लेखक आर्य सागर तिलपता ग्रेटर नोएडा 🖋️
भारतीय समाज पर्व प्रधान है । प्रत्येक पर्व के केंद्र में महिलाएं और पुरुष होता है विशुद्ध ऐसा कोई भी पर्व नहीं है जो महिला प्रधान हो या पुरुष प्रधान हो। हरितालिका तीज करवा चौथ भाई दूज रक्षाबंधन जैसे पर्व में भी पुरुष चरित्र का प्रवेश हो जाता है। कहीं भाई के रूप में तो कहीं पति के रूप में तो कहीं पुरुष संतान के रूप में । बहन पत्नी माता के रूप में महिलाओं के द्वारा अनुष्ठेय इन पर्वों व्रत आदि को करने का उद्देश्य के मूल में पुरुष पात्रों के दीर्घ जीवन की कामना ही होती है ।
आपको आश्चर्य होगा मूल वैदिक संस्कृति पर्वों के नियामक ग्रंथ गृह्य आदि सूत्रों में इन पर्वों का इस स्वरूप में कोई उल्लेख नहीं मिलता लेकिन प्राचीन सूत्र साहित्य व मनुस्मृति आदि में पत्नी के पति-पति के पत्नी माता के पुत्र, पुत्र के माता ,भाई -बहन पिता पुत्र या पुत्री के प्रति क्या कर्तव्य है क्या परस्पर श्रेष्ठ आचार् एक दूसरे के प्रति होना चाहिए इन सभी महान शिक्षाओं का व्यापकता से नित्य प्रति दैनिक जीवन के लिए व्यापक उल्लेख मिलता है। यहां हर दिन कर्तव्य रूपी पर्वों की भरमार है।
आज भाई दूज का पर्व है इस पर्व की ऐतिहासिकता पर न जाकर में कड़वे यथार्थ की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा जो हमारे समाज का एक काला पक्ष है ।समय निकालकर प्रातः या शाम को मेरा तीन से चार किलोमीटर भ्रमण का कार्यक्रम रहता है पैदल पैदल। एकांत वीराने में मैं मुख्य सड़क मार्ग से सर्विस मार्ग पर चल रहा था ग्रेटर नोएडा से ग्रेटर नोएडा वेस्ट की ओर। मेरे समवयस्क एक राहगीर पुरुष बाइक पर अपनी पत्नी को गंदी-गंदी गालियां दे रहा था। उसकी पत्नी अपने मायके में भैया दूज का पर्व मनाने गई थी पति उसके साथ नहीं गया था लेकिन पति उसे शाम को सड़क मार्ग पर बाइक से रिसीव करने आया था । पत्नी की लोकेशन वह ट्रेस नहीं कर पा रहा था ऐसे में वह आपा खो बैठा जितनी गाली वह अपनी पत्नी को दे सकता था उतनी गली उसने अपनी पत्नी को दी। में महिला प्रधान या पुरुष प्रधान समाज की चर्चा नहीं करूंगा लेकिन पुरुष गाली प्रधान समाज बहुत अवसाद कारक होता है महिलाओं के लिए। भारतीय महिलाएं बहुत सहनशील होती है पुरुष की गालियां सुनकर भी वह प्रतिरोध तक नहीं करती यद्यपि यह महानता नहीं दोष है।
हैरत का विषय संविधान की कोख से उपजे महिलाओं को लेकर जितने भी कानून बने हैं वह महिलाओं को गौरव पुर्ण स्थान आज भी नहीं दिला सके हैं महिलाएं जहां शारीरिक हिंसा का शिकार है तो पुरुषों की वाचनिक हिंसा अर्थात गालीबाज पतियों की पत्नियों पर कारित क्रूर मानसिक यातना की तो कोई सीमा ही नहीं है।
महर्षि मनु ने ऐसे ही गालीबाज पतियों को चेताते हुए यह श्लोक मनुस्मृति में रचे थे।
पितृभिभ्रर्रातृभिश्चेता: पतिभिदेर्रवरैस्तथा।
पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभि:।।
जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिता:।
तानि कृत्याहनीव विनश्यन्ति समान्यत:।।
अर्थात महर्षि मनु कहते हैं- पिता भाई पति और देवर को योग्य है कि अपनी कन्या बहन स्त्री भाभी आदि स्त्रियों की सदा पूजा अर्थात यथायोग्य मधुर भाषण भोजन वस्त्र आभूषण आदि से उन्हें प्रसन्न रखें उनका सत्कार करे जिनको कल्याण की इच्छा हो वह स्त्रियों को क्लेश कभी ना देवे।
इतना ही नहीं मनु महाराज कहते हैं- जिन कुल और घरों में सत्कार को न प्राप्त होकर स्त्री जिन पुरुषों गृहवासीयो को श्राप देती है वह कुल परिवार जैसे जहर देकर बहुतों का नाश कर दिया जाता है ,वैसे ही वह कुल परिवार नष्ट भ्रष्ट हो जाते हैं।
मनुस्मृति के एक श्लोक में तो महर्षि मनु ने कहा है -जिस परिवार में स्त्रीयो के साथ मधुर भाषण नहीं होता उस परिवार में होने वाली सभी धार्मिक क्रियाएं निष्फल हो जाती है।
मनुस्मृति में ऐसे एक दो नहीं दर्जनों श्लोक हैं जो मां बहन बेटी के रूप में महिला के गौरव उसके आत्म सम्मान को सर्वोच्चता से स्थापित करते हैं। लेकिन आधुनिक भारत गणराज्य के संविधान के आधार पर निर्मित विधियों में केवल महिलाओं के उत्पीड़न की व्याख्या उत्पीड़न के विरुद्ध लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के पश्चात मिलने वाले चंद पैसों के मुआवजे की व्यवस्था है। यह लड़ाई भी बहुत कम महिलाएं लड़ पाती है।
भगवान गालीबाज पतियों को सद्बुद्धि दे।
लेखक आर्य सागर खारी