बिरसा मुंडा और आदिवासियों को साधने का प्रयास
कुमार कृष्णन
जनजातीय गौरव दिवस, जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के साथ ही रोहिंग्या और घुसपैठिया का मसला संथाल परगना इलाके का बड़ा चुनावी मसला बना हुआ है। आगामी 20 नवंबर को संथाल परगना इलाके में मतदान है। उस बाबत नरेंद्र मोदी का झारखंड के गोड्डा में चुनावी सभा और बिहार के जमुई में जनजातीय गौरव सम्मान सभा के कई मायने निकल रहे हैं।
भगवान बिरसा मुंडा की 150 वी जन्म जयंती समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन को शुद्ध राजनीतिक उद्देश्यों से लबरेज माना जा रहा है। जमुई से प्रधानमंत्री ने दक्षिण बिहार की राजनीति को साधने की कोशिश की। माना जा रहा है कि इसी के साथ वो आदिवासी समाज के साथ नए तेवरों में जुड़े और झारखंड विधानसभा चुनाव के अगले चरण का शंखनाद भी कर दिया। अब इसे संयोग माने या फिर प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति, अक्सर देखा गया है कि लोकसभा चुनाव के दौरान उनका कार्यक्रम ऐसी जगह बनाया जाता रहा जहां के बगल वाले क्षेत्र पर भी उनके भाषण, ऐलान का प्रभाव पड़ सके। जमुई में प्रधानमंत्री मोदी का जनजातीय गौरव दिवस समारोह में आना कहीं उस मुहावरा के सापेक्ष तो नहीं जिसमें कहा जाता है ‘कहीं पर निगाहें,कहीं पर निशाना।’
झारखंड में 26 फीसदी आबादी आदिवासी है। पिछले दो दशकों में इनकी संख्या में कमी आई है लेकिन ये अभी भी काफी प्रभावी हैं। 60 फीसदी से ज्यादा विधान सभा सीटों पर आदिवासी अभी भी निर्णायक स्थिति में हैं। सिर्फ झारखंड नहीं, महाराष्ट्र में भी आदिवासियों की अच्छी खासी आबादी है। महाराष्ट्र की 32 से 35 सीटों पर वे जीत हार तय करने की स्थिति में हैं। यही वजह है कि दिल्ली-बिहार से दोनों राज्यों के आदिवासियों को साधने की कोशिश है। मध्य प्रदेश, राजस्थान – छत्तीसगढ़ चुनाव में भी भाजपा ने इसी तरह की कोशिश की थी। तब प्रधानमंत्री मोदी झारखंड के उलिहातु पहुंच गए थे, जो भगवान बिरसा मुंडा की जन्मभूमि है। देश भर के आदिवासी नेताओं को पहले ही मैदान में उतारा जा चुका है।
इस का जनजातीय गौरव खास है क्योंकि आज से पूरे देश में बिरसा मुंडा की 150वीं जन्मजयंती के उत्सव शुरू हो रहे हैं। ये कार्यक्रम अगले एक साल तक चलेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले वर्ष आज के दिन मैं धरती आबा बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में था। आज उस धरती पर आया हूं, जिसने शहीद तिलका मांझी का शौर्य देखा है। प्रधानमंत्री ने मुझे यहां भगवान बिरसा मुंडा के वंशज श्री बुद्धराम मुंडा जी का भी स्वागत सत्कार किया । सिद्धू कान्हू जी के वंशज श्री मंडल मुर्मू जी का भी मुझे कुछ दिन पहले ही सत्कार करने का सौभाग्य मिला था। उनकी उपस्थिति से इस आयोजन की इस आयोजन की शोभा और बढ़ गई है।
धरती आबा बिरसा मुंडा के इस भव्य स्मरण के बीच आज छह हजार करोड़ रुपयों से अधिक की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण प्रधानमंत्री ने किया। इनमें आदिवासयों के लिए करीब डेढ़ लाख पक्के घरों के स्वीकृति पत्र हैं। आदिवासी बच्चों का भविष्य संवारने वाले स्कूल हैं, हॉस्टल हैं, आदिवासी महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, आदिवासी क्षेत्रों को जोड़ने वाली सैंकड़ों किलोमीटर की सड़के हैं। आदिवासी सांस्कृति को समर्पित म्यूजियम है, रिसर्च सेंटर हैं।आदिवासी महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, आदिवासी क्षेत्रों को जोड़ने वाली सैंकड़ों किलोमीटर की सड़के हैं। आदिवासी सांस्कृति को समर्पित म्यूजियम है, रिसर्च सेंटर हैं। 11 हजार से अधिक आदिवासी परिवारों का अपने नए घर में देव दीपावली के दिन गृह प्रवेश भी हो रहा है।
प्रधानमंत्री ने यह जताने की कोशिश की कि पिछली सरकार ने आदिवासियों के बलिदान को नजरअंदाज़ किया, तब जनजातीय गौरव मनाने की आवश्यकता हुई ताकि इतिहास के अन्याय को दूर किया जा सके। प्रधानमंत्री ने स्मरण कराया कि आजादी के बाद आदिवासी समाज के योगदान को इतिहास में वो स्थान नहीं दिया गया, जिसका मेरा आदिवासी समाज हकदार था। आदिवासी समाज वो है, जिसने राजकुमार राम को भगवान राम बनाया। आदिवासी समाज वो है जिसने भारत के संस्कृति और आजादी की रक्षा के लिए सैंकड़ों वर्षों की लड़ाई को नेतृत्व दिया लेकिन आजादी के बाद के दशकों में आदिवासी इतिहास के इस अनमोल योगदान को मिटाने की कोशिशें की गई। इसके पीछे भी स्वार्थ भरी राजनीति थी। राजनीति ये कि भारत की आजादी के लिए सिर्फ एक ही दल को श्रेय दिया जाए लेकिन अगर एक ही दल, एक ही परिवार ने आजादी दिलाई तो भगवान बिरसा मुंडा का उलगुनान आंदोलन क्यों हुआ था? संथाल क्रांति क्या थी? कोल क्रांति क्या थी? क्या हम महाराणा प्रताप के साथी उन रणबांकुरे भिलों को भूल सकते हैं क्या? कौन भूल सकता है? सह्याद्री के घने जंगलों में छत्रपति शिवाजी महाराज को ताकत देने वाले जनजातीय भाई बहनों को कौन भूल सकता है? अल्लूरी सीताराम राजू जी के नेतृत्व में आदिवासियों द्वारा की गई भारत माता की सेवा को तिलका मांझी, सिद्धू कान्हू, बुधू भगत, धीरज सिंह, तेलंगा खड़िया, गोविंद गुरु, तेलंगाना के राम जी गोंड, एमपी के बादल भोई राजा शंकर शाह, कुमार रघुनाथ शाह! मैं कितने ही नाम लो टंट्या भील, निलांबर –पितांबर, वीर नारायण सिंह, दीवा किशन सोरेन, जात्रा भरत, लक्ष्मण नाईक, मिजोरम की महान स्वतंत्रता सेनानी, रोपुइलियानी जी, राजमोहिनी देवी, रानी गाइदिन्ल्यू, वीर बालिका कालीबाई, गोंडवाना की रानी दुर्गावती। ऐसे असंख्य, असंख्य मेरे आदिवासी मेरे जनजातीय शूरवीरों को कोई भुला सकता है क्या? मानगढ़ में अंग्रेजों ने जो नरसंहार किया था? हजारों मेरे आदिवासी भाई बहनों को मौत के घाट उतार दिया गया था। क्या हम उसे भूल सकते हैं? जमुई के आयोजन से प्रधान मंत्री विपक्ष पर निशाना साधने से नहीं चूके ।
उन्होंने कहा कि संस्कृति हो या फिर सामाजिक न्याय, आज की एनडीए सरकार का मानस कुछ अलग ही है। मैं इसे भाजपा ही नहीं बल्कि एनडीए का सौभाग्य मानता हूं कि हमें द्रोपदी मुर्मु जी को राष्ट्रपति बनाने का अवसर मिला। वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति है। मुझे याद है जब एनडीए ने द्रौपदी मुर्मु जी का राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना तय किया तो हमारे नीतीश बाबू ने पूरे देश के लोगों को अपील की थी कि द्रोपदी मुर्मु जी को भारी मतों से जीताना चाहिए। आज जिस पीएम जनमन योजना के तहत अनेक काम शुरू हुए हैं, उसका श्रेय भी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु जी को ही जाता है। जब वो झारखंड की राज्यपाल थीं और फिर जब वो राष्ट्रपति बनीं तो अक्सर मुझसे आदिवासियों में भी अति पिछड़ी आदिवासी जनजातियों का जिक्र किया करती थीं। इन अति पिछड़ी आदिवासी जनजातियों की पहले की सरकारों ने कोई परवाह ही नहीं की थी।
आदिवासियों के जीवन से मुश्किलें कम करने के लिए ही 24000 करोड़ रूपये की पीएम जनमन योजना शुरू की गई। पीएम जनमन योजना से देश की सबसे पिछड़ी जनजातियों की बस्तियों का विकास सुनिश्चित हो रहा है। आज इस योजना को 1 साल पूरा हो रहा है। इस दौरान हमने अति पिछड़ी जनजातियों को हजारों पक्के घर दिए हैं। पिछड़ी जनजातियों की बस्तियों को जोड़ने के लिए सैंकड़ों किलोमीटर की सड़कों पर काम शुरू हो चुका है। पिछड़ी जनजातियों के सैकड़ों गांवों में हर घर नल से जल पहुंचा है।
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि जिनको किसी ने नहीं पूछा, मोदी उनको पूजता है। पहले की सरकारों के रवैये के कारण आदिवासी समाज दशकों तक मूल सुविधाओं से वंचित ही रहा। देश के दर्जनों आदिवासी बाहुल्य जिले विकास की गति में बहुत पिछड़ गए थे। अगर किसी अफसर को सजा देनी हो, उसको पनिशमेंट देना हो, तो पनिशमेंट पोस्टिंग भी ऐसे जिलों में की जाती थी। एनडीए सरकार ने पुरानी सरकारों की सोच को बदल दिया। हमने इन जिलों को आकांक्षी जिलें घोषित किया और वहां नए और ऊर्जावान अफसरों को भेजा। मुझे संतोष है, आज कितने ही आकांक्षी जिले विकास के कई पैरामीटर्स पर दूसरे जिलों से भी आगे निकल गए हैं। इसका बहुत बड़ा लाभ मेरे आदिवासी भाई बहनों को हुआ है।
सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि आदिवासी कल्याण आरंभ से एनडीए सरकार की प्राथमिकता रही है। अटल बिहारी वाजपेई जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ही थी जिसने आदिवासी कल्याण के लिए अलग मंत्रालय बनाया। 10 साल पहले आदिवासी क्षेत्रों आदिवासी परिवारों के विकास के लिए बजट ₹25000 करोड़ रूपयों से भी कम था। 10 साल पहले का हाल देखिए, 25 हजार करोड़ से भी कम। हमारी सरकार ने इसको 5 गुना बढ़ाकर सवा लाख करोड़ रुपए पहुंचाया है। अभी कुछ दिन पहले ही देश के साठ हजार से अधिक आदिवासी गांवों के विकास के लिए एक विशेष योजना हमने शुरू की है। धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान, इसके तहत करीब 80,000 करोड़ रुपए आदिवासी गांवों में लगाए जाएंगे। इसका मकसद आदिवासी समाज तक जरूरी सुविधाएं पहुंचाने के साथ-साथ, युवाओं के लिए ट्रेनिंग और रोजगार के अवसर बनाने का भी है। इस योजना के तहत जगह-जगह ट्राइबल मार्केटिंग सेंटर बनेंगे। लोगों को होम स्टे बनाने के लिए मदद दी जाएगी, प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे आदिवासी क्षेत्रों में पर्यटन को बल मिलेगा और आज जो इको टूरिज्म की एक परिकल्पना बनी है, वह हमारे जंगलों में आदिवासी परिवारों के बीच में संभव होगा और तब पलायन बंद हो जाएगा, पर्यटन बढ़ता जाएगा।
केन्द्र सरकार ने आदिवासी विरासत को सहेजने के लिए भी अनेक कदम उठाए हैं। आदिवासी कला संस्कृति के लिए समर्पित अनेक लोगों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। रांची में भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर विशाल संग्रहालय की शुरुआत की। और मेरा तो आग्रह है हमारे सभी स्कूल के विद्यार्थियों को भगवान बिरसा मुंडा का ये जो संग्रहालय बनाया है, उसे जरूर देखना चाहिए, स्टडी करना चाहिए। आज मुझे खुशी है कि आज मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में बादल भोई म्यूजियम और मध्य प्रदेश में ही जबलपुर में राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह संग्रहालय का उद्घाटन हुआ है। आज ही श्रीनगर और सिक्किम में दो आदिवासी रिसर्च सेंटर का भी उद्घाटन हुआ है और आज ही भगवान बिरसा मुंडा जी की याद में स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किए गए हैं। ये प्रयास देश को आदिवासी शौर्य और गौरव की निरंतर याद दिलाते रहेंगे।
आदिवासी समाज का भारत की पुरातन चिकित्सा पद्धति में भी बहुत बड़ा योगदान है। इस धरोहर को भी सुरक्षित किया जा रहा है और भावी पीढ़ी के लिए नए आयाम भी जोड़े जा रहे हैं। एनडीए सरकार ने लेह में नेशनल इंस्टिट्यूट आफ सोवा रीगपा की स्थापना की है। अरुणाचल प्रदेश में नार्थ ईस्टन इंस्टिट्यूट आफ आयुर्वेद एंड फोक मैडिसिन रिसर्च को आधुनिक किया गया है। डब्ल्यूएचओ का ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडीशनल मेडिसिन भी भारत में बन रहा है। इससे भी भारत के आदिवासियों की परंपरागत चिकित्सा पद्धति देश दुनिया तक पहुंचेगी।
जनजातीय समाज की पढ़ाई कमाई और दवाई इस पर हमारी सरकार का बहुत जोर है। आज डॉक्टरी हो, इंजीनियरिंग हो, सेना हो, ऐरोप्लेन प्लेट हो, हर प्रोफेशन में आदिवासी बेटे बेटियां आगे आ रहे हैं। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि बीते दशक में स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक आदिवासी क्षेत्रों में बेहतर संभावनाएं बनी है। आजादी के छह सात दशक बाद भी देश में एक ही सेंट्रल ट्राईबल यूनिवर्सिटी थी। बीते 10 सालों में एनडीए ने इस सरकार ने दो नई सेंट्रल ट्राइबल यूनिवर्सिटी देश को दी है। इन वर्षों में अनेक डिग्री कॉलेज, अनेक इंजीनियरिंग कॉलेज, दर्जनों आईटीआई आदिवासी बाहुल्य जिलों में बने हैं। बीते 10 साल में आदिवासी जिलों में 30 नए मेडिकल कॉलेज भी बने हैं और कई मेडिकल कॉलेज पर काम जारी है। यहां जमुई में भी नया मेडिकल कॉलेज बन रहा है। हम देश भर में 700 से अधिक एकलव्य स्कूलों का एक मजबूत नेटवर्क भी बना रहे हैं।मेडिकल, इंजीनियरिंग और टेक्निकल शिक्षा में आदिवासी समाज के सामने भाषा की भी एक बहुत बड़ी समस्या रही है। हमारी सरकार ने मातृभाषा में परीक्षा के विकल्प दिए हैं। इन फैसलों ने आदिवासी समाज के बच्चों को नया हौसला दिया है। उनके सपनों को नए पंख लगाए हैं।
बीते 10 साल में आदिवासी नौजवानों ने स्पोट्स में भी, खेलकूद में भी कमाल किया है। इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भारत के लिए मेडल जीतने वालों में ट्राइबल खिलाड़ियों का बहुत बड़ा योगदान है। आदिवासी युवाओं की इस प्रतिभा को देखते हुए, जनजातीय क्षेत्रों में खेल सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। खेलो इंडिया अभियान के तहत आधुनिक मैदान स्पोर्ट्स कांप्लेक्स आदिवासी बहुल जिलों में बनाए जा रहे हैं। भारत की पहली नेशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी भी मणिपुर में बनाई गई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद 70 साल तक हमारे देश में बांस से जुड़े कानून बहुत सख्त थे। इससे आदिवासी समाज सबसे ज्यादा परेशान था। हमारी सरकार ने बांस काटने से जुड़े कानूनों को सरल किया। पहले की सरकार के समय सिर्फ़ 8-10 वन उपज उस पर ही एम एसपी मिला करती थी। ये एनडीए सरकारी ही है, जो अब करीब 90 वन उपजों को एम एसपी के दायरे में लाई है। आज देश भर में 4000 से अधिक वन धन केंद्र काम कर रहे हैं। इनसे 12 लाख आदिवासी भाई बहन जुड़े हैं। उनको कमाई का बेहतर साधन मिला है। उन्होंनें कहा जब लखपति दीदी अभियान शुरू हुआ है। तब से करीब 20 लाख आदिवासी समाज की बहनें लखपति दीदी बन चुकी हैं और लखपति दीदी का मतलब यह नहीं है कि एक बार एक लाख, हर वर्ष एक लाख रूपये के भी ज्यादा कमाई, वो मेरी लखपति दीदी है।
अनेक आदिवासी परिवार, कपड़ों, खिलौनों, साज-सज्जा के शानदार समान बनाने के काम में जुटे हैं। ऐसे हर सामान के लिए हम बड़े शहरों में हॉट बाजार लगा रहे हैं। यहां पर भी बहुत बड़ा हॉट लगा है, देखने जैसा है। मैं आधे घंटे तक वहीं घूम रहा था। हिंदुस्तान के अलग-अलग जिलों से मेरे आदिवासी भाई बहन आए हुए हैं, और क्या बढ़िया-बढ़िया चीजें बनाई हैं, देख कर के मैं तो हैरान था। आपसे भी मेरा आग्रह है उसे देखे भी और कुछ मन कर जाए तो खरीद भी कीजिए। इंटरनेट पर भी इसके लिए एक वैश्विक बाजार बना रहे हैं। मैं खुद भी जब विदेशी नेताओं को गिफ्ट देता हूं, तो इसमें बहुत बड़ी संख्या में आदिवासी भाई-बहनों द्वारा बनाए गए सामान मैं भेंट करता हूं। हाल में ही मैंने झारखंड की सोहराई पेंटिंग, मध्य प्रदेश की गौंड पेंटिंग और महाराष्ट्र की वारली पेंटिंग विदेश के बड़े-बड़े नेताओं को भेंट की है। अब उन सरकारों के अंदर दीवारों पर ये चित्र नजर आएंगे। इससे हुनर, कला का दुनिया में भी यश बढ़ रहा है।पढ़ाई और कमाई का लाभ तभी मिल पाता है, जब परिवार स्वस्थ रहें। आदिवासी समाज के लिए सिकल सेल एनीमिया की बीमारी एक बहुत बड़ी चुनौती रही है। सरकार ने इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय अभियान चलाया है। इसको शुरू हुए 1 साल हो चुका है। इस दौरान करीब साढ़े चार करोड़ साथियों की स्क्रीनिंग हुई है। आदिवासी परिवारों को अन्य बीमारियों की जांच के लिए ज्यादा दूर जाना न पड़े, इसके लिए बड़ी संख्या में आयुष्मान आरोग्य मंदिर बनाए जा रहे हैं। दुर्गम से दुर्गम इलाकों में भी मोबाइल मेडिकल यूनिट स्थापित की जा रही है।
आज भारत पूरी दुनिया में क्लाइमेट चेंज के खिलाफ लड़ाई का पर्यावरण की रक्षा का बड़ा नाम बना है। ऐसा इसलिए, क्योंकि हमारे विचारों के मूल में आदिवासी समाज के सिखाए संस्कार हैं। इसलिए मैं प्रकृति प्रेमी आदिवासी समाज की बातें पूरी दुनिया में बताने की कोशिश करता हूं। आदिवासी समाज सूर्य और वायु को, पेड़ पौधों को पूजने वाला समाज है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस पावन दिवस पर एक और जानकारी आपको देना चाहता हूं। भगवान बिरसा मुंडा की 150 वीं जन्म जयंती के उपलक्ष्य में देश के आदिवासी बाहुल्य जिलों में बिरसा मुंडा जनजातीय गौरव उपवन बनाए जाएंगे। बिरसा मुंडा जनजातीय गौरव उपवन में 500-1000 वृक्ष लगाए जाएंगे। मुझे पूरा भरोसा है, इसके लिए सभी का साथ मिलेगा, सबका सहयोग मिलेगा।
भगवान बिरसा मुंडा की जयंती का यह उत्सव हमें बड़े संकल्पों को तय करने की प्रेरणा देता है। प्रधानमंत्री ने उम्मीद जतायी कि देश के आदिवासी विचारों को नए भारत के निर्माण का आधार बनाएंगे। हम मिलकर आदिवासी समाज की विरासत को सहेजेंगे। हम मिलकर उन परंपराओं से सीखेंगे, जो सदियों से आदिवासी समाज ने संरक्षित कर रखी है। ऐसा करके ही हम सही मायने में एक सशक्त, समृद्ध और सामर्थ्यवान भारत का निर्माण कर पाएंगे।ऐसे में सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा काफी तेज हो गई है कि कहीं इन कार्यक्रमों के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव का टोन 2024 में तो नहीं सेट कर रहे हैं?
कुछ लोग इसे 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं और इस बात की भी चर्चा है कि प्रधानमंत्री बिहार को इन योजनाओं की सौगात अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा को लेकर ही दे रहे हैं तो वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि प्रधानमंत्री का जमुई दौरा झारखंड विधानसभा में जनजातीय वोटरों को प्रभावित करने के लिए भी हो सकता है। लोगों का यह जरूर मनाना है कि झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री का यह दौरा हो सकता है क्योंकि यह कार्यक्रम जनजातीय लोगों के लिए है और झारखंड में जनजाति लोगों की आबादी अच्छी खासी है।
कुमार कृष्णन