनके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं.

श्रीराम ही एकमात्र राजा हैं जिनके अस्तित्व का प्रमाण पूरे विश्व में मिलता है, विस्तृत जानकारी के लिए पढ़िए “ वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास (4 भागों में)लेखक: पुरुषोत्तम नागेश ओक.

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