हाल ही में आईयूसीएन यानी कि अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा ग्लोबल ट्री असेसमेंट रिपोर्ट जारी की गई है जो यह बताती है कि तीन में से एक वृक्ष प्रजाति विलुप्त होने के खतरे में है। उल्लेखनीय है कि आईयूसीएन रेड लिस्ट जानवरों, कवक और पौधों की प्रजातियों के बीच विलुप्त होने के जोखिम का आकलन करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण वैश्विक संसाधन है, जो समय-समय पर रिपोर्ट जारी करता रहता है। इतना ही नहीं यह यह वैश्विक जैवविविधता स्वास्थ्य के एक महत्त्वपूर्ण संकेतक के रूप में कार्य करता है, यह प्रजातियों की विशेषताओं, खतरों और संरक्षण उपायों में व्यापक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है तथा सूचित संरक्षण निर्णयों एवं नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हाल फिलहाल जारी की गई यह रिपोर्ट बता रही है कि पृथ्वी पर जीवन को लगातार खतरा उत्पन्न हो रहा है। बताता चलूं कि इसमें स्टडी के लिए 47,000 से अधिक प्रजातियों का मूल्यांकन किया गया, जिनमें से अनुमानतः विश्व में 58,000 प्रजातियां विद्यमान हैं। वास्तव में आईयूसीएन द्वारा जारी यह रिपोर्ट हमारे समक्ष इसलिए चिंता पैदा करती है क्यों कि इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि 16,000 से अधिक वृक्ष प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। वृक्ष न केवल मानवजीवन बल्कि पशु-पक्षियों के जीवन का भी मुख्य आधार हैं, क्यों कि पेड़ों से हमें आक्सीजन, वर्षा व अनेक वस्तुएं प्राप्त होती न हैं। वृक्ष न केवल पर्यावरण संतुलन को ही बनाए रखते हैं अपितु जैव-विविधता को बनाए रखने में भी वृक्षों का योगदान बहुत अहम् है। यहां तक कि हमारी भारतीय संस्कृति में वृक्षों की पूजा की जाती रही है और मत्स्य पुराण में तो यहां तक लिखा गया है कि एक वृक्ष दस पुत्रों के समान है। कोलंबिया के कैली शहर में आयोजित जैव- विविधता पर संयुक्त राष्ट्र के काप-16 शिखर सम्मेलन के साथ जारी की गई यह रिपोर्ट वाकई संपूर्ण विश्व को चिंता में डाल रही है, भारत भी इसमें से एक है। इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों की संख्या सभी संकटग्रस्त पक्षियों, स्तनधारियों, सरीसृपों और उभयचरों की संयुक्त संख्या से भी अधिक है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व के 192 देशों में वृक्ष प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। यह भी बताया गया है कि द्वीपों पर यह अनुपात सबसे अधिक है, जहां तेजी से शहरी विकास, कृषि का विस्तार और अन्य स्थानों से लाई गई प्रजातियां, कीट और बीमारियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। संक्षेप में यह बात कही जा सकती है कि आज लगातार बढ़ते शहरीकरण, औधोगिकीकरण, बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है। आज खेती और मानवीय विस्तार के कारण पेड़ों को लगातार काटा जा रहा है । जंगली आग(दावानल) भी पेड़ों के नष्ट होने का एक कारण बन रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं अतिवृष्टि हो रही है,जिसका प्रभाव पेड़ों पर पड़ रहा है। मानव भोजन, लकड़ी, ईंधन, दवाओं, विभिन्न उत्पादों तथा आक्सीजन के लिए पेड़ों पर ही निर्भर है। वृक्ष न केवल जीवों को आक्सीजन प्रदान करते हैं अपितु वृक्ष वायुमंडल से गर्मी को रोकने वाले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को भी अवशोषित करते हैं, और मानव तथा जीवों की रक्षा करते हैं। पेड़ हमें छांव भी प्रदान करते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि पेड़ पारिस्थितिकी तंत्र/इको सिस्टम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के माध्यम से पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक हैं, और करोड़ों लोग अपने जीवन और आजीविका के लिए उन पर निर्भर हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि दुनिया में लगभग तीन ट्रिलियन पेड़ हैं। विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि हर साल 15 बिलियन से ज़्यादा पेड़ काटे जाते हैं और मानव सभ्यता की शुरुआत के बाद से दुनिया भर में पेड़ों की संख्या में लगभग आधी कमी आई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आईयूसीएन की रेड लिस्ट में जिन 5,000 से अधिक प्रजातियों को रेड लिस्ट में डाला गया है, उनका उपयोग लकड़ी के लिए किया जाता है। इतना ही नहीं 2,000 से अधिक प्रजातियों का उपयोग दवाओं, खाने और ईंधन के लिए किया जाता है। जानकारी देना चाहूंगा कि खतरे में पड़ी प्रजातियों में हॉर्स चेस्टनट और जिन्कगो शामिल हैं, जिनका उपयोग चिकित्सा में किया जाता है। बिग लीफ महोगनी का इस्तेमाल फर्नीचर बनाने में होता है। इसके अलावा कई ऐश, मैगनोलिया और यूकेलिप्टस की प्रजातियां भी खतरे में हैं। इतना ही नहीं दक्षिण अमेरिका में, जहां दुनिया में सबसे अधिक पेड़ों की विविधता है, 13,668 आकलित प्रजातियों में से 3,356 विलुप्त होने के खतरे में हैं। अमेजन वनों के घर इस महाद्वीप की कई प्रजातियां अब तक खोजी भी नहीं गई हैं। हाल फिलहाल पाठकों को यह भी जानकारी देता चलूं कि आईयूसीएन ने वर्ष 2023 में भी रेड लिस्ट अपडेट की थी, जिसमें यह बताया गया था कि जलवायु परिवर्तन से विविध प्रजातियों को खतरा है जिनमें विशेषकर हरे कछुए,मीठे पानी की मछलियां, महोगनी के पेड़ लगातार खतरे का सामना कर रहे हैं।बहरहाल, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा ग्लोबल ट्री असेसमेंट रिपोर्ट को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए और हमें यह चाहिए कि हम प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण की दिशा में समय रहते आवश्यक व जरूरी कदम उठाए और एहतियात बरतें। पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए आज अधिकाधिक पेड़ों को लगाए जाने की जरूरत है। आज शहरीकरण,औधौगिकीकरण, पर्यावरण की लगातार अनदेखी से वातावरण में गर्मी बढ़ रही है और तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। लोग अपने स्वार्थ के लिए लगातार पेड़ों को काट रहे हैं और काटने की तुलना में पौधों का रोपण कम किया जा रहा है। मिट्टी और जल संरक्षण के लिए भी आज पेड़ लगाए जाने बहुत ही जरूरी हैं। पेड़ न होने पर बारिश भी कम होती है और पृथ्वी का जल चक्र गड़बड़ा जाता है। वास्तव में, वृक्ष इस धरा के असली आभूषण हैं, लेकिन आधुनिकता, शहरीकरण , विकास की चकाचौंध भरी जिंदगी में मनुष्य आज पर्यावरण का संरक्षण करना लगातार भूलता चला जा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि आज पेड़ लगाए नहीं जाते हैं। आज भी वन महोत्सव या विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर लाखों की संख्या में पेड़ पौधे लगाये जाते हैं पर उनका संरक्षण करना भूल जाते हैं। वर्तमान में तो प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर ‘एक पेड़ मां के नाम ‘अभियान भी देश में चलाया जा रहा है, जो सराहनीय है, लेकिन यहां यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि अभियान के नाम पर केवल खानापूरी से काम नहीं चलने वाला है। आज लोग पेड़ लगाने के नाम पर फोटो खिंचवाते हैं और विडियो बनाते हैं लेकिन आमजन को यह ध्यान रखना चाहिए कि पेड़ को किसी छोटे बच्चे की भांति पालना-पोषना पड़ता है। आज पेड़ों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक विधियों को काम में लिए जाने की जरूरत है, लुप्त हो रही पेड़ों की प्रजातियों के बीज विकसित किए जाने चाहिए। वहीं विकास और पर्यावरण के बीच भी संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता महत्ती है। वृक्षों के बचाव व संरक्षण के लिए कृतसंकल्पित होकर जागरूकता अभियान भी चलाए जाने चाहिए। विभिन्न एनजीओ के साथ सरकार, प्रशासन व आम आदमी को भी इसके लिए आगे आना होगा अन्यथा आने वाले दिनों में वृक्षों की बहुत सी प्रजातियों को केवल हम किताबों में ही देख पायेंगे। किताबों में भी तभी जब वृक्ष बचेंगे तब।
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