आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
वंश के रक्षक के रूप में :-
कुलदेवी, किसी खास खानदान या कुल की आदि देवी होती हैं।कुलदेवी की पूजा उनके पिंडी या मूर्ति के रूप में की जाती है। वहीं, कुलदेवता को उस कुल के देवता के रूप में पूजा जाता है। कुलदेवी या कुलदेवता कुल या वंश के रक्षक देवी- देवता होते हैं। ये घर-परिवार या वंश- परंपरा के प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते हैं। इनकी गणना हमारे घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी होती है। अत: प्रत्येक कार्य में इन्हें याद करना जरूरी होता है। इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है कि यदि ये रुष्ट हो जाएं तो हनुमानजी जैसे पर प्रभावकारी देव के अलावा अन्य कोई देवी या देवता इनके दुष्प्रभाव या हानि को कम नहीं किया सकता है । ऐसा भी देखने में आया है कि कुल देवी-देवता की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई खास परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब देवताओं का सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का दौर शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, गृहकलह, उपद्रव व अशांति आदि शुरू हो जाती हैं। यहां तक कि आगे वंश का आगे बढ़ना भी रुक जाता है।
बिंदुक्षणी जैसी कुछ अन्य देवियां:-
स्कन्दपुराण के अनुसार बिन्दुक्षणी/ श्रीमाता के नाम से जानी जाती है। उनका धाम गुजरात के पाटन शहर में पंचमुखा हनुमान गली, भगवती नगर में स्थित है। यह मां दुर्गा /मां शारदा का स्वरूप होती हैं। कुछ अन्य संबद्ध वंशों में महादेवी, , कालिका देवी ,योगेश्वरी और दुर्गेश्वरी देवी को भी कुलदेवी के रूप में मान्यता मिली है। कुछ लोग महामाया /वाराही देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। श्री माताजी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी के रूप में भी जानी जाती हैं।
अन्यानेक कुलों की कुलदेवी
माँ बिन्दुक्षणी:-
माँ बिन्दुक्षणी सभी की कुलदेवी हैं इससे संबंधित लोग भारद्वाज गोत्र (पंक्ति) (श्रीमाली ब्राह्मणों की आयु) मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात में पाए जाते हैं। प्रमुख माँ बिंदुक्षिणी का मंदिर सावीधार गांव में स्थित है, जो 12 किलोमीटर दूर है जालोर जिले (राजस्थान) में भीनमाल से दूर है और अन्य मंदिर मुख्य रूप से जोधपुर (राजस्थान), सिरोही और पाली (राजस्थान) आदि है। माँ बिन्दुक्षिनी को माँ बन्धुक्षनी, माँ बन्धुक्षिनी, माँ बा भी कहा जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में भाषा और बोली के अंतर के कारण एनधुरक्षिणी जहां उनके बेटे-बेटियां रहते हैं.माँ बिन्दुक्षिणी हैं जो देवी दुर्गा का एक अवतार । माँ बिन्दुक्षइनि का वाहन सिंह है जो शुभता, विजय, असीम ऊर्जा आदि ताकत का प्रतीक है । उनका पसंदीदा रंग लाल है और उन्हें लाल चुनरी पहनना भी पसंद है। साड़ी के साथ लाल चूड़ियां और लाल बिंदी भी लगाती हैं। उनके हाथ हमेशा कुमकुम से रंगे रहते हैं। माँ बिन्दुक्षिणी के स्मरण का बीज मंत्र इस प्रकार है–
” ॐ ह्रीं श्रीं बिंदउष्णाय नमो नमः ”
जिसका जाप नियमित रूप से प्रातः काल (ब्राह्म मुहूर्त ) और शाम (सूर्य अस्त के बाद) में करना चाहिए। प्रत्येक को कम से कम 51 बार किया जाना चाहिए।
देवी का नामकरण :-
मंदिर का नाम “बिंदुक्षणी” के पीछे भी एक रोचक कहानी भी है। कहा जाता है कि सतयुग में, माता सती के शरीर के अंग पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर गिरे थे। इनमें से माता का एक अंग (बिंदु संभवतः मस्तक के मध्य लगाया जाने वाला सुहाग का चिन्ह बिंदी ) इसी स्थान पर गिरा था। इसी कारण, इस स्थान को “बिंदू” और यहां विराजमान देवी को “बिंदुक्षणी माता” के नाम से जाना जाता है। बिन्दुक्षणी मां और उनका मंदिर गुजरात के पाटण शहर में पंचमुखा हनुमान गली(या शेरी) में भी है। लोग इस मंदिर में आकर अपने कुल देवी को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
पाली की श्री बिंदुक्षणी मां का मन्दिर :-
राजस्थान के पाली की श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर, माता दुर्गा के एक शक्तिपीठ के रूप में विख्यात, यह मंदिर सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। पश्चिमी राजस्थान के आध्यात्मिक धामों की यात्रा का यह पहला पड़ाव है।
राजस्थान की धरती वीरता की गाथाओं और ऐतिहासिक स्थलों के लिए जितनी प्रसिद्ध है, उतनी ही सुंदर मंदिरों और आध्यात्मिक महत्व के स्थलों के लिए भी जानी जाती है। राजस्थान के पाली जिले में स्थित प्रसिद्ध भारद्वाज गोत्र की कुल देवी श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर है। यह मंदिर माता दुर्गा के एक शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है ।हजारों वर्षों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर, राजस्थान के पश्चिमी भाग में स्थित पाली जिले का एक रत्न है। यह मंदिर पाली शहर से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पाली शहर से निकलने के बाद सुमेरपुर रोड की ओर जाना पड़ता है। कुछ ही दूर चलने पर रास्ता मंदिर की ओर मुड़ जाता है। मंदिर एक ऊंचे स्थान पर स्थित है, जो चारों ओर से मनमोहक पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क है और व्यक्तिगत वाहन या टैक्सी आसानी से ली जा सकती है।
बिंदुक्षणी माता मंदिर का इतिहास :-
श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर का इतिहास, रहस्य और श्रद्धा का संगम है। यद्यपि मंदिर के निर्माण का कोई ठोस लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है, फिर भी सदियों से चली आ रही किंवदंतियां और पुराणों में वर्णित कथाएं इसके इतिहास की झलक दिखाती हैं।
बिंदुक्षणी माता मंदिर का निर्माण :-
श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना माना जाता है, लेकिन इसके निर्माण का कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, मंदिर एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है। माना जाता है कि इसका निर्माण किसी स्थानीय राजा द्वारा करवाया गया था। राजा को सपने में माता दुर्गा के दर्शन हुए थे, और उन्हें इस स्थान पर मंदिर बनाने का निर्देश दिया गया था। राजा के आदेश पर मंदिर का निर्माण करवाया गया और तब से यह श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बन गया है।सदियों से मंदिर का जीर्णोद्धार और विस्तार होता रहा है। भव्य नागर शैली में निर्मित यह मंदिर ऊंचे शिखरों और जटिल नक्काशी के लिए जाना जाता है।
मुगल काल और मंदिर का जीर्णोद्धार:-
मुगल शासन के दौरान, कई हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया था। माना जाता है कि श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर भी उसी समय क्षतिग्रस्त हुआ था। हालांकि, इस बात के लिए कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं हैं।
मराठा शासन और पुनर्निर्माण:-
१८ वीं शताब्दी में, मराठा साम्राज्य के शासनकाल के दौरान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। मराठों ने मंदिर की मरम्मत करवाई और इसके आसपास के क्षेत्र का भी विकास किया। इस दौरान, मंदिर की भव्यता और वैभव में वृद्धि हुई।
आधुनिक युग में मंदिर:-
भारत के स्वतंत्र होने के बाद से, श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर का महत्व लगातार बढ़ता गया है। मंदिर के जीर्णोद्धार और रख-रखाव का कार्य निरंतर चलता रहता है। वर्तमान समय में, यह मंदिर न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध है। हजारों श्रद्धालु हर साल मंदिर आकर माता बिंदुक्षणी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं।
मंदिर की वास्तुकला :-
हजारो वर्षों का इतिहास समेटे हुए श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर अपने धार्मिक महत्व के साथ-साथ स्थापत्य कला का भी एक अद्भुत उदाहरण है। श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर अपनी धार्मिक महत्ता के साथ-साथ उत्तरा भारतीय मंदिर शैली, नागर शैली, का एक बेहतरीन उदाहरण है। यह शैली ऊंचे शिखरों, जटिल नक्काशियों और विशाल हॉलों के लिए जानी जाती है।
मुख्य गर्भगृह :-
मंदिर का मुख्य गर्भगृह पवित्र संगमरमर से बना हुआ है। गर्भगृह के केंद्र में भव्य मूर्ति विराजमान है, जिन्हें माता बिंदुक्षणी के नाम से जाना जाता है। श्रद्धालु पूजा- अर्चना करने और माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गर्भगृह में जाते हैं।
माता की मूर्ति के चारों ओर मंदिर के पुजारियों द्वारा चढ़ाए गए श्रद्धालुओं के भेंट चमकते हुए देखे जा सकते हैं।
मंडप:-
गर्भगृह के बाहर एक विशाल मंडप है। इस मंडप को स्तंभों की कतारों ने सुसज्जित किया हुआ है। इन स्तंभों और मंडप की दीवारों पर देवी-देताओं की कहानियों को दर्शाती हुई जटिल नक्काशियां की गई हैं। ये नक्काशियां न केवल कलात्मक दृष्टि से मनमोहक हैं, बल्कि हिंदू धर्मग्रंथों की कहानियों को दर्शाकर श्रद्धालुओं की आस्था को भी बढ़ाती हैं।श्रद्धालु यहां बैठकर पूजा-पाठ कर सकते हैं और मंदिर के शांत वातावरण का आनंद ले सकते हैं।
शिखर:- नागर शैली में निर्मित इस मंदिर की विशेषता इसका ऊंचा शिखर,जिसकी सुंदर नक्काशी दूर से ही श्रद्धालुओं का ध्यान खींचती है। माना जाता है कि शिखर का निर्माण मंदिर के जीर्णोद्धार कार्यों के दौरान किया गया था।
प्राकृतिक सौंदर्य :-
प्राकृतिक सौंदर्य मंदिर पहाड़ियों से घिरे हुए ऊंचे स्थान पर स्थित है। मंदिर दर्शन के साथ-साथ श्रद्धालु आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद ले सकते हैं। शांत वातावरण और मनोरम दृश्य मन को प्रसन्नता प्रदान करते हैं।
मंदिर खुलने का समय:- श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर सुबह सूर्योदय से लेकर शाम को सूर्यास्त तक खुला रहता है। आप दिन के किसी भी समय दर्शन के लिए जा सकते हैं।
प्रवेश निःशुल्क:- मंदिर में प्रवेश निःशुल्क है। श्रद्धालु अपनी इच्छा अनुसार दान कर सकते हैं। मंदिर परिसर में दान पात्र रखे गए हैं, जहां आप दान कर सकते हैं।
पूजा का सामान:- आप मंदिर के बाहर से फूल, प्रसाद और पूजा का अन्य सामान खरीद सकते हैं।
मंदिर शिष्टाचार:- मंदिर जाते समय शालीन वस्त्र पहनने चाहिए। मंदिर के गर्भगृह में जाने से पहले जूते उतारकर बाहर रखने चाहिए। मंदिर परिसर में शांत रहने और मोबाइल फोन को साइलेंट मोड पर रखने का पालन करें।
पहुंच :-
बिंदुक्षणी माता मंदिर तक कैसे पहुंचे
श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर तक पहुंचना काफी आसान है। आप सड़क, रेल या हवाई मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। आइए, विभिन्न विकल्पों पर एक नज़र डालें-
सड़क मार्ग:- श्री बिंदुक्षणी माता मंदिर, राजस्थान के पाली जिले में स्थित है। पाली शहर से मंदिर लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर है। आप राष्ट्रीय राजमार्ग एन एच- 62या राज्य राजमार्ग एसएच- 61का उपयोग करके सड़क मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। पाली शहर से निकलने के बाद सुमेरपुर रोड की तरफ जाना होगा। कुछ ही दूर चलने पर रास्ता मंदिर की ओर मुड़ जाता है। टैक्सी या निजी वाहन आसानी से किराए पर मिल जाते हैं।
रेल मार्ग:- पाली शहर का अपना रेलवे स्टेशन है, जो प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप ट्रेन से पाली पहुंच सकते हैं और फिर वहां से टैक्सी या ऑटो रिक्शा लेकर मंदिर तक जा सकते हैं।
हवाई मार्ग:- निकटतम हवाई अड्डा जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो पाली से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग उत्तम:-
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सड़क मार्ग मंदिर तक पहुंचने का सबसे सुविधा जनक विकल्प है। रेल और हवाई मार्ग का उपयोग करने वाले यात्रियों को मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन का सहारा लेना पड़ सकता है।
सुझाव:-
सम्मानजनक वस्त्र पहनें: मंदिर एक पवित्र स्थान है, इसलिए शालीन और ढंके हुए कपड़े पहनकर जाएं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले चमड़े की वस्तुओं को हटा देना चाहिए।
शांत बनाए रखें:- मंदिर परिसर में शांत वातावरण बनाए रखें। पूजा-अर्चना के दौरान तेज आवाज न करें और मोबाइल फोन को साइलेंट मोड पर रखें।
प्रसाद और पूजा सामग्री:- आप मंदिर के बाहर से फूल, मिठाई और पूजा का अन्य सामान खरीद सकते हैं। मंदिर के अंदर प्रसाद चढ़ाने के लिए निर्धारित स्थान हैं।
जूते उतारें:- गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले चप्पल या जूते उतारकर बाहर रख दें। मंदिर परिसर में भी जूते पहनकर न घूमें।
दान देना वैकल्पिक:- मंदिर में दान देना पूरी तरह से वैकल्पिक है। आप अपनी श्रद्धा अनुसार दान कर सकते हैं। मंदिर परिसर में दान पात्र रखे गए हैं।
पंक्ति का पालन करें:- दर्शन के दौरान यदि भीड़ हो, तो धैर्य रखें और अपनी बारी का इंतजार करें।
मंदिर परिसर का सम्मान करें:- मंदिर परिसर को स्वच्छ रखने में सहयोग करें और दीवारों या किसी भी वस्तु पर कुछ भी न लिखें।
दुकानों से सावधान:- मंदिर के बाहर कई दुकानें हैं जो पूजा का सामान और स्मृति चिन्ह बेचती हैं। वस्तुओं को खरीदने से पहले उचित मूल्य पर मोलभाव करें।7
पास के क्षेत्रों की सैर: आप मंदिर दर्शन के बाद पाली शहर के अन्य दर्शनीय स्थलों को भी देख सकते हैं।
निष्कर्ष :-
बिंदुक्षणी माता मंदिर राजस्थान की धरती पर स्थित एक ऐसा आध्यात्मिक केंद्र है, जो सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। भव्य वास्तुकला, समृद्ध इतिहास और माता की दिव्य शक्ति का अनुभव श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देता है। मंदिर दर्शन से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि इतिहास और कला के धरोहर को भी करीब से देखा जा सकता है।
फोटो प्रतीकात्मक
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर : + 918630778321)