त्रिकोणिय खेतार जहां तीन-तीन दिव्य घटनाएं घटी
आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
यह स्थान नारायण सरोवर के दक्षिण एक खेत के बाद है। यहां स्वामी नारायण के बचपन की तीन प्रमुख घटनाएं घटी थीं।
यह वह त्रिकोणीय खेत वाला स्थान है जहाँ घनश्याम ने पक्षियों को समाधि में भेजा था। वे घास के स्थान पर पेहटुल तोड़ने की लीला किए थे। इसी खेत में कड़वे पेहटुल का मीठा स्वाद भी किए थे। यह बहुत ही कल्याणकारी और दिव्य प्रसादी स्थल है। इस खेत से संबंधित तीन प्रमुख घटनाएं घटित हुई थी।
1.पक्षियों को समाधि में भेजना
चिड़ियों को अचेत कर समाधि में भेजकर खेत की रक्षा बाल प्रभु ने सम्वत 1845 सन 1789 ई. में किए थे। मां बाप के साथ वे अयोध्या से छपिया आए हुए थे। उन्हें शालिधान के फसल को घर लाना था। खेत की रखवाली घनश्याम को सौंपा गया था। वे बाल सखा के साथ खेल में गए और वहां मदमस्त हों जाते थे । खेत में दाना चुनने जो भी चिड़िया आती थी वह अचेत हो जाती थी। वह पारलौकिक आनन्द पाती थी।बाद में बाल प्रभु संकेत कर चिड़ियों को अचेतता दूर कर देते थे। वे विचित्र तरीके से खेत की रखवाली कर रहे थे। बाद में शालिधान की फसल खलिहाल में लाया गया। उसको साफ कर बैलगाड़ी में लाद कर परिवार के सभी अयोध्या चले आए।
- खेत से घास के बजाय पेहटुल उखड़ना
इसी खेत में दयालु प्रभु घास के स्थान पर पेहटुल तोड़ने की लीला किए थे। एक बार बड़े भाई रामप्रताप अपने खेत में घास काटने गए थे। उनके साथ उनका छोटा भाई घनश्याम भी था। खेत में मक्का और पेहटुल साथ-साथ उगे थे। और इन दोनों के बीच उगी घास को निकालना था।
बड़े भाई को काम करते देख घनश्याम के मन में भी काम करने का विचार आया। इसलिए वह भी काम करने लगे। लेकिन घास निकालने की बजाय घनश्याम मक्का और पेहटुल उखाड़ रहे थे ।
यह देखकर बड़े भाई ने उसे डांटा, लेकिन घनश्याम को इसकी परवाह नहीं थी। बड़े भाई ने कहा,”ये क्या कर रहे हो?”
उन्होने जबाब दिया, “जीव हिंसा कम हो इसलिए यह कर रहा हूं।आप कहे थे पेहतुल से घास निकलना है। मैं तो घास मे से पेहतुल अलग कर रहा हूं। ये दोनों एक ही है।”
बड़े भाई ने उसे फिर से डांटा, लेकिन घनश्याम को इसकी परवाह नहीं थी। बड़े भाई को गुस्सा आ गया। उसने गुस्से में घनश्याम को मारने के लिए हाथ उठाया।
घनश्याम को बुरा लगा। वह भागकर घर में गया, छिपकर चरनी में घास के ढेर में छिप गया ताकि कोई उसे न पा सके। जब बड़ा भाई दोपहर को घर लौटा, तो भक्तिमाता ने उसे अकेला देखकर घनश्याम के बारे में पूछा।
उसने कहा, "घनश्याम पहले ही घर आ चुका है।"
"नहीं, अभी तक नहीं आया," माँ ने कहा।
बड़े भाई को अब आश्चर्य हुआ। उसने कहा, "मैंने जब उसे पीटना चाहा तो वह नाराज होकर कहीं भाग गया होगा।"
घनश्याम की खोज शुरू हुई। उसके सभी गाँव के मित्रों से घनश्याम के बारे में पूछा गया। परन्तु किसी ने घनश्याम को नहीं देखा था। नदी, तालाब, मंदिर, इमली का पेड़ और आम का पेड़ जहाँ- जहाँ घनश्याम जाता था, वहाँ-वहाँ खोजा गया, परन्तु वह कहीं नहीं मिला। आस- पास के गाँवों में दूत भेजे गए। अन्त में वे निराश और असहाय हो गए।
भक्तिमाता की दुर्दशा की कोई सीमा नहीं थी। वह रोने लगी: "अरे प्यारे घनश्याम, मेरे बेटे घनश्याम, तुम कहाँ हो?"
माँ का विलाप घनश्याम सहन नहीं कर सका। उसने घास के ढेर से चिल्लाकर कहा, "मैं आ गया माँ।"
शीघ्र ही मौसी सुन्दरीबाई दौड़कर चरनी के पास गई और घनश्याम का हाथ पकड़कर उसे वापस ले आई। भक्तिमाता घनश्याम से लिपट गई।
घनश्याम ने माँ की गोद में मुँह छिपाते हुए कहा, “माँ, मेरा बड़ा भाई मुझे खोज रहा था, मैं उसे देख रहा था।”
घन श्याम ने अपने भाई को चतुर्भुज स्वरूप का दर्शन भी कराया। बड़े भाई ने दोनों हाथ जोड़ कर बाल प्रभु से क्षमा मांगी थी।
“कितना शरारती है मेरा बेटा घनश्याम!” माँ ने उसे अपने आंचल में छिपाते हुए कहा था।
3.कड़वा पेहटुल को मीठा बनाया
इसी खेत में कड़वे पेहटुल का मीठा स्वाद भी किए थे। वसराम तिवारी बालक घनश्याम के मामा थे। उन्होंने अपने खेत में पेहटुल लगाया था। पेहटुल पकते ही उन्हें उसे चखने की इच्छा हुई। इसलिए उन्होंने एक अच्छा पेहटुल चुनकर खाया। लेकिन जैसे ही उन्होंने पहला टुकड़ा मुंह में डाला, उन्हें थूकना पड़ा। पेहटुल बहुत कड़वा था।
वसराम भक्तिमाता के घर गए और कहा, "बहन, पेहटुल कड़वा होता है। अगर मीठा होता, तो मैं घनश्याम को खेत में ले जाकर खिलाता। उसे पेहटुल बहुत पसंद है न?"
"घनश्याम के लिए पेहटुल कभी कड़वा नहीं हो सकता," भक्तिमाता ने कहा।
“लेकिन वे वास्तव में कड़वे हैं," वसराम ने कहा। घनश्याम सरपट दौड़ता हुआ आया और बोला, "पेहटुल का फल कितना मीठा है!"
वसराम ने पूछा, "कौन सा?" "वही जो मैं आपके खेत से लाया हूँ," घनश्याम ने कहा, "इसे चखो।"
वसाराम ने उसे चखा और पाया कि वह बहुत मीठा है। “क्या यह मेरे खेत का है?” वसराम ने पूछा, “लेकिन मेरे खेत में तो सभी पेहटुल/ककड़ी के फल कड़वे होते हैं।”
"नहीं, वे कड़वे नहीं हैं, वे बहुत मीठे हैं," घनश्याम ने कहा, "चलो वहाँ चलते हैं और मैं तुम्हें दिखाता हूँ।"
वे खेत में गए। वसराम ने ककड़ी के दो से पाँच फल तोड़े और वे मीठे निकले, शहद की तरह मीठे। वह बहुत हैरान हुआ: “यह कैसे? कुछ ही समय में वे मीठे हो गए?”
घनश्याम ने कहा, "चाचा, यदि आप पहले भगवान का हिस्सा निकाल देते, तो सभी फल मीठे होते।"
इसलिए, ध्यान रखें, हर चीज में सबसे पहले भगवान का हिस्सा निकालना चाहिये। जहां भगवान का हिस्सा होगा, वह मीठा होगा और अगर भगवान का हिस्सा नहीं निकाला जाता है, तो वह चीज कड़वी होगी।
लेखक परिचय
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)
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