आजादी से पहले हैदराबाद फ्रांस के बराबर क्षेत्रफल और आबादी वाली एक छोटी सी रियासत थी । इसका क्षेत्रफल 82 313 वर्ग मील और आबादी लगभग सवा दो करोड़ की थी। इस राज्य की 89% जनसंख्या हिंदू थी । कासिम रिजवी रजाकार मुसलमानों की जमात का अगुआ था और रियासत का नवाब निजाम पर भारी पड़ता था। वह अलग देश के रूप में रहना चाहता था ।उसने रजाकारों की सहायता से लूटपाट और हिंदुओं को डराना धमकाना आरंभ कर दिया । जिसका उल्लेख पंडित नेहरू ने असेंबली में भी किया था । रेलगाड़ी लूट ली जाती थी। इधर निजाम ने संयुक्त राष्ट्र संघ में समझौते का मुद्दा उठाया और भारतीय सेना से लड़ने की तैयारी आरंभ कर दी । सरदार पटेल की अपील जब निजाम ने नहीं मानी तो 13 सितंबर 1948 को भारतीय पुलिस ने चढ़ाई कर दी और 17 सितंबर को सत्ता अपने हाथ में ले ली । 1 नवंबर 1948 को निजाम के अधीन ही रखकर भारतीय संघ में मिला दिया गया। हाथ जोड़कर नवाब हैदराबाद सरदार पटेल की शरण में आ गया । उसी समय का फोटो हमने यहां पर दिया है ।इस पुलिस कार्यवाही को ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया था ।
सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत के साथ मिलाने के लिए सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों को छोड़कर अन्य लाइसेंसधारी लोगों से हथियार जमा कराने का आदेश जारी किया । तब उन्होंने एक दिन कह दिया ” हैदराबाद में पुलिस एक्शन । ” सरदार ने मेजर जनरल जे एन चौधरी को इस कार्यवाही की बागडोर सौंपी ।सरदार ने देहरादून के सर्किट हाउस से यह आदेश दिया था। जहां वह स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे । उन्होंने जनरल को वहीं बुलाकर सब कुछ समझाया और जनरल से अनेकों प्रशन अपनी ओर से किए । सरदार का प्रमुख प्रश्न यही था कि आप कितनी देर में यह कार्यवाही पूर्ण कर सकते हैं ? तब जनरल चौधरी ने कहा कि अधिक से अधिक 10 दिन में और कम से कम 6 दिन में यह कार्य पूर्ण हो जाएगा।
सरदार पटेल ने हंसते हुए जनरल से कहा ” रास्कल बदमाश ! यह सैनिक ढंग से शाकाहारी भोजन होगा समय का प्रश्न नहीं दोहराया ।”
12 सितंबर 1948 को जिन्ना की मृत्यु हो गई तो संयोग देखिए कि अगले दिन हैदराबाद पर कार्यवाही प्रारंभ हो गई और निजामशाही की भी मौत हो गई। किसके बल से ? – भारत के पौरुष के प्रतीक — सरदार के आत्मबल से ।
सरदार से पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर बी सी राय ने पूछा कि जिन्ना की मृत्यु पर क्या भारतीय झंडा झुका दिया जाए ? – तो पटेल का उत्तर था कि क्या वहआपका संबंधी था ? यद्यपि बाद में अंतरराष्ट्रीय शिष्टाचार का निर्वाह करते हुए झण्डा झुकाए गए । परंतु सरदार का मन नहीं था । सरदार के पश्चात हमारे देश के नेताओं ने जिन्ना को अपना संबंधी मान लिया ।
सरदार पटेल के व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि नवाब जूनागढ़ को अपनी रियासत को छोड़कर भागना पड़ गया था । नवाब को अपने कुत्ते अपनी बेगमों से भी अधिक प्रिय थे । नवाब भागते समय इतना भयभीत था कि वह अपनी बेगम को भी हवाई अड्डे पर समय से न पहुंचने के कारण छोड़कर भाग गया था । उसने अपनी बेगम की प्रतीक्षा करनी भी उचित नहीं समझी थी । 20 फरवरी 1948 को जूनागढ़ में जनमत संग्रह के पश्चात भारत में अपना विलय कर दिया। जब सरदार पटेल विजयी मुद्रा में यहां आए तो उन्होंने सोमनाथ के मंदिर के जीर्णोद्धार की घोषणा की । इस प्रकार एक मुस्लिम शासक का अंत तो इस रियासत से हुआ ही साथ ही सरदार पटेल के एक मजबूत निर्णय से इतिहास के एक कलंक को धोने में भी सहायता मिली।हमें ऐसे ही तेजस्वी नेतृत्व की आवश्यकता है । सरदार पटेल के उस ऐतिहासिक निर्णय को जो उन्होंने 13 सितंबर 1948 को लिया था , आज सारा राष्ट्र श्रद्धा से नमन करता है ।डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
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