मीन सरोवर स्वामी नारायण छपिया

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आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

तरगांव निवास करते हुए आसपास के दर्जनों स्थलों को पावन करते हुए घनश्याम प्रभु ने सम्वत 1845 में मीन सरोवर पर ये लीला रची थी। मीन सरोवर वह स्थान है जहाँ स्वामी नारायण ने मछुआरों को आजीविका के लिए मछलियाँ न मारने की शिक्षा दी थी। यह छोटी झील गर्मियों के दौरान सूख जाती है।

 एक बार, घनश्याम अपने मित्रों के साथ मीन झील में तैर रहे थे, उन्होंने एक मछुआरे को अपनी पकड़ी हुई मछलियाँ टोकरी में खाली करते देखा। अहिंसा के प्रबल समर्थक, घनश्याम को मछलियों को अपने जीवन के लिए छटपटाते देखकर बहुत दुख हुआ।

   उन्होंने दयापूर्वक मृत मछलियों की ओर देखा, और वे तुरंत जीवित हो गईं।  

इसलिए तालाब को मीन सरोवर के नाम से जाना जाता है।

 उन्होने मछूवे से कहा,”भाई ये सृष्टि भगवान के द्वारा निर्मित है। हम किसी प्राणी को ना तो मार सकते हैं और ना ही उन्हे किसी तरह का कष्ट ही पहुंचा सकते हैं। हर प्राणी को अपने कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। पाप कर्म का फल तुरंत भले ही ना मिले परन्तु उसे नर्क का वास जरूर मिलता है।”

 मछुआरा क्रोधित हो गया और अपना जाल लेकर घनश्याम पर झपटा। तब मीन सरोवर में स्वामीनारायण द्वारा मछुवे को दर्शन देने की लीला दिखाई गई। अपनी उँगलियों के इशारे से, घनश्याम ने मछुआरे को समाधि में भेज दिया था। 

 समाधि में, मृत्यु के देवता यम मछुआरे के सामने प्रकट हुए और उसे दिखाया कि निर्दोष लोगों की जान लेने के उसके पाप पूर्ण कार्य का फल उसे नरक में कष्ट भोगना पड़ेगा। वहां तरह तरह के दंड प्राणियों को दिए जा रहे थे। 

उसे भी दंड भुगतना पड़ा था। उसे जब दण्ड दिया जाने लगा तो उसकी काया उछलने लगी थी। उसने घनश्याम प्रभु को कातर ध्वनि में पुकारा। 

यह देखकर कि मछुआरे को मछली मारने का पूरा पश्चाताप हो रहा है।मछुआरे ने घनश्याम से क्षमा माँगी। घनश्याम ने दया करके मछुआरे को उसकी समाधि से बाहर निकाला। 

वह नरक यातना का वर्णन करके प्रभु को कभी पाप ना करने का बचन दिया। 

मछुआरे को घनश्याम की महानता का एहसास हुआ, उसने उनके चरणों में सिर झुकाया और फिर कभी मछली न मारने की कसम खाई।

 प्रभु ने अपने चमत्कारों से उन जीवो को जीवित कर दिया और मछुआरे को निर्देश दिया कि वह जीविका के लिए मछलियों को न मारे।     

  स्वामीनारायण ने समाज को भक्ति के माध्यम से मोक्ष और परम ज्ञान की प्राप्ति के बारे में मछुवे समाज को सिखाया। उन्होंने समाज में दलितों के उत्थान के लिए काम किया। घनश्याम ने छोटी उम्र से ही ऐसे कई हिंदू आदर्श और मूल्य स्थापित किए।

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

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