हिन्दू युवा नास्तिक क्यों हो रहे है ?*

आत्मनिर्भरता

*
हिन्दू युवाओं के नास्तिक बनने के मुख्य चार कारण है।

धर्मगुरु में दूरदृष्टि की कमी

हिन्दू समाज के धर्मगुरु , अपने मठ बनाने में, धन जोड़ने में, पाखंड और अन्धविश्वास फैलाने में अधिक रूचि रखते हैं ।
हिन्दू समाज में ईसाई धर्मान्तरण, लव जिहाद, नशा, भोगवाद, चरित्रहीनता, नास्तिकता, अपने धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि आदि समस्याएं दिख रही है ।
परन्तु, शायद ही कोई हिन्दू धर्मगुरु इन समस्याओं के निवारण पर ध्यान देता है । युवाओं की धर्म के प्रति बेरुखी का एक अन्य कारण उन्हें किसी भी धर्मगुरु द्वारा उचित मार्गदर्शन नहीं मिलना है । हिन्दू धर्मगुरु एक बड़ा मंदिर बने लेंगे, अथवा कोई सत्संग कर लेगें । इससे आगे समाज को दिशा निर्देश देने में उनकी कोई योजना नहीं दिखती है ।

मीडिया द्वारा हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप में प्रदर्शन

मीडिया आशाराम बापू, शंकराचार्य का जेल भेजना, नित्यानंद की अश्लील सीडी, निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे तथाकथित धर्मगुरुओं के कारनामों को प्राइम टाइम, ब्रेकिंग न्यूज़, पैनल डिबेट आदि में घंटों, बार-बार, अनेक दिनों तक दिखाता है ।
परन्तु, मुस्लिम मौलवियों और ईसाई पादरियों के मदरसे में यौन शोषण, बलात्कार, मुस्लिम कब्रों पर अन्धविश्वास, चर्च में समलेंगिकता एवं ननों का शोषण, प्रार्थना से चंगाई आदि अन्धविश्वास आदि पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखाता ।
इसके ठीक विपरीत मीडिया वाले ईसाई पादरियों को शांत, समझदार, शिक्षित, बुद्धिजीवी के रूप में प्रदर्शित करते है ।
मुस्लिम मौलवियों को शांति का दूत और मानवता का पैगाम देने वाले के रूप में दिखाया जाता है ।
मीडिया के इस दोहरे मापदंड के कारण हिन्दू युवाओं में हिन्दू धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति एक अरुचि की भावना बढ़ने लगती है । ईसाई और मुस्लिम धर्म के प्रति उनके मन में श्रद्धाभाव पनपने लगता है ।
इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत चिंताजनक है। हिन्दू युवा आज गौरक्षा, संस्कृत, वेद, धर्मान्तरण जैसे विषयों पर सकल हिन्दू समाज के साथ खड़े नहीं दीखते । क्योंकि उनकी सोच विकृत हो चुकी है। वे केवल नाममात्र के हिन्दू बचे हैं । हिन्दू समाज जब भी विधर्मियों के विरोध में कोई कदम उठाता है तो हिन्दू परिवारों के युवा हिंदुओं का साथ देने के स्थान पर विधर्मियों के साथ अधिक खड़े दिखाई देते हैं । हम उन्हें साम्यवादी, नास्तिक, भोगवादी कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते हैं ।

हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार

भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ पर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों और ईसाईयों को मिले हुए हैं। इसका मुख्य कारण जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि के नाम पर आपस में लड़ना है । इस आपसी मतभेद का लाभ अन्य लोग उठाते हैं ।
इस सुनियोजित सोच का परिणाम यह निकला कि सरकारी तंत्र से लेकर अन्य क्षेत्रों में विधर्मियों को मनाने , उनकी उचित-अनुचित मांगों को मानने की एक प्रकार से होड़ ही लग गई ।
परिणाम, हिंदुओं के देश में हिंदुओं के अराध्य, परंपरा, मान्यताओं पर तो कोई भी टिका-टिप्पणी आसानी से कर सकता है । जबकि अन्य विधर्मियों पर कोई टिप्पणी कर दे तो उसे सजा देने के लिए सभी संगठित हो जाते हैं ।
इस संगठित शक्ति, विदेशी पैसे के बल पर हिंदुओं के प्रति नकारात्मक वातावरण देश में बनाया जा रहा है ।
ईसाई धर्मान्तरण सही और शुद्धि/घर वापसी को गलत बताया जा रहा है।
मांसाहार को सही और गोरक्षा को गलत बताया जा रहा है।
बाइबिल/क़ुरान को सही और वेद-गीता को पुरानी सोच बताया जा रहा है।
विदेशी आक्रांता गौरी-गजनी को महान और आर्यों को विदेशी बताया जा रहा है।
इस षड़यंत्र का मुख्य उद्देश्य हिन्दू युवाओं को भ्रमित करना और नास्तिक बनाना है।
इससे हिन्दू युवा अपने प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर शर्म करने लगे। ऐसा उन्हें प्रतीत करवाया जाता है। हिन्दू समाज के विरुद्ध इस प्रचंड प्रचार के प्रतिकार में हिंदुओं के पास न कोई योजना है और न ही कोई नीति है ।

संगठन का अभाव

हिन्दू समाज में संगठन का अभाव का मुख्य कारण एक धार्मिक ग्रन्थ वेद, एक भाषा हिंदी, एक संस्कृति वैदिक संस्कृति और एक अराध्य ईश्वर में विश्वास न होना है । जब तक हिन्दू समाज इन विषयों पर एक नहीं होगा तब तक एकता स्थापित नहीं हो सकती। यही संगठन के अभाव का मूल कारण है।
स्वामी दयानंद ने अपने अनुभव से भारत का भ्रमण कर हिंदुओं की धार्मिक अवनति की समस्या के मूल बीमारी की पहचान की और उस बीमारी की चिकित्सा भी बताई। मगर हिन्दू समाज उनकी बात को अपनाने के स्थान पर एक नासमझ बालक के समान उन्हीं का विरोध करने लग गया ।
इसका परिणाम अत्यंत विभित्स निकला। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि जिन हिंदुओं के पूर्वजों ने मुस्लिम आक्रांताओं को लड़ते हुए युद्ध में यमलोक पंहुचा दिया था उन्हीं वीर पूर्वजों की मुर्ख सनातन आज अपनी कायरता का प्रदर्शन उन्हीं मुसलमानों की कब्रों पर सर पटक कर करती हैं।
राम और कृष्ण की नामलेवा संतान आज उन्हें छोड़कर साईं बाबा और चाँद मुहम्मद की कब्रों पर शिरडी जाकर सर पटकती है ।
चमत्कार की कुछ काल्पनिक कहानियाँ और मीडिया मार्केटिंग के अतिरिक्त साईं बाबा में मुझे कुछ नहीं दीखता है । मगर हिन्दू है कि मूर्खों के समान भेड़ के पीछे भेड़ के रूप में उसके पीछे चले जाते हैं । जो विचारशील हिन्दू है, वो इस मूर्खता को देखकर नास्तिक हो जाते हैं । जो अन्धविश्वासी हिन्दू है वो भीड़ में शामिल होकर भेड़ बन जाते हैं। मगर हिंदुओं को संगठित करने और हिन्दू समाज के समक्ष विकराल हो रही समस्यों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं है।
यदि हिन्दू समाज संगठित होता तो हिन्दू युवाओं को ऐसी मूर्खता करने से रोकता। मगर संगठन के अभाव में समस्या ऐसे की ऐसी बनी रही।
हम अपने भ्रमित हो रहे हिन्दू युवाओं को बचाने का प्रयास करेगे। ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है ।
इस कार्य को करने के लिए स्वामी दयानंद कृत सत्यार्थ प्रकाश सबसे अनुपम ग्रन्थ है। इसके स्वाध्याय से आप युवाओं को तार्किक रूप से संतुष्ट कर धर्मशील बना सकते हैं ।
……… डॉ विवेक आर्य |

Comment: