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लेखक आर्य सागर तिलपता ग्रेटर नोएडा 🖋️
धरती पर विचरण करने वाला प्रत्येक सांप चाहे वह विषैला हो या विषहीन, जंगली हो या पालतू अपनी केंचुली का त्याग अवश्य करता है। त्याग हमेशा ही सुखदायक होता है यह इस लेख के अंत तक स्पष्ट हो जाएगा। सांप अपनी केंचुली को त्यागता है। प्रथम हम केंचुली पर विचार करते हैं यह केंचुली क्या है? केचुली सर्प के लोचदार शरीर की सबसे बाहरी त्वचा होती है जो मृत हो जाती है। सांप इकलौता ऐसा सरीसृप है जो एक साथ ही अपनी पूरी मृत या संक्रमित त्वचा को त्याग देता है। यूं तो मनुष्य भी अपने त्वचा को त्यागता है लेकिन एक साथ हमारे शरीर की त्वचा की बाहरी मृत कोशिकाएं नहीं झड़ती लाखों त्वचाए कोशिकाएं दिन भर में क्रम से इकाई के रूप में टुकड़ों में झड़ती रहती हैं। इसके लिए हमें कोई प्रयास भी नहीं करना पड़ता है लेकिन सांप के मामले में ऐसा नहीं है।
केंचुली त्याग की प्रक्रिया सांप के लिए सर्वाधिक जोखिम पूर्ण प्रयास साध्य होती है। दयालु भगवान ने सर्प योनि के साथ न्याय करते हुए सांप को हाथ तो दिए नहीं है कि वह हाथों से अपनी मृत त्वचा को उतार फेंक दे कुछ लोगों को यह विरोधाभासी लगेगा आखिर दयालु भगवान ने सर्प को हाथ न देकर उसके साथ न्याय कैसे किया है इसमें उसकी कैसी दया ? वैदिक दर्शन में न्याय और दया एक ही अर्थ के वाचक है।दर्शन और अध्यात्म का यह विषय इतना सरल नहीं है ।लेख के विस्तार भय विस्तृत लेखो के पढ़ने के सम्बन्ध में पाठकों की उदासीनता के कारण में इस लेख में कर्म फल व्यवस्था, भोग योनि या उभय योनी जैसे गहन गंभीर दार्शनिक विषय की मीमांसा, इनकी सिद्धि करने का प्रयास नहीं करूंगा इन विषयों को सिद्ध मानते हुए ही त्याग से कैसे सुख मिलता है यह सिद्ध करने का सदप्रयास रहेगा। सांप कैसे और कब-कब अपनी केचुली को छोड़ते हैं यह समझने से पहले यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है आखिरी सांप केंचुली को छोड़ते ही क्यों है?
उससे पहले उल्लेखनीय होगा सांप के केंचुली त्यागने की प्रक्रिया को ‘स्कीन शेडिंग’ या ‘इक्डीसिस ‘भी कहा जाता है।
इसे समझते हैं। यूनिवर्सल इंटेलिजेंट डिजाइनर भगवान ने सांपों के संबंध में यह व्यवस्था की है कि सांप का शरीर जन्म लेते ही वृद्ध होने तक नित्य प्रति वृद्धि को प्राप्त होता रहता है सांपों की हड्डी ऊतक यहां तक की उसके कुछ अंदरूनी अंग भी बढ़ते रहते हैं लेकिन सांपों की बाहरी त्वचा से शेष शरीर की वृद्धि के सापेक्ष नियत रहती है ऐसे में सांप के लिए केंचुली का त्याग आवश्यक हो जाता है अन्यथा की स्थिति में सांप के लिए बेहद असहज कष्ट दायक स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
सरीसर्प वैज्ञानिकों के अनुसार दूसरा कारण केंचुली को त्यागने में यह है सांप हमेशा मिट्टी नम क्षेत्र के संपर्क में रहता है सड़े गले कीट चूहे छछूंदर चमगादड़ आदि को सांप अपना भोजन बनाते हैं ऐसे में खतरनाक बैक्टीरिया फंगस परजीवी सांप की इस बाहरी त्वचा से चिपक जाते हैं सांप के शरीर में जरा सा भी घाव होने पर जानलेवा संकरण का जोखिम बढ़ जाता है तो सांप अपनी बाहरी त्वचा को त्याग कर प्रतिरक्षा अर्जित करता है।
सांप सर्वाधिक केंचुली का त्याग युवावस्था में ही करता है इस अवस्था में सांपों के शरीर में वृद्धि की दर अधिक होती है ।युवावस्था में सांप प्रति 2 सप्ताह में एक बार केंचुली का त्याग करता हुआ पाया गये है। वही अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में सांप वर्ष में एक या दो बार ही केंचुली का त्याग करता है ।नाग ,धामन आदि सभी सांप ऐसा ही करते हैं। इसके अलावा यह सब सांप की प्रजाति ,सांप किस पर्यावरण आवास क्षेत्र में रह रहा है उस पर भी निर्भर करता है।
सांपों को केंचुली त्याग करने में कम से कम 1 दिन तो कई सप्ताह व महीने भी लग जाते हैं। केंचुली त्याग की प्रक्रिया सांपों के लिए बेहद असहज असुरक्षित होती है। ईश्वर सभी का रक्षक है ईश्वर इस शानदार सरीसृप की भी रक्षा करता है उसे वह जन्मजात कौशल देकर रक्षा प्रदान करता है। केचूली से कुछ दिन सप्ताह पुर्व सांप के शरीर में विशेष हार्मोन बनने लगता है जिससे सांप की मृत त्वचा व उसका स्थान लेने वाली नई त्वचा के बीच विशेष द्रव बनता है जिससे इस प्रक्रिया में मदद मिलती है। सांप सुरक्षित स्थान को ढूंढने पर ही केंचुली त्याग की प्रक्रिया को शुरू करता है ।वह अपना सर किसी खुदरे पत्थर या पेड़ पर रगड़ता है जिसके कारण सर्वप्रथम उसके चेहरे की मृत कोशिकाएं खंडित हो जाती हैं यह सर्वाधिक संवेदनशील चरण होता है क्योंकि सांपों की आंखों पर पलकें नहीं होती ऐसे में मृत त्वचा की परत सांपों की आंखों को भी आच्छादित किए हुए होती है यदि सांपों की आंखों की मृत् कोशिकाएं नहीं हटी तो सांप जीवन भर के लिए अंधा भी हो सकता है इतना ही नहीं केंचुली त्याग से पूर्व सांप के शरीर में बनने वाले विशेष हार्मोन के कारण सांप की आंखें अपारदर्शी व उसकी दृष्टि बेहद कमजोर हो जाती है इस दौरान वह किसी सांप भक्षी जीव का भी शिकार हो सकता है। एक बार चेहरे की केंचुली उतरने पर सांप के लिए आगे की प्रक्रिया भी इतनी आसान नहीं होती सांप फिर शेष शरीर की केंचुली को उतारने के लिए किसी पेड़ की दो शाखाओं के संकरे स्थान के बीच या किन्ही दो पत्थरों के बीच से बार-बार गुजरता है जिससे उसकी पूरी केंचुली उतर जाए इस प्रक्रिया में भी बहुत जोखिम रहता है। एक बार पूरी केंचुली उतरने पर सांप राहत की सांस लेता है संघर्ष के पश्चात उसे असीम सुख की अनुभूति होती है। मादा सांप प्रजनन से पहले व बच्चा देने के पश्चात भी त्वचा को छोड़ती है।
केंचुली त्याग में सांप का यह महान पुरुषार्थ व त्याग से मिलने वाला सुख सांप के लिए ही नहीं हम मनुष्य के लिए भी बहुत प्रेरणादायक है लौकिक व आध्यात्मिक उभय रुप से। सांख्य दर्शन के रचयिता ‘महर्षि कपिल’ जिन्होंने हजारों वर्ष पहले आज की आधुनिक पार्टिकल फिजिक्स की बुनियाद डाली थी जिनका मूल विषय प्रकृति सत्व रज तम रुपी तत्वों की विवेचना करते हुए कैसे परमतत्व परमात्मा को पाया जा सकता है कैसे आत्म भाव की सिद्धि की जा सकती है उन्होंने सांख्य दर्शन को रचा था। निसंदेह महर्षि कपिल ने जंगल में किसी सांप को केंचुली त्याग करते हुए देखते ही मनुष्य को विवेक युक्त त्याग से होने वाले सुख को समझने के लिए अपने सांख्य दर्शन के प्रसिद्ध चौथे अध्याय में इस दृष्टांत रूप सूत्र को रचा था।
अहि र्निर्लवयिनीवत् ।।६।।
अर्थात जैसे सांप पुरानी केंचुली को छोड़कर सुखी हो जाता है वैसे ही विवेकी व्यक्ति इस अनेक बार भोगी हुई सृष्टि को छोड़कर सुखी हो जाता है।
हमारे ऋषि जंगलवासी थे। वह जंगली जीवों के सहचर व सहअस्तित्व की भावना का सम्मान करते थे ।अपने ग्रंथों में उन्होंने गुढ दार्शनिक वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को सरलता से समझाने के लिए वनस्पतियों व वन्य जीवो को अपने दृष्टांतों में रोचकता से स्थान दिया है।
आज हमारा जीवन ऋषियों की महान शिक्षाओं व उनके सिद्धांतों से विमुख है। ऋषियों के दर्शन व चिंतन के साथ ऋषियों के ही हम संतान हम भारतवासी आज मजाक कर रहे हैं ।उदाहरण केंचुली का ही लेते हैं सांप की केंचुली को आज लोग अंधविश्वास के कारण अपने घर में रखते हैं कि ऐसा करने से घर में धन आता है धन की वृद्धि होती है कुछ पढ़े-लिखे धनवान मुर्ख तो महंगे दामों पर सांप की केंचुली को खरीद लेते हैं भला जिस केचूली के धारण करने से सांप को इतने कष्ट मिलते हैं उस केंचुली को घर में धरने से कैसे धन की वृष्टि हो सकती है। हमें शिक्षा तो कष्टदायक के त्याग, सुखदायक के ग्रहण की लेनी थी हमने कुछ का कुछ अर्थ लगा कर अर्थ का अनर्थ कर दिया। हमारा पतन आज भी जारी है….!
भगवान हम लोगों को सद्बुद्धि दें।
आर्य सागर तिलपता ग्रेटर नोएडा।
लेखक सूचना का अधिकार व सामाजिक कार्यकर्ता है। लेखक के विधिक विषयों पर लेख विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में छपते रहते हैं।