प्रकृति के गूढ़ रहस्य और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

सुनील कुमार महला

सूचना क्रांति के इस दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कि कृत्रिम बुद्धि का कंसेप्ट बहुत ही प्रसिद्ध कान्सेप्ट है। वास्तव में यह एक ऐसी तकनीक है, जिसमें मानव जैसी समस्या-समाधान क्षमताएँ विद्यमान होती हैं। आज इस तकनीक की मदद से मेडिकल क्षेत्र, मीडिया के क्षेत्र, इंजीनियरिंग क्षेत्र, कंप्यूटर विज्ञान, मनोविज्ञान,भाषा विज्ञान, गणित,तत्व विज्ञान समेत अनेक क्षेत्रों में कार्य किया जा रहा है और एक प्रकार से यह तकनीक मानव बुद्धि को चैलेंज देती नजर आती है। इस तकनीक की मदद से भविष्य को सटीकता से आंका जा सकता है, अनुमान लगाते जा सकते हैं, अनेक प्रकार की भविष्यवाणियां सटीकता से की जा सकती हैं।

हाल ही में न्यूयॉर्क में वैज्ञानिकों ने एआइ-रोबोट से सफलतापूर्ण सर्जरी कराने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। उल्लेखनीय है कि अमरीका की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी (जेएचयू) में एक रोबोट ने खुद जटिल सर्जरी कर डॉक्टरों को हैरान कर दिया। जेएचयू के शोधकर्ताओं ने एआइ-रोबोट को जटिल मेडिकल प्रोसीजर की ट्रेनिंग दी थी। इस दौरान उसे डॉक्टरों के कई वीडियो दिखाए गए और रोबोट ने डॉक्टरों की तरह सटीक तरीके से सर्जरी कर दिखाई। शोधकर्ताओं ने इसे ‘इमीटेशन लर्निंग’ (देखकर सीखना) का कामयाब प्रयोग करार दिया है। यह ठीक है कि आज सूचना क्रांति, तकनीकी विकास का दौर है। समय के साथ वैज्ञानिक तकनीक और प्रगति से चीजें बदलीं हैं, लेकिन कृत्रिम चीजें, आखिर कृत्रिम ही होतीं हैं और प्राकृतिक चीजें प्राकृतिक। विज्ञान और तकनीक ने आज भले ही कितनी ही प्रगति क्यों न कर ली हो, ईश्वरीय शक्ति या ब्रह्मांड में कोई शक्ति विचरण कर रही है, इस पर से विज्ञान और तकनीक आज भी पर्दा नहीं उठा पाए हैं। मसलन जन्म-मरण, पुनर्जन्म आज भी एक रहस्य ही है।

मानव आज एआई का विकास करके एक तरह से प्रकृति, ब्रह्मांड में विद्यमान शक्ति को ललकार रहा है। विज्ञान माने या न माने कोई तो शक्ति इस ब्रह्मांड में अवश्य ही विद्यमान है जो इस जगत को चलायमान रखें हुए है। यह ठीक है कि एआई मानवीय लक्ष्यों, उसके उद्देश्यों के अनुरूप कार्य कर रही है, लेकिन यह कहीं न कहीं विनाशकारी व्यवहार विकसित करता है। इस संदर्भ में हाल ही में एआई चैटबॉट के इश्क में डूबकर एक 14 साल के बच्चे ने अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए अपनी जान दे दी। यह बच्चा अमेरिका के फ्लोरिडा का था और बचपन में ‘एस्परगर सिंड्रोम’ का शिकार हो गया था। वास्तव में, एस्परगर सिंड्रोम, ऑटिजम स्पेक्ट्रन डिसऑर्डर का ही एक रूप है, जिसमें लोगों के व्यवहार, दुनिया को देखने और समझने के तरीके पर असर होता है। यह ठीक है कि कंप्यूटर और एआई दोनों ही मनुष्य के दिमाग की उपज हैं लेकिन ये कभी-कभी मनुष्य से अधिक बुद्धिमान हो सकतीं हैं। इतनी अधिक बुद्धिमान की ये मनुष्य को अपने नियंत्रण में लेने तक का अचंभित करने वाला फैसला तक भी ले सकतीं हैं।

कहना ग़लत नहीं होगा कि आज कंप्यूटर इतने कार्यकुशल हो गये हैं कि वे बिना मनुष्य की सहायता से कुछ भी कार्य करने में सक्षम हो गये हैं। एआई बेरोजगारी को जन्म दे सकती है। स्वचालन से नौकरियों के क्षेत्र में नुकसान हो सकता है, क्यों कि मानव श्रम की जरूरत ही नहीं होगी। डीपफेक तो एक बड़ा खतरा है ही। एआई गोपनीयता का उल्लंघन कर सकती है, क्यों कि मशीन में भावनाएं नहीं होतीं हैं। एआई सामाजिक-आर्थिक विषमताओं को जन्म दे सकती है। बाजार में अस्थिरता पैदा कर सकती है। एआई से हथियारों के स्वचालन संभव होने के कारण संपूर्ण मानवजाति के लिए खतरा पैदा हो सकता है। एआई मनुष्य की तरह पारदर्शिता और व्याख्या नहीं बरत सकती है, क्योंकि मशीन में भाव नहीं होते हैं, वह डाटा फीडिंग पर कंप्यूटर के बाइनरी सिस्टम से काम करती है। मशीन के निर्णय फीड किए डेटा पर निर्भर होते हैं, इसलिए वे असुरक्षित हो सकते हैं। यहां तक कि एआई एल्गोरिदम के माध्यम से सामाजिक हेरफेर भी संभव है। एआई पूर्वाग्रह लिंग और नस्ल से कहीं आगे तक आसानी से जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि एआई तकनीक मनुष्य द्वारा ही विकसित की गई है, और मनुष्य स्वाभाविक रूप से पक्षपाती है। एआई मनुष्य की नैतिकता और सद्भावना पर व्यापक असर डाल सकती है। एआई के प्रयोग से मानवीय सहानुभूति और तर्क में कमी आ सकती है। इतना ही नहीं एआई राजनीतिक अस्थिरता के साथ ही आपराधिक गतिविधियों में भी वृद्धि कर सकती है। यह ठीक है कि एआई हमारे सामने आने वाली अनेक बड़ी-बड़ी चुनौतियों को पल में हल करने के लिए हमारे टूलबॉक्स में आज के सूचना क्रांति और तकनीक के इस दौर में सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है, लेकिन प्रकृति को चुनौती देने को किसी भी हाल और परिस्थितियों में ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि मानव आदिकाल से प्रकृति के गूढ़ और छिपे अनेक रहस्यों से पर्दा हटाने के लिए निरंतर प्रगतिशील है, लेकिन कहीं न कहीं विज्ञान और तकनीक को यह मानना होगा कि ब्रह्मांड को संतुलित रूप से चलाने के लिए कोई न कोई निराकार शक्ति है, जो जिम्मेदार है। वास्तव में हमारी पूरी सृष्टि नदी, पहाड़, घाटियां, नाले, झीलें,समुद्र ,विभिन्न प्रकार के जीव, वनस्पतियां, आकाश और उसमें मौजूद अरबों सितारे, गैलेक्सियां ये सभी कहीं न कहीं ईश्वर के होने का प्रमाण ही तो है। आज एआई मेडिकल, अंतरिक्ष विज्ञान, इंजीनियरिंग, शिक्षा समेत अनेक क्षेत्रों में लाभदायक व उपयोगी साबित हो रही है लेकिन विज्ञान में यदि इलेक्ट्रान, प्रोटोन और न्यूट्रॉन हैं तो ईश्वर या प्रकृति भी इस ब्रह्मांड में मौजूद है,जिसका मनुष्य के पास कोई तोड़ या हल नहीं है।

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