63 दिन का अनशन करने वाले क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ दास
यतींद्र नाथ उपनाम जतिंद्रनाथ दास भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के एक देदीप्यमान नक्षत्र हैं । उनके साथी उन्हें क्रांतिकारी ‘जतिन दा’ कहकर भी पुकारते थें। वे 16 वर्ष की अवस्था में ही बंगाल के क्रांतिकारी संगठन ‘अनुशीलन समिति’ में शामिल हो गये थे।उनका जन्म कोलकाता के एक साधारण बंगाली परिवार में 27 अक्टूबर 1904 को हुआ । महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में Bभाग लेते हुए कलकत्ता के विद्यासागर कॉलेज में पढ़ने वाले जतिंद्र को विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 6 महीने की सजा हुई। क्रान्तिकारी सचिन्द्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आकर क्रांतिकारी संगठन ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएश्न’ के सक्रिय सदस्य बन गये।वर्ष1925 में अंग्रेजों ने उन्हें ‘दक्षिणेश्वर बम कांड’ और ‘काकोरी कांड’ में गिरफ़्तार कर लिया। जेल में भारतीय कैदियों के साथ हो रहे बुरे व्यवहार के विरोध में उन्होंने भूख हड़ताल की। जब जतींद्रनाथ की हालत बिगड़ने लगी तो अंग्रेज सरकार ने डरकर 21 दिन बाद उन्हें रिहा कर दिया।उन्होंने भगत सिंह व अन्य साथियों के साथ मिलकर लाहौर असेंबली में बम फेंका, जिसमें ब्रिटिश अधिकारी मारे गये। भगत सिंह की गिरफ्तारी के बाद लाहौर षडयंत्र केस में जतिंद्र को भी अन्य लोगों के साथ पकड़ लिया गया।उन दिनों जेल में भारतीय राजनैतिक कैदियों की हालत एकदम खराब थी। उसी तरह के कैदी यूरोप के हों, तो उनको कुछ सुविधाएं मिलती थीं।इसके विरोध में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त आदि ने लाहौर के केन्द्रीय कारागार में भूख हड़ताल प्रारम्भ कर दी। जब इन अनशनकारियों की स्थिति बिगड़ने लगी, तो इनके समर्थन में अन्य क्रांतिकारियों ने भी अनशन प्रारम्भ करने का विचार किया।सब ने जतिंद्र को भी हड़ताल में सम्मिलित होने के लिए कहा, तो उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि मैं अनशन तभी करूंगा, जब मुझे कोई इससे पीछे हटने को नहीं कहेगा। मेरे अनशन का अर्थ है, ‘जीत या फिर मृत्यु !’इस अटल प्रण के साथ उनकी क्रांतिकारी भूख हड़ताल आरम्भ हुई। जतिंद्र नाथ के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने 13 जुलाई, 1929 से अनशन प्रारम्भ कर दिया। जेल में वैसे तो बहुत खराब खाना दिया जाता था; पर यह हड़ताल तोड़ने के लिए जेल अधिकारी स्वादिष्ट भोजन, मिठाई और दूध आदि इन क्रांतिकारियों को देने लगे। सब क्रांतिकारी यह सामान फेंक देते थे; पर जतिंद्र कमरे में रखे होने पर भी खाने को छूना तो दूर देखते तक न थे।जेल अधिकारियों ने जतिंद्र दा के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया ।उन्होंने उनके पेट में रबड़ की नली से दूध डालने का प्रयास किया । परंतु उन्होंने खांसना आरंभ कर दिया । जिससे वह दूध उनके फेफड़ों में चला गया । फलस्वरूप उनकी स्थिति और भी बिगड़ने लगी । जेल प्रशासन ने उनके छोटे भाई किरणचंद्र दास को उनकी देखरेख के लिए बुला लिया; पर जतिंद्रनाथ दास ने उसे इसी शर्त पर अपने साथ रहने की अनुमति दी कि वह उनके संकल्प के बीच नही आएगा। इतना ही नहीं, यदि उनकी बेहोशी की अवस्था में जेल अधिकारी कोई खाना, दवा या इंजैक्शन देना चाहें, तो वह ऐसा नहीं होने देगा।हड़ताल का 63वां दिन था। बताया जाता है कि उस दिन उनके चेहरे पर एक अलग ही तेज था। उन्होंने सभी साथियों को साथ में बैठकर गीत गाने के लिए कहा। अपने छोटे भाई को पास में बिठाकर खूब लाड़ किया। उनके एक साथी विजय सिन्हा ने उन का प्रिय गीत ‘एकला चलो रे’ और फिर ‘वन्दे मातरम्’ गाया।यह गीत पूरा होते ही जतिंद्र ने इस संसार से विदा ले ली। वह दिन था 13 सितंबर 1929 का ।उस समय उनकी अवस्था मात्र 24 वर्ष थी ।उनकी मृत्यु की खबर सुनकर सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें ‘भारत का युवा दधीची’ कहा था ।जिसने अंग्रेजों के साम्राज्य के विनाश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।अपने ऐसे महान क्रांतिकारी को हमारा शत-शत नमन।डॉ राकेश कुमार आर्यसंपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत