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जबरन धर्मांतरण पर लगाम कसने की तैयारी में सरकार

                  रामस्वरूप रावतसरे

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 2010 (एफसीआरए) के तहत पंजीकरण रद्द करने या नवीनीकरण से इनकार करने के कुछ कारणों को सूचीबद्ध कर एक नोटिस जारी किया है। इसमें ‘विकास विरोधी गतिविधियों, जबरन धर्मांतरण और देश विरोधी प्रदर्शन आदि में शामिल होने को बतौर कारण दर्ज किया गया है।

 इस संबंध में 8 नवंबर को जारी नोटिस, गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर 11 नवंबर 24 को पोस्ट किया गया। इस नोटिस के अनुसार, मंत्रालय ने एफसीआरए आवेदनों को अस्वीकार करने के कारणों की सूची इसलिए दी है क्योंकि कुछ संस्थाओं से उसे अभ्यावेदन मिला था, जिसमें कहा गया था कि उनके आवेदनों को अस्वीकार करने के कारण स्पष्ट नहीं बताए गए हैं।

नोटिस में सूचीबद्ध कारणों के बिंदु 8 में कहा गया है कि एफसीआरए प्रमाणन के लिए आवेदन रद्द किए जा सकते हैं यदि यह पाया जाता है कि एसोसिएशन ‘विकास विरोधी गतिविधियों’ या ‘विरोध भड़काने’ में शामिल रहे हैं। वहीं नोटिस के बिंदु 10 में कहा गया है कि लाइसेंस रद्द किया जा सकता है या देने से मना किया जा सकता है यदि स्थानीय जांच में एसोसिएशन के खिलाफ प्रतिकूल इनपुट मिलता है जैसे, विकास विरोधी गतिविधियों में शामिल होना, दुर्भावनापूर्ण इरादों के साथ विरोध प्रदर्शन भड़काना, आतंकवादी संगठन/राष्ट्र-विरोधी संगठन के साथ संबंध आदि।’ बिंदु 11 में कहा गया है कि एफसीआरए का लाइसेंस तब भी रद्द किया जा सकता है यदि ‘इसके पदाधिकारी/सदस्य/प्रमुख संघ या पदाधिकारी/इकाइयों का कट्टरपंथी/आतंकवादी संस्थाओं से संबंध हो।’

इस नोटिस के मुताबिक, प्रमाणीकरण को तब भी रद्द किया जा सकता है अगर विदेशी चंदे (एफसी) की स्वीकृति से सामाजिक/धार्मिक सद्भाव प्रभावित होने की संभावना हो या एसोसिएशन प्रेरित/जबरन धार्मिक रूपांतरण/धर्मांतरण में शामिल हो. या फिर उसके पदाधिकारियों के कट्टरपंथी संगठनों से संबंध हों। वेबसाइट पर गृह मंत्रालय के डैशबोर्ड के अनुसार, वर्तमान में एफसीआरए लाइसेंस वाले कुल 16,026 एसोसिएशन सक्रिय हैं, जबकि कुल 20,711 के लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं। ज्ञात हो कि हाल के वर्षों में ऐसे गैर सरकारी संगठनों की सूची में चिंताजनक वृद्धि हुई है जिनके एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं।

दिसंबर 2021 में केंद्र सरकार ने ‘प्रतिकूल इनपुट’ का हवाला देते हुए मदर टेरेसा के संगठन- मिशनरीज़ ऑफ चौरिटी के एफसीआरए रिन्यूअल को अस्वीकार कर दिया था। व्यापक आलोचना के बाद इसे एक महीने बाद इसके लाइसेंस का नवीनीकरण किया गया। इस साल अप्रैल में केंद्र सरकार ने तीन चर्च-आधारित चौरिटी संगठनों सहित पांच गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिए थे।

गैर सरकारी संगठन सीएनआई सिनोडिकल बोर्ड ऑफ सोशल सर्विस, वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया, इंडो-ग्लोबल सोशल सर्विस सोसाइटी, चर्च ऑक्जिलरी फॉर सोशल एक्शन और इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया (ईएफआई) के भी लाइसेंस को सरकार ने रद्द कर दिया है। जानकारी के अनुसार ईएफआई ईसाइयों के खिलाफ हमलों पर डेटा एकत्र और प्रकाशित करता है. संस्था ने मोदी सरकार के कार्यकाल में इस समुदाय के खिलाफ हिंसा में बढ़ोत्तरी की ओर ध्यान भी आकर्षित किया है।

गृह मंत्रालय ने फरवरी में कथित तौर पर एफसीआरए नियमों का उल्लंघन करने के लिए तमिलनाडु कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस के तत्वावधान में एक ईसाई एनजीओ, तमिलनाडु सोशल सर्विस सोसाइटी का एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया था। इससे ठीक एक महीने पहले गृह मंत्रालय ने तमिलनाडु स्थित ईसाई संघ वर्ल्ड इंडिया विजन का एफसीआरए पंजीकरण भी रद्द किया था। गौरतलब है कि मोदी सरकार अक्सर गैर-लाभकारी संगठनों के काम को दबाने के लिए एफसीआरए का इस्तेमाल करती रही है। इस से पहले जनवरी में सरकार ने 50 साल पुराने पॉलिसी थिंक-टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च का एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया था। फरवरी में सीबीआई ने पूर्व आईएएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर से जुड़े परिसरों में छापेमारी की थी. 2020 से आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) सहित केंद्र सरकार की कई जांच एजेंसियों ने मंदर और उनके सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) की जांच की है।

जुलाई में सेंटर फॉर फाइनेंशइयल एकाउंटेबिलिटी संस्थान का एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया गया था जो एक गैर-लाभकारी संस्था है और राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की भूमिका और विकास, मानवाधिकार और पर्यावरण पर उनके प्रभाव का गंभीर विश्लेषण, निगरानी और आलोचना करती है। सीबीआई द्वारा दायर एक एफआईआर में आरोप लगाया गया कि सीईएस ने एफसीआरए अधिनियम का उल्लंघन करते हुए 2020 और 2021 में अपने एफसीआरए खाते से वेतन या पारिश्रमिक के अलावा 32 लाख रुपये से अधिक अन्य खातों में ट्रांसफर किया था।

सरकारी कार्यवाही को लेकर हर्ष मंदर के अनुसार सरकार ने अपने नोटिस में जिन कारणों का हवाला दिया है, वे हाल के वर्षों में किसी भी प्रकार के नागरिक असंतोष के खिलाफ कार्रवाई करने के प्रयासों के मजबूत होने की ओर इशारा करते हैं। उनके अनुसार ‘सरकार संगठित नागरिक समाज को अपने प्रमुख शत्रु के रूप में देखती है. न्यायपालिका, मीडिया, संसद और विपक्ष सभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा की असंवैधानिक वैचारिक परियोजना का विरोध करने में काफी हद तक कमजोर हो गए हैं। सरकार ऐसे संगठनों पर हमले कर रही है जो वास्तव में नागरिक समाज और शिक्षा जगत के वर्ग हैं जिन्होंने अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न के खिलाफ और संविधान को हमलों के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं।’

हर्ष मंदर आगे कहते हैं, ‘जिन लोगों के खिलाफ ये कारण बताए गए हैं और जिन 20 हजार एनजीओ के लाइसेंस रद्द किए गए हैं, वो उन मामलों में ‘दोषी’ नहीं हो सकते हैं। सरकार अराजनीतिक और तकनीकी सेवा-आधारित संगठनों के खि़लाफ़ भी बिना मतलब आग भड़का रही है। इसके साथ ही उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, जो नफरत फैलाने वालों के खिलाफ और अल्पसंख्यकों के साथ खड़े हैं, उदाहरण के लिए, वो संगठन जो, आदिवासी क्षेत्रों में बड़े कॉरपोरेट्स के प्रवेश का विरोध कर रहे हैं।’

 जिस प्रकार  हर्ष मंदर केन्द्र सरकार की उक्त कार्यवाही को गलत बता रहे है, उसी प्रकार उन पर देश विरोधी गतिविधियों में संलग्न रहने के आरोप लगे है जिसके कारण ही उनके एनजीओं का लाईसेंस रद्द हुआ है। जानकारी में यह भी आया है कि केन्द्र सरकार ने उन संस्थाओं/एनजीओं के लाईसेंस रद्द किये है जो अवैधानिक रूप से विदेशों से धन लेकर भारत में सरकार विरोधी गतिविधियों एवं विकास में किसी ना किसी रूप में बाधक बन रहे थे या फिर कानून का पालन नहीं कर रहे थे।

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