वेदों में विज्ञान है तो कोई अविष्कार करके दिखाओ। :-
वेद कोई आविष्कार करने की पुस्तक नही है जिसे पढ़ कर कोई भी मिनटों में आविष्कार कर देगा।
आविष्कार तो मात्र एक विज्ञान का प्रयोग है।और विज्ञान , वेद का मात्र एक छोटा सा अंश है।
वेद में सम्पूर्ण ब्रह्मांड का नित्य ज्ञान विज्ञान निहित है।विज्ञान की सभी शाखाओं का मूल वेद में ही है।वेद ईश्वर का ज्ञान है जो सनातन है नित्य है।
वेदों पर अनुसंधान करने वाले और वेद ऋचाओं को समझने वाले उसका अर्थ करने वाले केवल ऋषि ही हो सकते है।
महाभारत काल तक वो सारी विज्ञान की टेक्नोलॉजी उपलब्ध थी और कई ऐसे टेक्नोलॉजी उपलब्ध थे जिसे हमारे ऋषियों ने वेदों को पढ़कर,समझकर,अनुसंधान कर के आविष्कार किया था।
वर्तमान समय मे ऐसा कोई ऋषि नही जो ऐसा कर सके।महर्षि दयानंद वेदों का भाष्य किये उनका उद्देश्य वेद को बचाना था क्योंकि उस काल तक वेदों का लोप हो चुका था।महर्षि दयानंद उसी उद्देश्य से वेदों के भाष्य किये।वेदों पर अनुसंधान कोई एक ऋषि नही कर सकता।यदि कोई एक ऋषि करे तो कुछ मन्त्रों पर ही अनुसंधान कर पायेगा।क्योंकि आविष्कार के लिए उसपर अनुसंधान करना होता है।आविष्कार ,अनुसंधान से ही होता है।वेद मंत्रों के तीन तरह के अर्थ होते हैं।जिसमें से एक तरह का अर्थ विज्ञान का होता है जिसमे गूढ़ विज्ञान का रहस्य छुपा होता है।उनका अर्थ तो महर्षि दयानंद ने किया है किन्तु वो बहुत ही संक्षिप्त व सांकेतिक है क्योंकि महर्षि दयानंद के पास समय का बहुत अभाव था।उनका कोई एक कार्य नही था वेदों का पुन: संस्थापन धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास उन्मूलन,समाज सुधार,देश को स्वतंत्र करवाना आदि क्या क्या करते वो।उनका उद्देश्य वेद को बचाना था वेद को पुनर्स्थापित करना था इसलिए उन्होंने समय के अभाव के कारण वेद के सांकेतिक अर्थ किये और समय से पूर्व ही उन्हें दुष्टो ने मार डाला विष देकर।
महर्षि ने जितने भी मन्त्रों के भाष्य किये उनमें से उनका आध्यात्मिक और आधिभौतिक भाष्य तो पूर्ण है किंतु आधिदैविक भाष्य अर्थात वैज्ञानिक भाष्य सांकेतिक ही है क्योंकि कोई भी ऋषि वैज्ञानिक भाष्य को अति गूढ़ और आलंकारिक भाषा में करता है ताकि उस विज्ञान का गूढ़ रहस्य दुष्टों के हाथ न लग जाये इसलिए महर्षि दयानंद ने भी ऐसा ही किया उन्होंने केवल सांकेतिक में ही उन विज्ञान के रहस्यों को लिखा ताकि उसे कोई भी इतना सरल से समझ न सके और उसका गलत प्रयोग न कर पाए।
आविष्कार करने में समय लगता है।अभी तो हमारे पास केवल theories है आने वाले समय मे हम प्राचीन विज्ञान पर आधारित उन टेक्नोलॉजी को भी विकसित कर पाएंगे और वैदिक विज्ञान के आधार पर वो आविष्कार कर पाएंगे ईश्वर की कृपा से जिन टेक्नोलॉजी की चर्चा हम प्राचीन काल जैसे महाभारत,रामायण आदि में सुने और पढ़े हैं जो लुप्त हो चुकी है।ये कोई सरल कार्य नही है।इसके लिए सरकारी और समाजिक सत्तर पर इच्छा शक्ति हो और विद्यालयों में वैदिक विज्ञान पढ़ाया जाना चाहिए।
यदि हमारे पूर्वजों को हवाई जहाज बनाना नहीं आता, तो हमारे पास “विमान” शब्द भी नहीं होता।
यदि हमारे पूर्वजों को Electricity की जानकारी नहीं थी, तो हमारे पास “विद्युत” शब्द भी नहीं होता।
यदि “Telephone” जैसी तकनीक प्राचीन भारत में नहीं थी तो, “दूरसंचार” शब्द हमारे पास क्यों है।
Surgery का ज्ञान नहीं था तो, “शल्य चिकितसा” शब्द कहाँ ये आया?
विमान, विद्युत, दूरसंचार, ये शब्द स्पष्ट प्रमाण है, कि ये तकनीक भी हमारे पास थी।
Atom और electron की जानकारी नहीं थी तो अणु और परमाणू शब्द कहाँ से आये?
फिसिक्स के सारे शब्द आपको हिन्दी में मिल जायेंगे।
बिना परिभाषा के कोई शब्द अस्तित्व में रह नहीं सकता।
सौरमण्डल में नौ ग्रह है व सभी सूर्य की परिक्रमा लगा रहे है, व बह्ममाण्ड अनन्त है, ये हमारे पूर्वजों को बहुत पहले से पता था। जो आज के विज्ञान को भी नहीं पता।
अंग्रेज़ जब 17-18 सदी में भारत आये तभी उन्होंने विज्ञान सीखा, 17 सदी के पहले का आपको कोई साइंटिस्ट नहीं मिलेगा।
17 -18 सदी के पहले कोई अविश्कार यूरोप में नहीं हुआ, भारत आकर सीखकर, और चुराकर अंग्रेज़ों ने अविष्कार करे।
भारत से केवल पैसे की ही लूट नहीं हुयी, ज्ञान की भी लूट हुयी है।
वेद ही विज्ञान है और हमारे ऋषि ही वैज्ञानिक हैं…!
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