हमारी सर्वमान्य चेतना क्या होनी चाहिए?

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परमात्मा के ऊर्जा रूप की तुलना भिन्न-भिन्न वस्तुओं जीवों से किस प्रकार की जाती है? (1)
हमारी सर्वमान्य चेतना क्या होनी चाहिए?

रयिर्नचित्रा सूरा न संदृगायुर्न प्राणो नित्यो न सूनुः।
तक्वा न भूर्णिर्वना सिषक्ति पया न धेनुः शुचिर्विभावा।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.66.1 (कुल मन्त्र 753)

(रयिः) सम्पदा (न) जैसे कि (चित्रा) अद्भुत, इच्छा करने योग्य (परमात्मा) (सूराः) सूर्य (न) जैसे कि (संदृक) सम्यक द्रष्टा, सम्यक प्रकाशित करने वाला (परमात्मा) (आयुः) आयु, जीवन, स्वास्थ्य (न) जैसे कि (प्राणः) ऊर्जा का श्वास (परमात्मा) (नित्यः) वास्तविक, स्थाई और एक समान (परमात्मा) (न) जैसे कि (सूनुः) उत्तम प्रेरक, वास्तविक पुत्र (तक्वा) अश्व, अथक (न) जैसे कि (भूर्णिः) भरण-पोषण करने वाले (परमात्मा) (वना) किरणें, जंगल, श्रद्धालु भक्त (सिषक्ति) संयुक्त, प्राप्त (पयः) दूध, पेय पदार्थ (न) जैसे कि (धेनुः) इच्छा पूरी करने वाली गाय (शुचिः) पूरी तरह शुद्ध, पवित्र (परमात्मा) (विभावा) विशेष प्रकाश ज्ञान का (परमात्मा)।

व्याख्या:-
परमात्मा के ऊर्जा रूप की तुलना भिन्न-भिन्न वस्तुओं जीवों से किस प्रकार की जाती है? (1)

यह सूक्त ‘अग्नि’ अर्थात् परमात्मा के ऊर्जा रूप के भिन्न-भिन्न लक्षणों और अभिव्यक्तियों की प्रशंसा करते हुए प्रकृति की भिन्न-भिन्न वस्तुओं और जीवों के साथ तुलना करके उस अग्नि का आह्वान करता है:-
1. (रयिः न चित्रा) वह अद्भुत, और सम्पदा की तरह इच्छा करने योग्य है।
2. (सूराः न संदृक) वह उचित सम्यक द्रष्टा है और सूर्य की भांति उचित रूप से प्रकाशित करता है।
3. (आयुः न प्राणः) वह आयु, जीवन और स्वास्थ्य की तरह ऊर्जा का श्वास है।
4. (नित्यः न सूनुः) वह वास्तविक, स्थाई और उत्तम प्रेरक तथा सच्चे पुत्र की तरह स्थिर है।
5. (तक्वा न भूर्णिः वना सिषक्ति) वह एक अथक अश्व की तरह सबका पालन करता है और वह वनों में (मन के) सभी श्रद्धालुओं को प्रेम की किरणों से संयुक्त करता है।
6. (पयः न धेनुः) वह इच्छा पूरी करने वाली गाय के दूध के समान है।
7. (शुचिः विभावा) वह पूरी तरह से शुद्ध है और स्वयं ज्ञान विशेष प्रकाश है तथा अन्यों को भी शुद्ध और प्रकाशित करता है।

जीवन में सार्थकता: –
हमारी सर्वमान्य चेतना क्या होनी चाहिए?

परमात्मा का ऊर्जा रूप अपनी सृष्टि में हमारे लिए किसी भी वस्तु या जीव से अघिक लाभकारी है । किसी भी वस्तु का प्रयोग करते हुए या प्रतिक्षण श्वास लेते हुए हमें उस सर्वोच्च ऊर्जा परमात्मा के साथ संगति का आह्वान करना चाहिए। यह सर्वमान्य चेतना निश्चित रूप से हमारे जीवन को शुद्ध कर देगी और हमें उसकी अनुभूति करवायेगी, बेशक, इस पथ पर लम्बी और लगातार साधना के बाद।

सूक्ति: – उपरोक्त सभी लक्षण।

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