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प्रो0 विजेंद्र सिंह आर्य : शाख से टूट गया एक सुर्खरु गुलाब….

कुशल लेखक और विशिष्ट एवं अद्भुत साहित्यिक प्रतिभा के धनी श्री विजेन्द्र सिंह आर्य स्वनामधन्य विद्वान थे, जो अब हमारे बीच नहीं रहे। आधा दर्जन से अधिक पुस्तकों के लेखक श्री विजेंद्र सिंह आर्य का जन्म दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के प्रांगण में स्थित सरकारी कर्मचारियों के लिए आवंटित क्वार्टर्स में 22 अगस्त 1947 को हुआ था। जहां परउनके पिता लिपिकीय विभाग में कार्यरत थे। पिता राजेंद्र सिंह आर्य जी का मूल गांव महावड़ परगना व तहसील दादरी जिला गौतमबुद्ध नगर तत्कालीन जनपद बुलंदशहर था।

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स्पष्ट है कि जिस समय श्री आर्य का जन्म हुआ था, देश उसी समय स्वाधीन हुआ था। जिसके चलते सर्वत्र स्वाधीनता के विजय उत्सव मनाये जा रहे थे। उनके पूज्य पिताजी श्री राजेंद्र सिंह आर्य स्वयं क्रांतिकारी विचारधारा के समर्थक थे। स्वामी दयानंद जी महाराज और अन्य आर्य समाज के नेताओं के विचारों से प्रेरित होने के साथ-साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल जैसे क्रांतिकारी नेताओं के विचारों से बहुत अधिक प्रभावित थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और देश के स्वाधीनता आंदोलन के नेताओं को बहुत निकटता से सभाओं में बैठकर सुना था। अतः एक देशभक्त पिता को स्वाधीनता के विजय उत्सवों का विशेष ही आनंद अनुभव हो रहा था। अपनी इसी आनंदानुभूति को प्रकट करते हुए पूज्य पिता महाशय राजेंद्र सिंह आर्य ने अपने नवजात शिशु का नाम भी विजय रखा।

प्रोफेसर विजेंदर सिंह आर्य जी की माता श्रीमती सत्यवती आर्य भी ग्राम चचूला जिला बुलंदशहर के आर्य समाज विद्वान मुंशी सिंह आर्य के नागर परिवार से संबंध रखती थीं। इस प्रकार उनके माता-पिता दोनों ही आर्य समाजी संस्कारों से ओतप्रोत थे। जिनमें देश प्रेम और संस्कृति प्रेम कूट-कूट कर भरा था।
माता-पिता की किन्हीं विशेष कारणों से अपने मूल गांव में आकर रहना पड़ा। वहीं पर स्थित प्राइमरी पाठशाला में उन्होंने अपने बच्चे विजय का प्रवेश कराया। प्राथमिक शिक्षा अपने गांव से लेकर उन्होंने अगली शिक्षा ग्राम दुजाना में स्थित विद्यालय में प्राप्त की। इंटरमीडिएट की परीक्षा उन्होंने मिहिर भोज इंटर कॉलेज दादरी से उत्तीर्ण की। शंभू दयाल डिग्री कॉलेज गाजियाबाद से उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके पश्चात 1975 में उन्होंने सरदारशहर राजस्थान से B.Ed.की। एचएसईबी विद्युत नगर हिसार के विद्यालय में आपने 1982 से 2005 तक अध्यापन कार्य किया। जिसे आपने राष्ट्र सेवा का एक अनुपम अवसर समझकर अपने कर्तव्य धर्म के रूप में निर्वाह किया।

कविता के क्षेत्र में श्री आर्य अपनी युवावस्था से ही उतर गए थे। अनेक विषयों पर उन्हेंनि अनेक काव्य रचनाओं का सृजन किया। ईश्वर भक्ति, राष्ट्र भक्ति, देश व समाज के क्रांतिकारियों पर विभिन्न प्रकार के गीतों को वह लिखते रहे । जिनकी लोगों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। सहज और सरल हृदय के धनी श्री आर्य की लेखनी भी उतनी ही सरल और सरस है। जो कि पाठक के हृदय पर सीधा और स्थाई प्रभाव डालती है। उनकी लेखन शैली की बानगी कुछ इस प्रकार है:-

युवाओं में ताकत तो होती है, मगर तजुर्बा नहीं होता।
जब तक सोना तपता नहीं, कुन्दन नहीं होता। ।

पूजा अथवा कोई पुण्य का कार्य करने की उर्मियाँ यदि मन में हिलोरें मारने लगे, तो उन्हें प्रभु की प्रेरणा समझो :-

हरि-नाम की उर्मियाँ, चित में मारें हिलोर ।
प्रेरक को ये प्रेरणा, चली प्रभु की ओर ॥

‘विशेष शेर’ अनन्त कामनाओं के संदर्भ में:-

खूब तरसाया है तेरी ख्वाइशों ने ही तुझे ।
अब तू भी इन ख्वाहिशों को तरसती छोड़ दे ॥

‘विशेष’ ईश्वर का दीदार चर्म-चक्षुओं से नहीं अपितु दिव्य दृष्टि से होता हैः-

दिव्य दृष्टि से दिखे, भगवन तेरा स्वरूप ।
तुरिया में जब मन टिकै, साधक हो तद् रूप ॥

‘विशेष’ ईश कृपा से ही ईश का दीदार होता है:-

यक्ष दान तप वेद से, दिखै न सूजनहार।
ईश कृपा से ईश का, होता है दीदार।।

तत्वार्थ भाव यह है कि यज्ञ तथा महान कार्य करने से तथा वेदों के निरंतर अध्ययन करने से परमपिता परमात्मा का साक्षात्कार नहीं होता , वरन् प्रभु की कृपा से ही प्रभु का दीदार होता है। अतः प्रभु का दीदार करना है तो उसकी कृपा के पात्र बनो।

जिन्दगी में दो मसले, कभी हल न हुए।
न नींद ही पूरी हुई, न ख्वाब ही मुकम्मल हुए।।

मां के संदर्भ में:

ए पूनम के बाँद !
आज तेरा यौवन शरूर पर है,
मेरा भी चाँद जयां हो गया है,

अब मैं भी उसका ब्याह रचाऊंगी।
हे प्रभु ! वह घड़ी भेज दें मैं भी बनने के गीत गाँऊगी ।।

आत्मस्वरूप के संदर्भ में ‘गैर’

ऐ बशर !

वृद्ध होना तो मजबूरी है,
मगर आत्मज्ञान होना,
तो निहायत जरूरी है।

श्री आर्य इस समय 77 वर्ष की अवस्था 22 अगस्त 2024 को प्राप्त कर चुके थे। उम्र के इस पड़ाव में वह ग्रेटर नोएडा सेक्टर 37 में निवास कर रहे थे। उनके तीन अनुज मेजर बीर सिंह आर्य , देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट एवं डॉ राकेश कुमार आर्य हैं। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शीला आर्या भी एक विदुषी महिला रही हैं। श्री आर्य के दो बेटे अमृत सिंह आर्य एडवोकेट एवं आदित्य आर्य हैं। जबकि एक बेटी अस्मिता आर्या है। श्री आर्य उगता भारत समाचार पत्र के लिए मुख्य संरक्षक के रूप में उम्र के इस पड़ाव में भी निरंतर लिखते रहे । उनकी प्रत्येक पुस्तक की लेखकों ने खुले इदय से सराहना की है। श्री आर्य एक अच्छे वक्ता भी थे। जब वह बोलते थे तो लोग बड़ी उत्सुकता से उन्हें सुनते जाते थे। श्रोताओं को अपने साथ मंत्रमुग्ध कर बांधना उनकी वक्तृत्व शैली का एक अनोखा गुण रहा।

अंत में श्री आर्य के विषय में यही कहा जा सकता है:-

तेरे नगमे, तेरे नखरे, तेरे जज्बात
और तेरी खूबसूरती का ये आलम।

तेरी खूबसूरत चहल कदमी,
सच में तू इंसान नहीं फरिश्ता है.

तभी तो बतियाती है तुझसे
सवेरे सवेरे रोज शबनम ।।

और यह भी कि :-

सुर्खरू गुलाब था तू,
बगीचे की रौनक भी है।
साहित्य का बेशकीमती हीरा,
कोहिनूर है तू।।

कभी बहुत पहले उन्होंने एक गीत बनाया था, उसकी अंतिम पंक्तियां मैं आपके समक्ष रख रहा हूं :-

विजय कर क्यों कपट,
मृत्यु मारेगी झपट,
बने चिता की लपट,
हो जल भुनकर ढेरी ….

और 1 नवंबर 2024 को मृत्यु ने झपट मार ही दिया…. जब उनकी चिता जल रही थी तो उनका यह गीत बार-बार याद आकर भावुक कर रहा था। अब आज दिनांक 3 नवंबर 2024 को पूज्य भ्राता जी के अस्थि संचयन का कार्य पूर्ण किया है।

अपने मुख्य संरक्षक को समस्त उगता भारत परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि ……

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