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लेखक आर्य सागर तिलपता ग्रेटर नोएडा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार घरेलू वायु प्रदूषण के कारण अकेले 2020 में ही 32 लाख से अधिक मौतें हुई है ।जिनमे कम आयु के 2 लाख 37 हजार बच्चे भी शामिल थे। मौतों का कारण ब्रेन स्ट्रोक, हृदयाघात, दमा ,निमोनिया, कैंसर जैसी बीमारियां रही । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण को परिवेशी व घरेलू दो श्रेणियां में विभाजित कर रखा है। आप और हम 24 घंटे में से अधिकतर समय घर पर ही बताते हैं विशेष कर बुजुर्ग ,घरेलू महिला तथा छोटे बच्चे। बाहरी वातावरण में जितने जैविक, भौतिक व रासायनिक प्रदूषक तत्व मिलते हैं उतने ही प्रदूषक तत्व हमारे घर में भी उत्पन्न होते हैं चाहे पशुओं का बाड़ा हो चाहे हमारा स्नानागार हो चाहे रसोई इन सभी से प्रदूषण उत्पन्न होता है। हमारे घर का फर्नीचर, दीवारों का पेंट ,धूल, एयर कण्डीसनर, फ्रीज , बिस्तर पर आंखों से दिखाई ना देने वाले सूक्ष्म कीट ,दीवारों की फंगस , पालतू कुत्ते जानवरों के बाल , सजावटी सामान ,रसोई में जलने वाला एलपीजी स्टॉप से लेकर मॉस्किटो केमिकल ऑल आउट आदि असंख्य ऐसी वस्तु होती है जिनसे आंखों से ना दिखाई देने वाले 3 माइक्रोन से भी कम आकार के प्रदूषक तत्व उत्सर्जित होते रहते हैं जो सीधे हमारे रक्त में घुलते रहते हैं जो बड़ी जानलेवा बीमारी की भूमिका तैयार करते हैं धीरे-धीरे।
प्राचीन काल के कच्चे घरों की अपेक्षा आज के आधुनिक पक्के भवन नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, रेडॉन जैसी प्रदूषक स्वास्थ्यनाशक गैसें उत्पन्न कर रहे हैं।
महर्षि दयानंद क्रांतिदर्शी ऋषि थे महर्षि दयानन्द अपने समकालीन पुरुषों में प्रथम ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने 19वीं शताब्दी के सातवें दशक में ही वायु प्रदूषण की भयानकता का अनुमान लगा लिया था। दूषित जल व वायु से होने वाले रोगों पर सबसे प्रथम प्रकाश डालने वाले व उसका यज्ञ परक समाधान प्रस्तुत करने वाले प्रथम बुद्धिजीवी थे वह। यूरोप और अमेरिका में उस समय वायु प्रदूषण जैसे विषय पर किसी भी विचारक ने कोई ध्यान नहीं दिया था, ना ही इस समस्या पर प्रकाश डाला था।
महर्षि जी के ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में वायु प्रदूषण व उसके निवारण को लेकर उनका आग्रह अनेक स्थलों पर हमें दिखाई देता है।
सत्यार्थ प्रकाश के तीसरे समुल्लास में प्रश्न कर्ता, प्रश्न करता है।
होम से क्या उपकार होता है?
उत्तर सब लोग जानते हैं की दुर्गंधयुक्त वायु और जल से रोग रोग से प्राणियों को दुख और सुगंधित वायु तथा जल से आरोग्य और रोग के नष्ट होने से सुख प्राप्त होता है।
प्रश्न जब ऐसा ही है तो केसर, कस्तूरी, सुगंधित पुष्प और अतर आदि के घर में रखने से सुगंधित वायु होकर सुखकारक होगा।
उत्तर उस सुगंध का वह सामर्थ्य नहीं की ग्रहस्थ वायु को बाहर निकाल कर शुद्ध वायु को प्रवेश करा सके क्योंकि उस में भेदक शक्ति नहीं है और अग्नि ही का सामर्थ्य है कि उस वायु और दुर्गंधयुक्त पदार्थ को छिन्न-भिन्न और हल्का करके बाहर निकाल कर पवित्र वायु को प्रवेश कर देता है।
अर्थापत्ति प्रमाण से आप समझ सकते हैं यहां प्रसंग घरेलू वायु प्रदूषण का ही है। बाहरी वायु का प्रदूषण तो खतरनाक है ही उससे भी अधिक खतरनाक है हमारे घर का प्रदूषण। यही कारण रहा वैदिक ऋषियों ने वेदों के आधार पर प्रातः व सायं यज्ञ का विधान किया अनिवार्य रूप से ।पंच महा यज्ञ में इसे शामिल किया गया।
महर्षि दयानंद ने दोनों समय यज्ञ के लिए अथर्ववेद का प्रमाण दिया है सत्यार्थ प्रकाश के चौथे समुल्लास में ।
सायं सायं गृहपतिनर्रो अग्नि: प्रातः प्रातः सौमनस्य दाता।। १।।
अर्थात जो संध्या काल में होम होता है वह हुत द्रव्य प्रातः काल तक वायुशुद्धि द्वारा सुखकारी होता है जो अग्नि में प्रातः काल में होम किया जाता है वह-वह हुत द्रव्य सायं काल पर्यंत वायु शुद्धि द्वारा बल बुद्धि और आरोग्य कारक होता है।
इतना ही नहीं महर्षि दयानंद इसी चौथे समुल्लास में लिखते हैं हवन करने का प्रयोजन यह है की पाकशालास्थ वायु का शुद्ध होना और जो अज्ञात अदृष्ट जीवों की हत्या होती है ,उसका प्रत्युपकार कर देना।
महर्षि दयानंद यहां भी पाकशाला अर्थात किचन में होने वाले वायु प्रदूषण को लेकर हमें सचेत कर रहे हैं। पहले अधिकांस घरों में रसोई में उपले लकड़ी आदि जलाये जाते थे उस कार्बन मोनोऑक्साइड आदि नुकसानदायक गैसै निकलती थी। उनके नुकसानदायक प्रभाव को उदासीन करने के लिए क्रांतिदर्शी ऋषियों ने मिष्ठ पदार्थ या गाय के घी से आहुति देने का विधान किया है वैश्वदेव देव यज्ञ के नाम से।
आज हमारी रसोई में अधिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग होता है जिसे हानिकारक रेडिएशन रासायनिक भौतिक प्रदूषक तत्व निकलते हैं एलपीजी गैस हम इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे प्रदूषक तत्व निकलते हैं । घर में उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषण से केवल प्रातः सायं का अग्निहोत्र ही हमें बचा सकता है ।आज वायु प्रदूषण के नाम पर घर में एयर फिल्टर से लेकर एयर फ्रेशनर का प्रयोग किया जाता है यह सभी उपाय निष्प्रभावी है साथ ही अत्यधिक खर्चीले हैं।
महर्षि दयानन्द महामानव थे। वह समाज सुधारक दार्शनिक योगी ही नहीं थे यदि हम उनका समग्र तौर पर आकलन करें तो वह जलवायुविद के साथ-साथ पर्यावरणविद भी थे जिन्होंने जलवायु प्रदूषण घटते हुए वन क्षेत्र की समस्या पर 19वीं शताब्दी में ही प्रकाश डाल दिया था। समस्या पर प्रकाश ही नहीं डाला था इसका वैदिक समाधान भी प्रस्तुत किया था यज्ञ आदि के माध्यम से।
यदि अकाल मृत्यु से बचना है तो अपने घर में यज्ञ की ज्योति को स्थापित कीजिए प्रातः साय या एक समय यथा अवसर पर होम हवन जरूर करना चाहिए। अन्य लोगों को भी इस विषय में जागरूक करना चाहिए। जीवन के लिए स्वच्छ साफ सुथरी वायु अति आवश्यक है। यदि हम वायु को सुगंधित साफ नहीं करते हैं तो हम पाप करते हैं। हमें पाप व पाप वृति से बचना चाहिए।
लेखक आर्य सागर खारी 🖋️