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धर्म-अध्यात्म

हमारे जीवन में परमात्मा के क्या दृष्टिकोण हैं?

हमारे जीवन में परमात्मा के क्या दृष्टिकोण हैं?
अपने जीवन में परमात्मा के प्रभाव को किस प्रकार महसूस करें, विश्वास करें और उसकी अनुभूति प्राप्त करें?

पुष्टिर्न रण्वा क्षितिर्न पृथ्वी गिरिर्न भुज्म क्षोदो न शंभु।
अत्यो नाज्मन्त्सर्गप्रतक्तः सिन्धुर्न क्षोदः क ईं वराते।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.65.3 (कुल मन्त्र 750)

(पुष्टिः न) पोषण की तरह, स्वास्थ्य (रण्वा) प्रसन्न, प्रसन्नता देने वाला (क्षितिः न) व्यापक आवास देने वाले के समान (पृथ्वी) भूमि (गिरिः न) पर्वतों की तरह (भुज्म) उदार, पोषण के लिए सबको पदार्थ देने वाला (क्षोदः न) जल की तरह (शंभु) पवित्र करने वाला, शांति देने वाला (अत्यः न) अश्वों की तरह (अज्मन्) युद्धों में (सर्ग प्रतक्तः) स्वाभाविक रूप से गति में तेज (सिन्धुः न) समुद्र की तरह (क्षोदः) गहरा और तीव्र चलने वाला (कः) कौन (ईम्) इस (परमात्मा) (वराते) उसे रोक सकता है, उसे प्राप्त करता है।

व्याख्या:-
हमारे जीवन में परमात्मा के क्या दृष्टिकोण हैं?

इस मन्त्र के सारे विवरण परमात्मा के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों को व्यक्त करते हैं जिनके अन्त में एक प्रश्न है:-
1. पुष्टिः न रण्वा – वह पोषण और स्वास्थ्य की तरह प्रसन्नता देता है।
2. क्षितिः न पृथ्वी – वह भूमि की तरह व्यापक आवास देने वाला है।
3. गिरिः न भुज्म – वह पर्वतों की तरह उदार एवं पोषण के लिए सभी पदार्थ देने वाला है।
4. क्षोदः न शंभु – वह जल की तरह पवित्र करने वाला एवं शांति देने वाला है।
5. अत्यः न अज्मन् सर्ग प्रतक्तः – वह अश्वों की तरह युद्धों में स्वाभाविक रूप से गति में तीव्रता देता है।
6. सिन्धुः न क्षोदः – वह समुद्र की तरह गहरा और तीव्र चलने वाला है।
कौन अपने जीवन में उसे प्रभावशाली होने से रोकना चाहता है?
कौन उसे प्राप्त करना चाहता है और उसकी अनुभूति चाहता है?

जीवन में सार्थकता: –
अपने जीवन में परमात्मा के प्रभाव को किस प्रकार महसूस करें, विश्वास करें और उसकी अनुभूति प्राप्त करें?

वास्तव में हमारे जीवन में उसके प्रभाव को रोकने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं हो सकता। कोई भी न तो इतना साहस कर सकता है और न इस प्रकार सोच सकता है।
कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता जो परमात्मा को प्राप्त नहीं करना चाहता और उसकी अनुभूति नहीं चाहता। इससे इन्कार का अर्थ है अपने जीवन से इन्कार।
वह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सदैव विद्यमान है और सदा के लिए प्रभावशाली है। यह प्रश्न हमें सर्वत्र उसकी विद्यमानता और प्रभाव को महसूस करने, विश्वास करने और उसकी अनुभूति प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।

सूक्ति –
(कः ईम् वराते) – कौन अपने जीवन में उसे प्रभावशाली होने से रोकना चाहता है?
कौन उसे प्राप्त करना चाहता है और उसकी अनुभूति चाहता है?


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