भगवा विरोध में उभरते मल्लिकार्जुन खड़गे के सुर

विजय सहगल

पिछले दिनों कॉंग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मुंबई की एक चुनावी रैली मे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ का नाम लिये बिना उनके भगवा वस्त्रो पर अशोभनीय टिप्पणी कर विवादों के घेरे मे आ गये। उन्होने कहा कि कई नेता साधु वेश मे रहते हैं और अच्छे राजनीतिज्ञ बन गये हैं और उनके सिर पर बाल भी नहीं हैं, अब राजनेता बन गये है। कुछ तो मुख्य मंत्री भी बन गये। उन्होने आगे भाजपा को संबोधित करते हुए कहा या तो उनके नेता सफ़ेद कपड़े पहनें या अगर वे सन्यासी हैं तो गेरुए कपड़े पहनें और राजनीति से बाहर हो जाएं ! उसकी पवित्रता क्या रह गयी !

कॉंग्रेस का सनातन, भगवा या हिंदुओं पर दुराग्रह कोई नई बात नहीं है. इसके पूर्व भी उनके पुत्र सहित कॉंग्रेस के तमाम नेता और इंडी गठबंधन के लोग समय कुसमय सनातन के विरुद्ध कड़ुवे शब्दों मे विष वमन करते रहे है। बैसे तो राजनैतिक तौर पर भारतीय लोकतन्त्र मे किसी भी धर्म, भाषा, संस्कृति या पहनावे को राजनीति मे हिस्सा लेने पर प्रतिबंध नहीं है, तब मल्लिकार्जुन खड़गे का उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी को राजनीति से बाहर हो जाने वाला उक्त बयान गैर जरूरी और बेतुका है। अब देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल के मुखिया मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा सनातन धर्माचार्य के वस्त्रों पर किए गये कमेंट पर विचार मंथन आवश्यक हो गया है।

काश स्वतन्त्रता के बाद देश मे सफ़ेद कपड़े (खादी) पहनने वाले कोंग्रेसी नेताओं ने, उनके लगभग 65 सालों के शासन मे हुए घोटाले, भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद के मामले न किए होते तो आदित्य नाथ जैसे भगवाधारी योगियों को शायद ही राजनीति मे आने के आवश्यकता होती? आज आवश्यकता, मल्लिकार्जुन खड़गे को कॉंग्रेस के इतिहास पर दृष्टिपात करने की है कि, क्या श्वेतांबर धारी कॉंग्रेस के नेताओं ने योगी के भगवा वस्त्रों मे उनके कार्यकाल मे भ्रष्टाचार, परिवारवाद और भाई भतीजा वाद रूपी दाग खोजा? क्या काँग्रेस और मल्लिकार्जुन खडगे ने योगी के कार्यकाल मे मनसा वाचा कर्मणा के आधार पर कोई ऐसा कृत्य देखा जो आम नागरिकों, समाज, राष्ट्र को अहित पहुंचाने वाला हो?

जो कॉंग्रेस परिवारवाद के चलते, नेहरू खानदान की चौथी-पाँचवी पीढ़ी को देश मे स्थापित करने के लिये प्रयासरत है और स्वयं श्री मल्लिकार्जुन खड़गे भी परिवारवाद की राजनीति के चलते, कर्नाटक मे अपने मंत्री पुत्र, मोह से अछूते नहीं हैं, उस कॉंग्रेस ने, योगी जी के कार्यकाल मे उनके माता-पिता, भाई-बहिनों या अपने परिवार के अन्य रिश्तेदारों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई आर्थिक लाभ या राजनैतिक संरक्षण पहुंचाने का कोई भी उदाहरण देखा?

जिस कॉंग्रेस के शासन काल मे स्वतन्त्रता के बाद हुए साइकिल घोटाला (1951), मूंदड़ा जीप घोटाला (1958), तेजा ऋण घोटाला (1960), मारुति कार, पनडुब्बी दलाली (1987), बोफोर्स तोप (1987), हर्षद मेहता कांड( (1992), इंडियन बैंक घोटाला (1992), तहलका कांड, केतन पारेख का स्टॉक मार्केट कांड, अब्दुल करीम तेलगी का स्टम्प पेपर घोटाला, सत्यम कम्प्युटर कांड जैसे अनेक घोटाले हुए। 2010 मे कॉमनवैल्थ गेम घोटाला, 2जी घोटाला, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला, कोयला घोटाला, नोट फॉर वोट, शारदा चिट फ़ंड, अगास्ता वेस्टलेंड हेलीकाप्टर घोटाले जैसे अन्य अनेक घोटालों को भी लोग भूले नहीं है। राहुल और सोनिया गांधी पर नेशनल हेराल्ड कांड अभी न्यायालय मे विचारधीन ही है। अपने सफ़ेद कपड़ों के दामन मे इतने काले दाग समेटे कॉंग्रेस, योगी के मुख्यमंत्री के रूप चल रहे, दूसरे कार्यकाल मे क्या उनके भगवा वस्त्रों पर अब तक कोई काला धब्बा खोज पायी?

ये तो भला हो योगी जी का कि अपने निष्कलंक मुख्यमंत्रित्व काल मे न केवल काजल की कोठरी मे अब तक बेदाग रह रहे है अपितु प्रदेश मे गुंडे, अपराधियों, माफियायों एवं असामाजिक तत्वों पर लगाम लगाई। बहुतों को तो समूल उखाड़ फेंक उनके अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया और अपराधियों को “मिट्टी मे मिला देने वाले” अपने बयान के माध्यम से अपने स्पष्ट और दृढ़ इरादों को एक बार फिर जतला दिया। भगवा वस्त्र की उजली चमक को, श्रीमद्भगवत गीता के उस कथन को फिर एकबार पुनर्स्थापित किया जिसमे भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि-:

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।। (अध्याय 4 श्लोक 8)

सनातन पर अनावश्यक टिप्पणी करने वाले जिन मल्लिकार्जुन खड़गे जी को अन्य धर्म और धर्मावलंबियों पर टिप्पड़ियों पर तो मानों साँप सूंघ जाता हो, उनके उक्त दृष्टांतों के आधार पर मल्लिकार्जुन खड़गे के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी के भगवा वस्त्रों पर की गयी आधारहीन टिप्पणियों से तो, ये निर्णय निकालना सहज और सरल है कि वर्तमान समय मे देश को सफ़ेदपोश भ्रष्ट, परिवार वादियों, चारित्रिक रूप से पतित नेताओं की अपेक्षा भगवाधारी साधुओं की ही आवश्यकता है, जिनेक लिये देश के एक सौ चालीस करोड़ जनमानस ही उनका परिवार हैं। देशहित ही उनके लिये सर्वोपरि है।

विजय सहगल

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