*पौराणिक पञ्चाङ्गों की अनुपालना में हम स्वयं भी पौराणिक ही हैं।*

images (2) (30)

प्रणाम आचार्य जी, आज के प्रचलित पंचांगों में सामान्यतः एवं संदिग्ध स्थिति में भी व्रत पर्व, त्योहारों का निर्धारण निर्णय सिंधु नामक ग्रंथ से किया जाता है। ऐसे में भ्रांत पंचांगों की निर्थकता कैसे सिद्ध किया जाये। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है जनसाधारण में सर्वप्रथम सौरमास, तत् अनुगत चांद्रमास, चांद्रमास के अमांत होने, तत् अनुगत व्रत,पर्व, त्योहारों की जानकारी अनुक्रम से दी जाये। क्या किसी अन्य ग्रंथ में व्रत पर्व का निर्णय वैदिक सिद्धांत SMKAP के अनुरूप उपलब्ध है, हो तो कृपया अवश्य बताएँ।

[12:14, 4/10/2024] आचार्य दार्शनेय लोकेश:

इस सबके लिए एक बहुत ही प्रामाणिक ग्रन्थ है और उसका नाम है कैलेंडर रिफॉर्म कमिटी की रिपोर्ट। इसको भारत सरकार की अपॉइंटेड कमेटी ने तैयार किया है, जिसके सदस्य वैज्ञानिक, गणितज्ञ, ज्योतिर्विद, इतिहास विद, और वेद पुराण अध्ययन से सम्पन्न व्यक्ति थे ।

समस्या यह है कि इस पुस्तक को पढ़ने की क्षमता वाले लोग ना के बराबर हैं।ऐसे में अगर आप उस पुस्तक को किसी को दोगे भी तो उसका वह करेगा क्या?                                     
[13:14, 4/10/2024] आचार्य दार्शनेय लोकेश: 

हम लोग पौराणिक – पौराणिक कहते-कहते, पौराणिकों की मान्यताओं की निन्दा करते आ रहे हैं। लेकिन हम लोगों को यह नहीं मालूम कि पौराणिक पञ्चाङ्गों की अनुपालना में हम स्वयं भी पौराणिक ही हैं।

अब जहां सर्वोच्च संस्थाओं के पदाधिकारियों से लेकर आम आर्य जनों में इतना बड़ा मतिभ्रम चल रहा हो, उन लोगों में सत्य की चेतना जगा पाना असम्भव नहीं भी तो, कठिन तो है ही। ऐसा नहीं होता तो प्रचलित पञ्चाङ्गों  की अवैदिकता, वैदिक लोग भला क्यों स्वीकार करते?

मैं समझता हूं कि यदि ऐसी चेतना को आसान किया जा सकता, तो मेरे अब तक के कुल कार्य, कुल सन्देश और कुल पञ्चाङ्ग अपने आप में परिपूर्ण और सक्षम हो जाने चाहिए थे।लेकिन ऐसा नहीं हो सका है।

मैंने यह जो अभी सन्देश भेजा है, वह सन्देश एक-एक आर्य जन को पहुंचना चाहिए और साथ ही साथ, हम लोगों में इस बात की चर्चा होनी चाहिए  कि हमारा यह सन्देश अमुक व्यक्ति ने पढ़ा भी है या नहीं।लोगों में सत्य और शास्त्र के प्रति अनुकरण की चेतना और तदनुसार आचरण के लिए साहस जगाना बहुत आवश्यक है। धन्यवाद।

आचार्य दार्शनेय लोकेश

[13:33, 4/10/2024] Khilawan Tamboli:
 
आचार्य जी, एक ऋषिपुरुष की भाँति आपने जो समाज के लिये निःस्वार्थ सेवा की है, निश्चित ही पंचांग संशोधन के पुरोधा एक युगपुरुष के रूप में आपका नाम अग्रगण्य होगा। पंचांगों में त्रुटि की जानकारी आमलोगों के साथ कई पंचांगकारों तक को नही है। वास्तव में शासन की उदासीनता या यों कहें कि साजिश के कारण पंचांग रिफॉर्म कमेटी की रिपोर्ट के बावजूद पंचांग संशोधन पर ध्यान नहीं दिया गया और फिर भ्रांत पंचांगों की मान्यता बढ़ गयी। आपका यह कथन सदैव स्मरणीय रहेगा कि “पंचांग वैदिक आदेश है” जिसका अनुपालन सत्य रूप से करना हमारा दायित्व भी है। भोर होने से पहले अंधेरा घनघोर होता है कि भाँति आपकी सेवा भी शीघ्र सफल होगी, ऐसी भावना और शुभकामनाओं सहित आपका हार्दिक अभिनंदन।

Comment: