गन्ना_ग्यारस जैसे पर्वों से दूर होती युवा पीढ़ी

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कल #गन्ना_ग्यारस थी एक अनुमान के अनुसार देशभर में इतने गन्नों की बिक्री हुई कि गन्ने बेचने वालों से लेकर गन्ने उगाने वाले किसान के चेहरे भी खिल गए। सिर्फ गन्ना ही क्यों कल सिंघाड़े उगाने वाले से लेकर बेचने और आंवले वालों की भी अच्छी कमाई हुई।
कुछ समझ आया ? नही ?

हमारे बड़े #बुजुर्ग इतने समझदार थे कि उन्होंने वर्षभर त्योहारों की ऐसी रूपरेखा बनाई कि हर वर्ग को लाभ हो। गरीब अमीर सबके चेहरों पर मुस्कान आए। सबके घर चले सबके त्यौहार मने। लेकिन फिर आए कथित #सेक्युलर्स/#लिबर्ल्स जो चार किताबें पढ़कर खुद को न्यूटन/आइंस्टाइन समझने लगे। उन्हें #सनातनी_त्यौहार अंधविश्वास पाखण्ड रूढ़िवादी लगने लगे। सेक्युलर लिबर्ल्स ने अपना ऐसा नरेटिव चलाया कि मानो त्यौहार से किसी का पेट नही भरता। क्या सच में ?

क्या ग्यारस पर गन्ने बेचने वाले से लेकर उगाने वाले किसान का पेट नही भरा ? सिंघाड़े बेचने से लेकर उगाने वाले का पेट नही भरा ? ग्यारस ही क्यों दीपावली पर कितने गरीबों का पेट भरता है ! दिए वाले से लेकर धानी चिरोंजी खिल बताशे पुष्प रंगोली से पुताई वाले तक ! ऐसे ही धनतेरस पर गरीब बर्तन वाले से लेकर सुनार तक और यहां तक कि देश की अर्थव्यवस्था तक ! ऐसा दशहरे होली जन्माष्टमी रामनवमी से लेकर हर त्यौहार तक हर वर्ग का पेट भरता है। चलिए इन सेक्युलर्स/लिबर्ल्स की मानकर केवल 5 साल के लिए त्यौहार मनाना बन्द कर दे तो इन गरीबों का पेट कौन भरेगा ? भरेंगे ये एजेंडेबाज कथित सेक्युलर लिबर्ल्स ? नही ना ?

ऐसे ही एक और प्रश्न उठाया जाता है सनातनियों को बांटने के लिए त्यौहार तो ब्राह्मणों के बनाए है हम क्यों मनाए ! अच्छा ! चलिए यदि त्यौहार ब्राह्मणों ने बनाए तो हर त्यौहार में गरीब तबके निम्न तबके को भी लाभ हो उनका घर चले ऐसे नियम क्यों बनाए ? दीपावली में सबसे अधिक महत्व मिट्टी के दियों का है इसे बनाने वाला कुम्भार कौन है ? फूल बेचने वाला माली कौन है ? गन्ने सिंघाड़े धानी झाड़ू बेचने वाले कौन है ? पुताई करने वाले कौन है ? क्या ये सब ब्राह्मण है ? नही ना ! तो यदि सच में #ब्राह्मण ने ही सभी त्योहारों के नियम बनाए तो ब्राह्मण तो बहुत उदारवादी थे जिन्होंने सभी मुख्य त्यौहार दीपावली दशहरा ग्यारस इत्यादि पर ब्राह्मण/पंडितों से घरों में पूजा अनिवार्य करने की बजाए गरीबों किसानों निम्न वर्ग के समान बिके ऐसे नियम बनाए।

चलिए अंत में आपसे एक प्रश्न ! दीपावली जैसे सबसे बड़े और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण त्योहार पर घर में पूजा किसी ब्राह्मण/पंडित ने की या आपने स्वयं ? दशहरे से लेकर छठ पर आप स्वयं पूजा किए या ब्राह्मण पंडित जी से करवाए ? सच सच बताइएगा देवउठनी ग्यारस दीपावली दशहरा छठ पर आपने अधिक खर्च निम्न वर्ग से खरीदारी में किया या ब्राह्मण पर ? आपके धन से जेब किसकी भरी ब्राह्मण या अन्य वर्ग की ?

जब ब्राह्मण इतने ही बुरे थे त्योहारों पर अपनी जेब भरने के नियम बनाते सभी अन्य वर्ग की नही लेकिन प्रेक्टीकली तो ऐसा दिखाई नही देता।

आज की पीढ़ी आंखे खोले और चार किताबें पढ़कर चारों ओर सोचे दिमाग लगाए ना कि इन पाखण्डी हिन्दू फोबिक छद्म सेक्युलर्स/लिबर्ल्स के झांसे में आए बल्कि पूरे उत्साह उमंग से त्यौहार मनाए क्योंकि इससे सिर्फ आपको खुशियां नही मिल रही बल्कि अन्य लोगों के चेहरों पर मुस्कान के साथ उनका पेट भी भर रहा है।

एकबार गहनता से सोचिएगा जरूर..

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