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कविता

वह कवि-कभी नहीं हो सकता

वह कवि-कभी नहीं हो सकता,
जो नव पीढ़ी को भ्रष्ट करे।
जो अधेड़ उम्र में जाकर भी,
श्रृंगार – भोग में मस्त रहे।।

हिंदी का होकर हिंदी से,
जिसका मन करता द्रोह सदा।
उर्दू की गजलें करता हो,
वह कवि-कभी नहीं हो सकता।।

उसको मैं कैसे कहूं कवि,
जो अंग्रेजी पर मरता हो।
परदेसी भाषा के आगे,
हिंदी की हत्या करता हो।।

जिसके संस्कार रसीले हैं,
जिसमें अध्यात्म नहीं बसता।
जो जीवन रस को न समझ सका,
वह कवि-कभी नहीं हो सकता।।

जिस पर चढ़ी वासना भारी,
संयम जिसके लिए है धोखा।
‘ अफीम ‘ धर्म को जो माने,
वह कदापि कवि नहीं होता।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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