बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के निहितार्थ और भारत

बांग्लादेश में इस समय हिंदू समुदाय के लोग जीवन मरण के दौर से गुजर रहे हैं। उनके लिए चारों ओर असुरक्षा ही असुरक्षा दिखाई देती है। सरकारी स्तर पर भी उनके लिए कोई ऐसा प्रबंध नहीं किया जा रहा है जिससे लगे कि सरकार अपने कर्तव्य और दायित्वों के प्रति संवेदनशील है। सरकार में जिस प्रकार मुस्लिम कट्टरपंथी अपना वर्चस्व बनाने में सफल हुए हैं, उसके चलते हिंदुओं के ठिकानों को निरंतर निशाने पर लिया जा रहा है। जिससे अनेक प्रकार के अमानवीय अत्याचार हिंदुओं को झेलने पड़ रहे हैं। अनेक स्थानों पर ऐसी हृदयविदारक घटनाएं हुई हैं,जिन्हें लेखनी लिखने में भी कांपती है। 28 अक्टूबर की घटना है जब फरीदपुर में एक हिंदू छात्र हृदय पाल को कुछ जवानों और कट्टर कट्टरपंथी लोगों की उपस्थिति में भीड़ के हाथों मार दिया गया। इस प्रकार की घटनाओं से स्पष्ट होता है कि यदि किसी भी मुस्लिम को किसी हिंदू से किसी भी प्रकार का कोई बैर विरोध है तो वह उसे सरेआम इस्लाम की दुहाई देकर स्वयं भी मार सकता है और भीड़ के माध्यम से भी मरवा सकता है। वहां की सेना और पुलिस ऐसी घटना पर पूर्णतया मौन साध जाती है। यह तभी संभव है जब शासन प्रशासन में बैठे लोगों का पूर्ण संरक्षण इस प्रकार के अमानवीय कृत्यों को अंजाम देने वाले लोगों को प्राप्त हो रहा हो। अभी सितंबर में हम इसी प्रकार की घटना एक 16 वर्ष के हिंदू छात्र के साथ घटित हुई देख चुके हैं, जिसे ईश निंदा के झूठे आरोप में मॉब लिंचिंग के माध्यम से मार दिया गया। इस छात्र का नाम उत्सव मंडल था। दोनों ही घटनाओं में अपराध करने वालों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई है। इस प्रकार के अनेक हृदयविदारक दृश्य हिंदुओं के साथ बांग्लादेश में देखने को मिल सकते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि बांग्लादेश की तो बात छोड़िए संयुक्त राष्ट्र की ओर से भी इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकारवादी संगठन भी बांग्लादेश के हिंदुओं के प्रति पूर्णतया उदासीनता दिखा रहे हैं। और तो और स्वयं भारत के मानवाधिकारवादी संगठन और कथित धर्मनिरपेक्ष नेता भी बांग्लादेश को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं।
बांग्लादेश के चांदपुर जिले में भी एक ऐसी ही घटना घटित हो चुकी है। जहां पर गोविंद नाम के एक हिंदू नागरिक को साजिश के अंतर्गत फंसा कर उसके घर पर भीड़ ने हमला कर दिया। गोविंद पर पैगंबर के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था। इसके अतिरिक्त बांग्लादेश में हिंदुओं को सरकारी नौकरियों से निकालकर उनकी आर्थिक घेरेबंदी भी की जा रही है। साथ ही हिंदुओं के व्यापार या छोटे-मोटे व्यवसाय को भी चौपट करने की योजनाओं पर काम किया जा रहा है। हिंदू महिलाओं के साथ जो कुछ हो रहा है, वह भी बहुत ही अधिक पाशविक को प्रकट करता है।
21वीं शताब्दी के कथित सभ्य समाज में मानव समाज की संवेदनहीनता बता रही है कि न तो यह 21वीं सदी है और न ही यह सभ्य समाज है। यह 14वीं शताब्दी का वही असभ्य बर्बर और क्रूर समाज है जो मनुष्य होकर भी मनुष्यता की बात नहीं करता था।
जो लोग भारतवर्ष में रहकर यहां भी बांग्लादेश की घटनाओं को दोहराने की धमकियां देते हैं, उनके इरादों को समझने की आवश्यकता है । उनकी इस प्रकार की धमकियों के पीछे जिहाद के नाम पर सभी मुसलमानों को एक करने की भावना काम कर रही है। विशेष रूप से उनकी सोच है कि भारतवर्ष में जब कभी ऐसी घटनाओं को करने का उन्हें अवसर मिलेगा तो पाकिस्तान और बांग्लादेश का मुसलमान भी उनके साथ होगा। इनकी सोच है कि जब पाकिस्तान, बांग्लादेश और हिंदुस्तान का मुसलमान मिलकर भारत के हिंदू से अधिक हो जाएगा तो उन्हें अपने सपनों को साकार करने में बड़ी सावधानी हो जाएगी। पाकिस्तान के एटम बम को इस्लामी बम का नाम ऐसे ही नहीं दिया गया है, उसके पीछे भी यही सोच काम करती रही है कि भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले सभी मुसलमान इस बम को अपना समझें । जब आवश्यकता होगी, तब इसका सुविधानुसार प्रयोग कर लिया जाएगा। पाकिस्तान के शासकों ने भारत के मुस्लिम समाज को संकट में ही है समझा दिया था कि पाकिस्तान का एटम बम उनका अपना ही बम है। देश के धर्मनिरपेक्ष नेताओं की इस ओर कभी दृष्टि न तो गई है और न जाएगी और यदि गई भी है तो वह इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
बांग्लादेश की घटनाएं कोई नई नहीं हैं। जब से इस्लाम का भारत से परिचय हुआ है तब से लेकर आज तक इस प्रकार की अनगिनत घटनाएं यहां घटित होती रही हैं । न जाने कितने वीर हकीकत राय इस्लाम की इसी सोच के शिकार होकर धरती से चले गए हैं ? मुस्लिम समाज की सोच न तो बदलनी थी और ने बदली है। इसके उपरांत भी जो लोग भारत के हिंदू समाज को उदारता या धर्मनिरपेक्षता की भांग पिलाकर सुलाए रखने में विश्वास रखते हैं, वे अपनी प्रवृत्ति से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में हिंदू समाज को अपने आप जाग़ना होगा और जो लोग उसे मजहब के नाम पर मिटाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, उसके उपाय खोजने होंगे। केंद्र की मोदी सरकार को भी बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रही घटनाओं पर संज्ञान लेना होगा। अब भारतवर्ष का हिंदू यही चाहता है कि मोदी जी कठोर निर्णय लें। जब बात अस्तित्व के मिटाने की हो तो अस्तित्व को मिटाने में लगे हाथों के विरुद्ध कुछ न कुछ करना ही पड़ता है। यदि मोदी सरकार अब भी सक्रिय नहीं हुई तो हिंदू समाज की कुलबुलाहट उसके लिए अभिशाप बन सकती है ?

डॉ राकेश कुमार आर्य

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